Travel & Food

Badrinath 2024: बद्रीनाथ के कपाट बंद करने के लिए आखिर क्यों पुजारी को रखना होता है स्त्री का रूप

बद्रीनाथ धाम, जिसे भारत के चार धामों में से एक माना जाता है, केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है। यहां कई मंदिर हैं, जिनमें से एक प्रमुख मंदिर माँ लक्ष्मी का है। यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए न केवल आस्था का स्थान है, बल्कि यहां की अनूठी परंपराएं भी इसे खास बनाती हैं। बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने और खुलने के दिन रावल साड़ी पहन कर पार्वती का श्रृंगार करके ही गर्भगृह में प्रवेश करते हैं। इसके बाद पूजा अर्चना होती है और तभी कपाट खोले जाते हैं।

माँ लक्ष्मी का मंदिर

बद्रीनाथ धाम में स्थित माँ लक्ष्मी का मंदिर बाहर की तरफ है, जो इस स्थान की धार्मिक महत्ता को दर्शाता है। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि किसी भी पराई स्त्री को छूना वर्जित है। इस परंपरा का पालन करने के लिए पुजारी को विशेष प्रकार की तैयारियों से गुजरना होता है।

रावल की भूमिका

बद्रीनाथ धाम के मुख्य पुजारी, जिन्हें रावल कहा जाता है, का एक महत्वपूर्ण कार्य होता है। इस कार्य के लिए उन्हें माँ लक्ष्मी की सहेली बनकर, माँ पार्वती का रूप धारण करना होता है। यह एक अनोखी परंपरा है, जिसका पालन करते हुए रावल लक्ष्मी मंदिर में प्रवेश करता है। यह प्रक्रिया न केवल श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि धार्मिक मान्यताओं को भी जीवित रखती है।

पंच पूजा की तैयारी

बद्रीनाथ धाम में कपाट बंद होने की प्रक्रिया के दौरान, रावल को पंच पूजा के लिए कई दिनों तक तैयारियों में जुटना होता है। यह पूजा विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि इसमें देवी-देवताओं को संतुष्ट करने के लिए विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं। इस समय पुजारी को एक स्त्री का रूप धारण करना, धार्मिक आस्था और परंपरा का अभिन्न हिस्सा है।

स्त्री रूप धारण करने का महत्व

पुजारी का स्त्री रूप धारण करने के पीछे की धार्मिक मान्यता यह है कि यह प्रक्रिया देवी लक्ष्मी को सम्मानित करने के लिए की जाती है। माना जाता है कि इस रूप में रावल देवी के प्रति अपनी श्रद्धा और समर्पण को दर्शाता है। इसके अलावा, यह परंपरा समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान और श्रद्धा को भी प्रदर्शित करती है।

स्थानीय लोगों की राय

स्थानीय लोगों का मानना है कि यह परंपरा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक संदर्भों को भी दर्शाती है। वे कहते हैं कि इस प्रकार की अनुष्ठान से समाज में एकता और समरसता बढ़ती है। बद्रीनाथ धाम की यह अनोखी परंपरा न केवल श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है, बल्कि यह देश की सांस्कृतिक विविधता को भी उजागर करती है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button