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नाम के साथ ‘मुल्ला’ क्यों लगाते हैं कई मुसलमान? जानिए

भारत एक ऐसा देश है जहां विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग एक साथ निवास करते हैं, और यह हमारे समाज की खासियत है। हर धर्म का अपना एक विशेष पहचान है, जिसमें मुस्लिम समुदाय में भी कई जातियां और सरनेम शामिल हैं। इनमें से कुछ आम सरनेम जैसे खान, सैयद, पठान, कुरैशी, और अंसारी हैं। लेकिन इस बीच, ‘मुल्ला’ जैसे कुछ अनोखे सरनेम भी हैं, जो बहुत से लोगों के लिए अनजाने हैं। इस लेख में हम ‘मुल्ला’ के बारे में विस्तार से जानेंगे।

‘मुल्ला’ का अर्थ और उत्पत्ति

‘मुल्ला’ शब्द फारसी के ‘मुल्ला’ से आया है, जो अरबी के ‘मौला’ से लिया गया है। ‘मौला’ का अर्थ ‘मास्टर’ या ‘गार्डियन’ होता है। इस शब्द का उपयोग इस्लामी धार्मिक शिक्षा में उन लोगों के लिए किया जाता है जो इस्लामी ज्ञान में विशेषज्ञ होते हैं, जैसे कि मस्जिद के इमाम या स्थानीय धर्मगुरु।

रेख्ता डॉट ओआरजी, जो उर्दू की एक प्रमुख वेबसाइट है, के अनुसार, ‘मुल्ला’ उस व्यक्ति के लिए एक आदरपूर्वक उपाधि है जो शरीअत का आलिम, मुदर्रिस, और फकीह होता है। यह शब्द इस्लाम में धार्मिक शिक्षा और ज्ञान के महत्व को दर्शाता है।

‘मुल्ला’ उपाधि का प्रयोग

बहुत से मुसलमान अपने नाम के पीछे ‘मुल्ला’ लगाते हैं। यह शब्द केवल एक आधिकारिक उपाधि नहीं है, बल्कि कई मुसलमानों के लिए यह एक पारिवारिक पहचान बन गई है। यह इतिहास में उन व्यक्तियों के लिए इस्तेमाल होता था जो धार्मिक शिक्षा में माहिर होते थे, ठीक उसी तरह जैसे भारत में ‘पंडित’ उपाधि धार्मिक जानकारों के लिए उपयोग की जाती है।

कर्नाटक के सामाजिक कार्यकर्ता इकबाल मुल्ला ने बताया कि उनके परिवार में यह नाम पीढ़ियों से चला आ रहा है। यह नाम न केवल एक पहचान है, बल्कि धार्मिक ज्ञान और शिक्षा का प्रतीक भी है।

‘मुल्ला’ का वैश्विक प्रयोग

‘मुल्ला’ उपाधि का प्रयोग भारत के अलावा अन्य देशों में भी होता है। महाराष्ट्र के पत्रकार खालिद मुल्ला ने बताया कि यह सरनेम विभिन्न राज्यों जैसे गुजरात, असम, बंगाल, भोपाल, महाराष्ट्र, और तेलंगाना में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त, यह सरनेम अफगानिस्तान, ईरान, सऊदी अरब, और यमन में भी देखने को मिलता है।

खालिद ने यह भी बताया कि ‘मुल्ला’ ओबीसी जाति के अंतर्गत आता है, जो केंद्र की ओबीसी सूची में कसाई जात के तौर पर दर्ज है। यह इस बात का प्रमाण है कि ‘मुल्ला’ का इस्तेमाल केवल धार्मिक पहचान के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक पहचान के लिए भी किया जाता है।

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

‘मुल्ला’ उपाधि की सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व को समझना आवश्यक है। यह न केवल एक पहचान है, बल्कि यह उन मूल्यों को भी दर्शाता है जो इस समुदाय के लिए महत्वपूर्ण हैं। जैसे कि शिक्षा, ज्ञान, और धार्मिक पवित्रता। जब लोग अपने नाम के पीछे ‘मुल्ला’ लगाते हैं, तो वे न केवल अपने पूर्वजों की परंपरा को मानते हैं, बल्कि अपनी धार्मिक पहचान को भी प्रकट करते हैं।

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