DEHRADUN में 128 मलिन बस्तियों का किया गया वर्गीकरण, आठ साल बाद नगर निगम ने उठाया कदम
2016 में चिह्नित 128 मलिन बस्तियों का नगर निगम ने आठ साल बाद वर्गीकरण कर लिया है। इस वर्गीकरण के परिणामस्वरूप, 50 बस्तियों को श्रेणी एक और तीन में रखा गया है, जबकि 78 बस्तियों का वर्गीकरण अभी भी लंबित है। इन बस्तियों का अधिसूचनाकरण न होने से उनकी स्थिति अभी भी अनिश्चित बनी हुई है। यह वर्गीकरण प्रक्रिया विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सरकार के प्रयासों का हिस्सा है जो मलिन बस्तियों को सुरक्षा कवच प्रदान करने के लिए लगातार कदम उठा रही है।
सरकार की तीसरी पहल
हाल ही में, उत्तराखंड राज्य की नगर निकायों में अवस्थित मलिन बस्तियों के सुधार, विनियमितीकरण एवं पुनर्व्यस्थापन एवं अतिक्रमण निषेध अधिनियम 2016 के तहत देहरादून की मलिन बस्तियों को सुरक्षा प्रदान की गई। इस अधिनियम का उद्देश्य इन बस्तियों के चिह्नीकरण, वर्गीकरण और अधिसूचनाकरण की प्रक्रिया को प्रभावी बनाना था। नगर निगम ने पहले सर्वेक्षण कर 128 बस्तियों का चिह्नीकरण किया था, लेकिन वर्गीकरण प्रक्रिया में देरी हो गई थी।
वर्गीकरण की प्रक्रिया
हाल ही में नगर निगम ने इन बस्तियों का वर्गीकरण किया है, जिसमें तीन बस्तियां—कुम्हार बस्ती (अजबपुर), लोहारवाला किशनपुर, और मच्छी तालाब—को श्रेणी एक में रखा गया है। वहीं, 47 बस्तियों को श्रेणी तीन में रखा गया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि श्रेणी दो की भूमि में कोई भी बस्ती वर्गीकृत नहीं की गई।
श्रेणियों का विवरण
मलिन बस्तियों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है:
- श्रृंखला एक: इस श्रेणी में वे बस्तियां शामिल हैं जिनमें घर निवास योग्य हैं और जिन्हें भू-स्वामित्व का अधिकार निर्धारित मानकों के अनुसार दिया जा सकता है।
- श्रृंखला दो: इस श्रेणी में वे भूमि शामिल हैं जो पर्यावरणीय या भौगोलिक दृष्टि से संवेदनशील हैं। ऐसे क्षेत्रों को सुरक्षा उपायों के साथ निवास योग्य बनाया जा सकता है।
- श्रृंखला तीन: इस श्रेणी में वे बस्तियां शामिल हैं जो विधिक, व्यावहारिक, मानव निवास, स्वास्थ्य और सुरक्षा के दृष्टिकोण से उपयुक्त नहीं हैं।
राजनीतिक संदर्भ और चुनावी महत्व
निकाय चुनावों के नजदीक, मलिन बस्तियों का मुद्दा भाजपा और कांग्रेस के लिए बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। पिछले तीन वर्षों में किसी भी राजनीतिक संगठन ने मलिन बस्तियों के मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया। हालाँकि, विपक्ष ने समय-समय पर बयानबाजी के माध्यम से सरकार को इन बस्तियों की याद दिलाई है। अब, नगर निगम ने अक्टूबर महीने में भूमि का वर्गीकरण कर चुनावी माहौल में इसे एक नई दिशा दी है।
78 बस्तियों का लंबित वर्गीकरण
दूसरी ओर, नगर निगम ने 78 बस्तियों का वर्गीकरण नहीं कर पाया है। यह बस्तियां नॉन जेड-ए श्रेणी पर हैं, जिसमें निजी भूमि और गैर जमींदारी विनाश अधिनियम के तहत निकाली गई भूमि शामिल है। इन बस्तियों के वर्गीकरण का निर्णय शासन के ऊपर छोड़ा गया है। नगर निगम ने इस संबंध में रिपोर्ट शासन को भेज दी है।
भविष्य की दिशा
मलिन बस्तियों का वर्गीकरण एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसे आगे बढ़ाने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है। स्थानीय प्रशासन को इन बस्तियों के सुधार और पुनर्व्यवस्थापन के लिए ठोस योजनाएं बनानी होंगी। यह केवल नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और विकास के लिए भी आवश्यक है।
इस वर्गीकरण के निर्णय पर नागरिकों की मिश्रित प्रतिक्रियाएं आई हैं। कुछ नागरिक इसे एक सकारात्मक कदम मानते हैं, जो उनकी बस्तियों की स्थिति को सुधारेगा। वहीं, कुछ नागरिकों का मानना है कि अब भी बहुत काम बाकी है और उचित निर्णय लेने में देरी नहीं होनी चाहिए।