Uttarakhand

DEHRADUN:पर्वतीय रामलीला के अनोखे किरदार, सचिवालय और विधानसभा के कर्मचारी बनते हैं राम और रावण

रामलीला का नाम सुनते ही आंखों के सामने एक धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव का चित्र उभरता है। लेकिन देहरादून की पर्वतीय रामलीला इससे कहीं ज्यादा अनोखी है। इस रामलीला में सचिवालय और विधानसभा के अधिकारी और कर्मचारी अपने-अपने कर्तव्यों के साथ-साथ रामलीला के किरदारों में भी ढल जाते हैं। दिनभर कार्यालय में काम करने के बाद, ये अधिकारी शाम होते ही मंच पर अपने अभिनय का जलवा बिखेरते हैं।

पर्वतीय रामलीला कमेटी का योगदान

पर्वतीय रामलीला कमेटी के संरक्षक जीवन सिंह बिष्ट, जो सचिवालय में मुख्य सुरक्षा अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं, इस लीला की सभी गतिविधियों की देखरेख करते हैं। रिहर्सल से लेकर स्टेज प्रबंधन तक, जीवन सिंह का योगदान इस लीला को सफल बनाने में अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनका नेतृत्व इस लीला के समग्र स्वरूप को बखूबी दर्शाता है।

विश्वामित्र का किरदार निभाते नकुल बधानी

नकुल बधानी, जो विधानसभा में सचिवालय सहायक हैं, इस वर्ष श्रीराम के बाद विश्वामित्र और कैकई का किरदार निभा रहे हैं। वे कहते हैं, “सुबह विधानसभा में काम करने के बाद शाम को किरदार निभाना चुनौतीपूर्ण है। लेकिन प्रभु राम की कृपा से सब संभव हो जाता है।” उनका अनुभव दर्शाता है कि कैसे रोजमर्रा की ज़िंदगी और सांस्कृतिक परंपराएं एक साथ चल सकती हैं।

रावण की भूमिका में संदीप ढैला

संदीप ढैला, विधानसभा में कंप्यूटर असिस्टेंट, पिछले दस वर्षों से रावण का किरदार निभा रहे हैं। वह बताते हैं, “रात को देर से सोना होता है और सुबह विधानसभा जाना पड़ता है। दोनों काम एक साथ करना कठिन है, लेकिन भगवान का आशीर्वाद है कि सब कुछ हो जाता है।” उनका यह संघर्ष वास्तव में समर्पण का प्रतीक है, जो दर्शाता है कि वे अपनी नौकरी के साथ-साथ सांस्कृतिक गतिविधियों को भी महत्व देते हैं।

ताड़का और मारीच का किरदार निभाने वाले शेर सिंह बिष्ट

शेर सिंह बिष्ट, जो मुख्यमंत्री की फ्लीट में ड्राइवर हैं, पिछले 14 वर्षों से रामलीला में मंचन कर रहे हैं। इस बार वे ताड़का और मारीच का किरदार निभा रहे हैं। वे कहते हैं, “काम के साथ प्रभु की लीला में शामिल होने का अवसर मिल रहा है, इससे बेहतर और क्या हो सकता है?” उनका यह दृष्टिकोण यह दर्शाता है कि कैसे वे अपने कार्य और सांस्कृतिक गतिविधियों के बीच संतुलन बना रहे हैं।

बाणासुर का किरदार निभाने वाले संजय नैनवाल

संजय नैनवाल, विधानसभा में असिस्टेंट मार्शल के पद पर कार्यरत हैं, वर्तमान में बाणासुर का किरदार निभा रहे हैं। उनका कहना है, “सुबह को नौकरी के बाद रामलीला की तैयारी के लिए भी जाना होता है। दोनों काम बेहद जरूरी हैं। प्रभु की कृपा से सब कुछ आसानी से हो रहा है।” उनकी मेहनत और समर्पण रामलीला के प्रति उनके प्यार को दर्शाते हैं।

दशरथ के किरदार में कैलाश पांडे

कैलाश पांडे, जो सचिवालय में अनुभाग अधिकारी के पद से रिटायर हो चुके हैं, पिछले 14 वर्षों से रामलीला में सक्रिय हैं। इस बार वे दशरथ का किरदार निभा रहे हैं। उनका कहना है, “दून से पहले मैंने पिथौरागढ़ में भी रामलीला का मंचन किया है।” उनकी यह यात्रा यह दर्शाती है कि रामलीला का प्रेम सिर्फ एक स्थान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक सांस्कृतिक आंदोलन है।

पर्वतीय रामलीला का महत्व

पर्वतीय रामलीला सिर्फ एक नाटक नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। इसमें भाग लेने वाले हर किरदार के पीछे एक कहानी होती है, जो उनके जीवन के अनुभवों और संघर्षों को दर्शाती है। ये अधिकारी दिनभर अपने पेशेवर जीवन में व्यस्त रहते हैं, लेकिन शाम को जब वे मंच पर आते हैं, तो वे अपने किरदार में पूरी तरह ढल जाते हैं। यह न केवल उनके लिए एक शौक है, बल्कि यह उन्हें अपने सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने का एक माध्यम भी है।

इस रामलीला में समुदाय का समर्थन भी महत्वपूर्ण है। स्थानीय लोग इस कार्यक्रम को देखने के लिए बड़ी संख्या में इकट्ठा होते हैं, जिससे कलाकारों को प्रोत्साहन मिलता है। यह एक ऐसा मंच है जहां समाज के सभी वर्गों के लोग मिलकर एक धार्मिक और सांस्कृतिक अनुभव साझा करते हैं।

पर्वतीय रामलीला में भाग लेने वाले अधिकारी और कर्मचारी यह साबित करते हैं कि काम और सांस्कृतिक गतिविधियों को एक साथ चलाया जा सकता है। उनका समर्पण और मेहनत हमें यह सिखाता है कि अगर दिल में लगन हो, तो हर चीज संभव है। यह रामलीला केवल एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में एकता, प्रेम, और सहयोग का प्रतीक है।

देहरादून की पर्वतीय रामलीला एक अद्वितीय सांस्कृतिक परंपरा है जो समाज के विभिन्न वर्गों को जोड़ती है। यहां के अधिकारी और कर्मचारी अपनी दिनचर्या के साथ-साथ रामलीला के पात्रों में ढलकर हमें दिखाते हैं कि कैसे एक समर्पण से भरा जीवन संभव है। इस प्रकार, पर्वतीय रामलीला हमारे सांस्कृतिक धरोहर का एक अनमोल हिस्सा है, जिसे हमें हर हाल में संरक्षित और प्रोत्साहित करना चाहिए।

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