UTTARAKHAND का एक ऐसा मंदिर जिसे मुस्लिम भक्त ने स्थापित किया था,मांगी मुराद होती है पूरी
नजीबाबाद-बुआखाल राष्ट्रीय राजमार्ग पर कोटद्वार-दुगड्डा के मध्य स्थित दुर्गा देवी मंदिर एक अनोखी आस्था का प्रतीक है। यह मंदिर एक मुस्लिम भक्त, शफीकउल्ला खान द्वारा स्थापित किया गया था, जो उस समय अंग्रेजों के शासनकाल में सड़क निर्माण के लिए जिम्मेदार ठेकेदार थे। इस मंदिर की नींव न केवल धार्मिकता का प्रतीक है, बल्कि यह सांप्रदायिक सद्भाव का भी उदाहरण प्रस्तुत करता है।
मां दुर्गा की अखंड जोत: अनवरत श्रद्धा
इस मंदिर की गुफा में माता की अखंड जोत आज भी प्रज्ज्वलित होती है। हर दिन यहां भक्तों की भीड़ जुटती है, खासकर नवरात्रों के पर्व पर, जब भक्तों की संख्या में भारी इजाफा होता है। भक्त माता की शक्ति रूप की पूजा करते हैं, और यहां आने वाले हर व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, ऐसी मान्यता है।
ऐतिहासिक संदर्भ: सड़क निर्माण और मंदिर का उदय
1917 में, अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान, कोटद्वार से दुगड्डा के मध्य मोटर मार्ग का निर्माण कार्य शुरू हुआ। इस कार्य की जिम्मेदारी ठेकेदार शफीकउल्ला खान को दी गई। निर्माण कार्य के दौरान, सड़क निर्माण में कई बाधाएं आने लगीं। स्थिति यह हो गई कि जैसे ही सड़क पर काम शुरू होता, कोई न कोई रुकावट उत्पन्न हो जाती
जब शफीकउल्ला खान ने स्थानीय नागरिकों से इस समस्या के बारे में चर्चा की, तो उन्हें बताया गया कि इस स्थान पर एक गुफा में देवी का वास है। लोगों ने सलाह दी कि देवी को प्रसन्न किए बिना इस कार्य में सफलता नहीं मिलेगी। इस सलाह को गंभीरता से लेते हुए, शफीकउल्ला ने वहां एक छोटे से मंदिर का निर्माण कराया और देवी को प्रसन्न करने के लिए प्रसाद स्वरूप भंडारा आयोजित किया।
निर्माण कार्य की सफलता
इसके बाद, मंदिर के निर्माण और भंडारे के आयोजन के पश्चात, सड़क निर्माण कार्य निर्विघ्न संपन्न हुआ। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि आस्था और श्रद्धा में कितना बल होता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि देवी की कृपा से ही इस कार्य में सफलता मिली।
सांप्रदायिक एकता का प्रतीक
दुर्गा देवी मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह सांप्रदायिक एकता का प्रतीक भी है। एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा स्थापित इस मंदिर ने न केवल हिन्दू श्रद्धालुओं के दिलों में एक खास जगह बनाई है, बल्कि यह सभी धर्मों के लोगों के बीच एकता और भाईचारे का संदेश भी देता है।
आज का दृश्य: भक्तों की अपार संख्या
आज भी, दुर्गा देवी मंदिर में भक्तों की संख्या कम नहीं होती। यहां आने वाले भक्त अपनी आस्था और विश्वास के साथ मां से अपने मन की बात करते हैं। नवरात्रों में तो यहां विशेष पूजन और आयोजन होते हैं, जिसमें भक्तों की भारी भीड़ जुटती है। मंदिर के परिसर में चारों ओर भक्तों की भक्ति और श्रद्धा का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है।
गुफा का महत्व: आस्था का केंद्र
मंदिर की गुफा, जहां मां दुर्गा का वास है, अपने आप में एक अद्भुत स्थान है। खोह नदी के किनारे स्थित इस चट्टान में बनी गुफा में मां की उपस्थिति का अनुभव भक्तों को एक अद्भुत शांति और संजीवनी देती है। यहां आने वाले भक्त अपनी सारी दुखों और कष्टों को भूलकर मां के चरणों में अर्पित कर देते हैं।
मंदिर की देखरेख: समुदाय की भागीदारी
दुर्गा देवी मंदिर की देखरेख स्थानीय समुदाय द्वारा की जाती है। मंदिर के पुजारी और स्थानीय लोग मिलकर यहां की सफाई, पूजन और भक्तों की सेवा करते हैं। यह सामूहिक प्रयास मंदिर की अपार लोकप्रियता और भक्तों की निरंतरता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
नवरात्रों का पर्व: विशेष आयोजन
नवरात्रों के दौरान मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और भंडारे का आयोजन किया जाता है। भक्तों के लिए यह पर्व विशेष महत्व रखता है, और इस दौरान मंदिर में विशेष सजावट और रोशनी की जाती है। यहां पर भक्तों की भीड़ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती है, और मां दुर्गा की महिमा का गुणगान किया जाता है।