UTTARAKHAND वन विभाग की सक्रियता, तंत्र-मंत्र के अंधविश्वास से जूझते उल्लू
दिवाली का पर्व हर साल खुशियों और समृद्धि का प्रतीक बनकर आता है, लेकिन इस दौरान उल्लुओं के लिए यह समय संकट से भरा होता है। अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र के चलते कुछ लोग दिवाली पर उल्लुओं की बलि देने का सहारा लेते हैं। इससे यह लुप्तप्राय प्रजाति संकट में आ जाती है। उत्तराखंड वन महकमे ने इस गंभीर स्थिति को देखते हुए त्वरित कार्रवाई का निर्णय लिया है।
उल्लू और लक्ष्मी जी की पूजा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, उल्लू को लक्ष्मी जी का वाहन माना जाता है। दिवाली के समय लोग लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं, और यही वह समय है जब तंत्र-मंत्र के लिए उल्लू की मांग बढ़ जाती है। चौकड़ी पूजा, यंत्र पूजा और अन्य तांत्रिक क्रियाओं में उल्लू का विशेष स्थान है। यह अंधविश्वास न केवल उल्लुओं के लिए बल्कि वन्यजीव संरक्षण के लिए भी एक बड़ा खतरा बन गया है।
उल्लू की तस्करी की बढ़ती घटनाएं
उत्तराखंड के वन्यजीव क्षेत्रों में उल्लू की तस्करी की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। वन संरक्षित क्षेत्रों में उल्लू की संख्या में कमी देखी जा रही है, जिससे वन्यजीव विशेषज्ञ और संरक्षणकर्ता चिंतित हैं। पिछले कुछ वर्षों में उल्लू की आबादी में भारी गिरावट आई है, और यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो उल्लू विलुप्ति की कगार पर पहुंच सकता है।
संरक्षणकर्ताओं की चिंताएं
वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि उल्लू की तस्करी से जुड़ी घटनाएं अधिकतर उन क्षेत्रों में होती हैं जहां अंधविश्वास का बोलबाला है। ऐसे में उल्लू की मांग बढ़ जाती है, और तस्कर इसे पकड़कर लाखों रुपये में बेचने लगते हैं। यह स्थिति न केवल उल्लुओं के लिए खतरनाक है, बल्कि यह हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी गंभीर समस्या उत्पन्न कर रही है।
गश्त बढ़ाने की कार्रवाई
उत्तराखंड वन विभाग ने उल्लू की सुरक्षा के लिए विशेष अलर्ट जारी किया है। वन संरक्षक R.K. मिश्रा ने बताया कि विभाग ने जंगलों में गश्त बढ़ा दी है और उल्लू की तस्करी रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। उनका कहना है कि “अगर हमने अभी कड़े कदम नहीं उठाए, तो भविष्य में हमारी आने वाली पीढ़ियां इस खूबसूरत पक्षी को केवल किताबों में ही देख पाएंगी।”
वन विभाग की रणनीतियाँ
वन विभाग ने तस्करी पर नकेल कसने के लिए विशेष निगरानी दलों का गठन किया है। इन दलों का उद्देश्य जंगलों में गश्त बढ़ाना, संदिग्ध गतिविधियों पर नज़र रखना और उल्लू के तस्करों को पकड़ना है। इसके साथ ही, विभाग ने स्थानीय निवासियों को जागरूक करने के लिए कार्यक्रम आयोजित करने का भी निर्णय लिया है, ताकि वे इस गंभीर मुद्दे के प्रति जागरूक हो सकें।
दिवाली के दौरान तंत्र-मंत्र के अंधविश्वास के संदर्भ में पंडित कमलेश शास्त्री का कहना है, “कुछ लोग उल्लू के उपयोग का महत्त्व मानते हैं, लेकिन यह पूरी तरह से गलत है। यह एक अद्भुत प्रजाति है जिसे बचाना आवश्यक है। हमें इस दिशा में प्रयास करने की आवश्यकता है, ताकि उल्लू की तस्करी पर नियंत्रण पाया जा सके।”
जन जागरूकता की आवश्यकता
विशेषज्ञों का मानना है कि जन जागरूकता के बिना कोई भी प्रयास सफल नहीं हो सकता। लोगों को यह समझाने की आवश्यकता है कि उल्लू की बलि देना किसी भी प्रकार से उचित नहीं है। इसे न केवल नैतिक रूप से गलत माना जाना चाहिए, बल्कि यह हमारे पारिस्थितिकी संतुलन के लिए भी हानिकारक है।