NAVRATRI 2024 : माता सुरकंडा का मंदिर जहां देवताओं ने मां से की थी प्रार्थना ?क्या है मंदिर का रहस्य : जानिए
उत्तराखंड राज्य को “देवताओं की भूमि” कहा जाता है, और यह नाम केवल उसके प्राकृतिक सौंदर्य के कारण नहीं है, बल्कि यहाँ के प्राचीन मंदिरों और पौराणिक मान्यताओं के कारण भी है। उत्तराखंड में कई ऐसे मंदिर हैं, जहाँ देवताओं के आने और यहाँ स्नान करने की बातें प्रचलित हैं। आज हम आपको बताएंगे एक ऐसे मंदिर के बारे में, जहाँ देवताओं ने अपनी मनोकामनाएँ पूरी करने के लिए प्रार्थना की और उन्हें वह फल भी मिला।
हम बात कर रहे हैं टिहरी जनपद के जौनुपर स्थित सुरकुट पर्वत पर स्थित सुरकंडा देवी मंदिर की। यह मंदिर समुद्रतल से लगभग तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और इसे धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
सुरकंडा देवी मंदिर: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
सुरकंडा देवी मंदिर की स्थापना के पीछे एक रोचक पौराणिक कहानी है। भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब हिमालय के राजा दक्ष ने कनखल में एक यज्ञ का आयोजन किया, तो उन्होंने अपने दामाद भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया। इस अपमान से देवी सती, जो भगवान शिव की पत्नी थीं, अत्यंत दुःखी और नाराज हो गईं।
अपने पति के अपमान के कारण, माता सती ने राजा दक्ष के यज्ञ में अग्नि को अर्पित किया। इससे भगवान शिव उग्र हो गए और उन्होंने माता सती के शव को त्रिशूल पर टांगकर आकाश में भ्रमण करना शुरू किया। इस दौरान, माता सती के शरीर के नौ अंग धरती पर गिरे, और ये सभी स्थान शक्तिपीठ कहलाए।
इन शक्तिपीठों में से एक स्थान वह है, जहाँ माता सती का सिर गिरा, जिसे माता सुरकंडा देवी के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर भक्तों के लिए एक श्रद्धा का केन्द्र है और यहाँ आने वाले लोग अपनी मनोकामनाएँ लेकर आते हैं।
देवताओं की प्रार्थना और मनोकामना
एक और महत्वपूर्ण कहानी इस मंदिर के संबंध में है जो इसे और भी रोचक बनाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब देवताओं ने देखा कि राक्षसों ने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया है, तो वे माता सुरकंडा देवी के मंदिर में जाकर प्रार्थना करने लगे। उन्होंने माता से निवेदन किया कि उन्हें उनका खोया हुआ राज्य वापस दिलाया जाए।
माता सुरकंडा देवी की कृपा से देवताओं की यह प्रार्थना सुन ली गई। उन्होंने राक्षसों से युद्ध किया और उन्हें पराजित कर स्वर्ग पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। इस घटना ने इस मंदिर को और भी महत्वपूर्ण बना दिया, जहाँ देवताओं ने विजय प्राप्त की थी।
धार्मिक महत्व और तीर्थ स्थल
सुरकंडा देवी मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह एक प्रमुख तीर्थ स्थल भी है। यहां हर साल हजारों श्रद्धालु आते हैं, जो माता के दर्शन करने और अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए उत्सुक रहते हैं।
मंदिर की भव्यता और प्राकृतिक सौंदर्य भी यहाँ आने वाले भक्तों को आकर्षित करता है। यह स्थान न केवल धार्मिक आस्था का केन्द्र है, बल्कि यहां की ऊँचाई और ठंडी हवा भी मन को शांति प्रदान करती है।
मंदिर की विशेषताएँ और त्योहार
सुरकंडा देवी मंदिर में विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान बड़ी धूमधाम से समारोह आयोजित किए जाते हैं। इस दौरान भक्तजन माता की आराधना करते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं और विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन करते हैं।
मंदिर के आस-पास की प्राकृतिक सुंदरता, जैसे घने जंगल, बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ और स्वच्छ हवा, इसे और भी आकर्षक बनाते हैं। भक्त यहाँ न केवल आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करते हैं, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य का भी आनंद लेते हैं।