Uttarakhand

NAVRATRI 2024: डाटकाली का शक्तिपीठ मंदिर,मां ने क्यों अंग्रेज इंजीनियर को सपने में दर्शन दिए ? मंदिर स्थापना के पीछे एक अद्भुत कहानी

उत्तराखंड, जिसे भगवान शिव की भूमि कहा जाता है, माता सती के प्रयाण की साक्षी भी है। यह वही स्थान है जहां मां सती के अंश विद्यमान हैं। कहा जाता है कि जिन-जिन जगहों पर माता सती के अंश गिरे, वहां आज सिद्धपीठ बने हुए हैं। ये सिद्धपीठ अपने भक्तों को मनोकामना पूर्ण करने का वरदान देते हैं।

मां डाटकाली मंदिर: शक्तिपीठ की अनोखी कहानी

उत्तराखंड में स्थित मां डाटकाली मंदिर, माता सती के 9 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। इस मंदिर की स्थापना के पीछे एक अद्भुत कहानी है। बताते हैं कि जब अंग्रेज दून घाटी में प्रवेश करने के लिए सुरंग बनाने की योजना बना रहे थे, तब उन्होंने यहां खुदाई शुरू की। इसी दौरान मजदूरों को मां काली की मूर्ति मिली।

मूर्ति के प्रकट होने के बाद, अंग्रेजों का सुरंग निर्माण का कार्य रुक गया। मजदूरों ने पाया कि वे पूरा दिन मेहनत करने के बाद जब सो जाते थे, तो सुबह उठने पर देखते थे कि काम फिर से अधूरा रह गया है।

मां काली का दिव्य संकेत

मान्यता है कि एक रात मां काली ने एक अंग्रेज इंजीनियर को सपने में दर्शन दिए और उससे मंदिर बनाने का निर्देश दिया। इसके बाद सुरंग के पास ही मां काली का मंदिर बनाया गया और वहां उनकी मूर्ति की स्थापना की गई। इसके बाद ही सुरंग का निर्माण पूरा हो पाया। गढ़वाली भाषा में सुरंग को “डाट” कहते हैं, इसी कारण इस मंदिर का नाम डाट काली पड़ा।

श्रद्धालुओं का आस्था केंद्र

आज भी, जब श्रद्धालु नया काम शुरू करते हैं या नया वाहन खरीदते हैं, तो वे मां डाटकाली के दर्शन करने जरूर आते हैं। विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान यहां विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।

मां डाटकाली के मंदिर को भगवान शिव की अर्धांगिनी माता सती का अंश माना जाता है। यह मंदिर देहरादून से 14 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सीमा पर स्थित है। जो भी दून आता है या दून से जाता है, वो मां डाटकाली का आशीर्वाद लेने के लिए उनके मंदिर के पास जरूर रुकता है।

मां डाटकाली का चमत्कारी प्रभाव

मां डाटकाली का मंदिर अपने चमत्कारी प्रभाव के लिए प्रसिद्ध है। भक्तों का मानना है कि यहां पूजा-अर्चना करने से उनके सभी दुःख-दर्द दूर हो जाते हैं और उन्हें मां का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मंदिर में आने वाले श्रद्धालु अपने मन की इच्छाओं के साथ मां के समक्ष उपस्थित होते हैं और कई भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति का अनुभव भी साझा करते हैं।

200 साल पुराना मंदिर

मंदिर का निर्माण 13 जून 1804 में हुआ था, जो इसे दो सौ साल से भी अधिक पुराना बनाता है। इस मंदिर की पुरानी वास्तुकला और धार्मिक महत्व इसे और भी खास बनाते हैं। यहां की शांतिपूर्ण वातावरण भक्तों को मानसिक शांति प्रदान करता है और उन्हें मां के प्रति भक्ति में लीन कर देता है।

नवरात्रि का महत्व

नवरात्रि के पर्व पर इस मंदिर में विशेष उत्सव मनाए जाते हैं। भक्तों की एक बड़ी संख्या इस अवसर पर मां डाटकाली के दरबार में हाजिरी लगाती है। नवरात्रि में भक्त अपनी श्रद्धा और भक्ति के साथ विशेष अनुष्ठान करते हैं। इस दौरान मां को विशेष भोग अर्पित किया जाता है और कई सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।

भक्तों की उपासना और अर्चना

मां डाटकाली के दरबार में भक्तों की उपासना का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है। भक्त यहां आकर अपनी श्रद्धा के साथ नतमस्तक होते हैं। कई लोग अपनी समस्याओं का समाधान पाने के लिए मां से प्रार्थना करते हैं। मंदिर में आने वाले श्रद्धालु मां की मूर्ति के समक्ष दीप जलाते हैं और विशेष मंत्रों का उच्चारण करते हैं, जो उनके मन में शांति और संतोष लाता है।

श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक

मां डाटकाली मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है। यहां आकर भक्त अपनी चिंताओं और परेशानियों को भूलकर केवल मां की भक्ति में लीन हो जाते हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह संस्कृति, आस्था और परंपरा का भी प्रतीक है।

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