Uttarakhand: 40 साल की उम्र में अपराध खाकी से बचने के लिए बुढ़ापे तक लगाई रेस ,अंततः कानून ने पकड़ा
सुरेंद्र महतो, एक ऐसा नाम जो पिछले 21 वर्षों से कानून के दायरे से बाहर था। 40 साल की उम्र में एक अपराध करने के बाद से सुरेंद्र ने अपनी पूरी जिंदगी पुलिस से बचने की कोशिश की। वह भागता रहा, लेकिन इस दौड़ में उसे कभी भी सुकून नहीं मिला। न केवल उसने कानून से बचने का प्रयास किया, बल्कि इस दौरान अपने परिवार से भी दूर रहा। उसका बेटा सार्वजनिक रूप से उसे पिता कहने में संकोच करता रहा, एक ऐसे पिता की छवि के साथ जो कानून से भागा हुआ था।
पुलिस की कार्रवाई और गिरफ्तारी
शनिवार को, जब पुलिस ने देवरिया के ग्राम महुवा में दस्तक दी, तो सुरेंद्र महतो एक पल के लिए चौंक गया। उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि उसके ऊपर से पुलिस का हाथ अब तक नहीं गुजरा है। पुलिस ने उसे बताया कि उसने करीब 21 साल पहले, अपने छोटे भाई के कहने पर एक बालिका को बिहार भगा ले जाने की गलती की थी। इस घटना के बाद उसके छोटे भाई, छोटे लाल, को तो पकड़ लिया गया था, लेकिन सुरेंद्र झारखंड भागने में सफल रहा।
अपराध की कहानी
सुरेंद्र का अपराध एक ऐसी घटना है जो उसके जीवन के लिए काले धब्बे की तरह बनी रही। जब उसने अपने छोटे भाई के साथ मिलकर उस बालिका को बिहार ले जाने का फैसला किया, तो यह उसके जीवन का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट बन गया। उस समय सुरेंद्र ने सोचा था कि वह अपने छोटे भाई के साथ मिलकर कुछ गलत नहीं कर रहा है, लेकिन बाद में उसे इस निर्णय के गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ा।
भागने की दास्तान
सुरेंद्र ने दो दशक तक पुलिस से बचने की कोशिश की। यह समय उसके लिए एक भागदौड़ से भरा हुआ था। झारखंड के कोनों में छिपने से लेकर विभिन्न पहचान छिपाने तक, उसने हर संभव प्रयास किया। हालांकि, उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचते-पहुंचते, सुरेंद्र की यह कोशिशें कमजोर होने लगीं। वह थक गया था, और कानून के लंबे हाथों से बचना अब उसके लिए मुश्किल हो गया था।
परिवार की स्थिति
इस दौरान, सुरेंद्र का परिवार भी बिखर गया। उसकी पत्नी और बेटे ने उसकी अनुपस्थिति को एक कलंक के रूप में सहा। उसके बेटे ने पिता की पहचान छिपाने में ही अपनी भलाई समझी। सार्वजनिक स्थलों पर, वह अपने पिता का नाम लेने में भी हिचकिचाता रहा। यह स्थिति न केवल सुरेंद्र के लिए, बल्कि उसके परिवार के लिए भी एक मानसिक बोझ बन गई।
कानून का हाथ और अंत
आखिरकार, 21 वर्षों की भागदौड़ के बाद, कानून ने सुरेंद्र को पकड़ ही लिया। जब पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया, तो यह एक ऐसा पल था जिसे उसने कभी नहीं सोचा था। वह पूरी तरह से आश्चर्यचकित था। पुलिस की कार्रवाई उसके लिए एक नये अध्याय की शुरुआत थी, लेकिन यह निश्चित रूप से उसके लिए एक कठिनाई का सामना करने का समय भी था। सुरेंद्र को अब यह सोचने की आवश्यकता थी कि उसने अपने जीवन के इतने साल क्यों बर्बाद किए और उसका परिवार कैसे प्रभावित हुआ।
समाज की प्रतिक्रिया
सुरेंद्र महतो की गिरफ्तारी ने स्थानीय समाज में भी हलचल मचा दी। कई लोगों ने इस घटना को एक चेतावनी के रूप में देखा। उन्होंने यह समझा कि कानून कभी भी किसी को नहीं छोड़ता, चाहे वह कितनी भी देर से क्यों न आए। लोगों ने सुरेंद्र की कहानी को एक नयी पीढ़ी के लिए एक सबक के रूप में लिया, कि अपराध का कोई भी रास्ता हमेशा के लिए सुरक्षित नहीं होता।