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Dussehra 2024 : रावण अभी जिंदा है यकीन नहीं है तो ये ख़बर पढ़िए

12 अक्टूबर 2024 को देशभर में बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व दशहरा धूमधाम से मनाया जाएगा। यह त्यौहार न केवल रावण के पुतले जलाने का प्रतीक है, बल्कि समाज में व्याप्त बुराइयों के प्रति जागरूकता का भी अवसर है। जगह-जगह रावण के बड़े-बड़े पुतले धू-धू करके जलाए जाएंगे, लेकिन क्या केवल रावण के पुतले को जला देने से बुराई का अंत हो जाएगा? क्या वास्तव में रावण का अंत हो रहा है, या यह केवल एक औपचारिकता है? आज के समाज में फैली बुराइयाँ हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि रावण आज भी जीवित है।

रावण का प्रतीकात्मक अर्थ

आज का रावण केवल एक पौराणिक पात्र नहीं है, बल्कि वह हमारे समाज में व्याप्त बुराइयों का प्रतीक है। जब हम रावण के पुतले को जलाते हैं, तो क्या हम उन वास्तविक बुराइयों को समाप्त कर पा रहे हैं जो हमारे चारों ओर हैं? इस अंधेरे रूपी रावण को खत्म करने के लिए राम रूपी प्रकाश की आवश्यकता है। आइए जानते हैं समाज की उन बुराइयों के बारे में, जिनका दहन करने की आज आवश्यकता है।

समाज में व्याप्त बुराइयाँ

क्रोध

क्रोध एक ऐसी भावना है जो मनुष्य की सोचने-समझने की क्षमता को खत्म कर देती है। यह भावना न केवल व्यक्ति के लिए हानिकारक है, बल्कि इसके परिणामस्वरूप सामाजिक ताने-बाने में भी दरार आ जाती है। आजकल के लोगों में संयम की कमी होती जा रही है। क्रोध पर काबू न रख पाने की वजह से व्यक्ति किसी को भी हानि पहुंचाने में हिचकिचाता नहीं है। इससे न केवल व्यक्तिगत रिश्तों में दूरी आती है, बल्कि यह समाज में अराजकता भी पैदा करता है। इसलिए हमें अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए और शांति का मार्ग अपनाना चाहिए।

लोभ

लोभ सब पापों का केंद्र है। यह एक ऐसी भावना है जो व्यक्ति को नकारात्मक दिशा में ले जाती है। धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि बाहरी सुख-साधनों को जीवन का आधार मानना गलत है। लोभ व्यक्ति को ऐसे बंधनों में बांधता है, जो उसके विकास में बाधा डालते हैं। किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति आसक्ति रखने से मोह उत्पन्न होता है, जो अंततः दुख और संतोषहीनता का कारण बनता है। इसलिए हमें संतोष और सामर्थ्य को अपनाना चाहिए।

वासना

आज के समाज में वासना की भावना इतनी बढ़ गई है कि इसे नियंत्रित करना मुश्किल हो गया है। वासना व्यक्तियों को उस शून्यता में भर देती है, जो उन्हें गलत कदम उठाने के लिए प्रेरित करती है। अश्लील सामग्री का सेवन और उससे उत्तेजित होना मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। वासना से मुक्त होने के लिए हमें अपने विचारों को सकारात्मक दिशा में मोड़ना होगा।

लालच

लालच की भावना व्यक्ति के अंदर नकारात्मकता का निर्माण करती है। यह न केवल व्यक्ति की सोच को विकृत करती है, बल्कि जलन और ईर्ष्या जैसे भावनाओं को भी जन्म देती है। किसी वस्तु के प्रति लालच करना व्यक्ति के अंत का कारण बन सकता है। इसलिए हमें अपने जीवन में संतोष और सहिष्णुता को प्राथमिकता देनी चाहिए।

द्वेष

द्वेष की भावना भी समाज में व्याप्त बुराइयों में से एक है। रावण को उसके भाई विभीषण ने लाख समझाया, लेकिन उसके मन में द्वेष ने उसे और उसके साम्राज्य को विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया। दूसरों की खुशियों को देखकर जलना और द्वेष रखना व्यक्ति को आगे बढ़ने से रोकता है। समाज में हमें प्रेम और सहयोग की भावना को बढ़ावा देना चाहिए।

संस्कारों को भूलना

संस्कार ही वह नींव हैं, जो व्यक्ति को ऊंचाइयों पर ले जाते हैं। यदि हम अच्छे संस्कारों को अपनाते हैं, तो निश्चित रूप से समाज में बदलाव आएगा। एक अच्छे समाज की स्थापना अच्छे विचारों से होती है। संस्कारों को भूलकर हम अपनी पहचान को कमजोर करते हैं, जो हमारे लिए और समाज के लिए हानिकारक है।

झूठ न बोलना

झूठ एक छोटी सी बुराई है, लेकिन इसका प्रभाव बहुत बड़ा होता है। किसी भी बुराई की शुरुआत झूठ से होती है। झूठ बोलने की आदत से बचना चाहिए, क्योंकि यह न केवल व्यक्ति को बल्कि समाज को भी नुकसान पहुंचाता है। रावण का अंत भी झूठ से ही हुआ था। इसलिए हमें अपने जीवन में सत्य की राह अपनानी चाहिए।

छल-कपट

छल-कपट समाज में बुराइयों का एक प्रमुख कारण है। किसी की भावनाओं के साथ खेलना और अपने फायदे के लिए किसी को आहत करना सामान्य हो चुका है। यह न केवल आर्थिक बल्कि मानसिक रूप से भी लोगों को प्रताड़ित करता है। रामायण में रावण ने छल से सीता का हरण किया था, जिसका परिणाम उसे भुगतना पड़ा। समाज में छल-कपट को समाप्त करने के लिए हमें ईमानदारी को अपनाना होगा।

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