Uttarakhand

उत्तराखंड में भू कानून को लेकर CM धामी की बड़ी तैयारी

भूमि खरीद पर पाबंदियों का इतिहास

उत्तराखंड राज्य की स्थापना के साथ ही भूमि खरीद-फरोख्त एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया। उत्तर प्रदेश से अलग होकर राज्य बनने के बाद, यहां पहले से चल रहे यूपी के कानून लागू थे, जिनके तहत भूमि खरीद पर कोई विशेष पाबंदियां नहीं थीं। वर्ष 2003 में एनडी तिवारी की सरकार ने भूमि खरीद पर पहली बार पाबंदियां लगाईं। तिवारी सरकार ने उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था सुधार अधिनियम, 1950 में संशोधन कर बाहरी व्यक्तियों के लिए आवासीय उपयोग के लिए 500 वर्गमीटर भूमि खरीदने की अनुमति देने का प्रतिबंध लगाया। इसके साथ ही कृषि भूमि की खरीद पर सशर्त प्रतिबंध भी लगाया गया था।

खंडूड़ी सरकार का सख्त रुख

तिवारी सरकार के बाद जब जनरल बीसी खंडूड़ी की सरकार आई, तो भूमि खरीद को लेकर और सख्ती की गई। 2007 में भू-कानून में संशोधन कर आवासीय मकसद से भूमि खरीद की अनुमति 500 वर्गमीटर से घटाकर 250 वर्गमीटर कर दी गई। इस समय, प्रदेश में अनियोजित विकास को लेकर बढ़ते विरोध के चलते यह कदम उठाया गया। खंडूड़ी सरकार ने यह भी सुनिश्चित किया कि जिस परियोजना के लिए भूमि ली गई है, उसे दो साल में पूरा किया जाए, अन्यथा विस्तार के लिए उचित कारण बताना होगा।

त्रिवेंद्र सरकार का बदलाव

वर्ष 2017-18 में त्रिवेंद्र सरकार ने भू-कानून में संशोधन किया, जिससे उद्योग स्थापित करने के उद्देश्य से पहाड़ में जमीन खरीदने की अधिकतम सीमा को हटा दिया गया। इसके साथ ही, किसान होने की बाध्यता भी समाप्त कर दी गई। कृषि भूमि का भू-उपयोग बदलने की प्रक्रिया को सरल बनाया गया। पहले केवल पर्वतीय क्षेत्रों में ही यह व्यवस्था लागू थी, लेकिन बाद में मैदानी क्षेत्रों को भी इसमें शामिल किया गया।

धामी सरकार की पहल

2022 में भू-कानून की मांग तेज हुई, जिसके परिणामस्वरूप मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। समिति ने 5 सितंबर 2022 को अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें 23 संस्तुतियां शामिल थीं। धामी सरकार ने समिति की रिपोर्ट और संस्तुतियों का अध्ययन करने के लिए उच्च स्तरीय प्रवर समिति का गठन भी किया। इसके अलावा, कृषि और उद्यानिकी के लिए भूमि खरीद की अनुमति से पहले खरीदार और विक्रेता का सत्यापन करने के निर्देश भी दिए गए।

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