UTTARAKHAND : माणा गांव में पांडवों की मूर्तियों ने पर्यटकों को किया आकर्षित
माणा (उत्तराखंड): देश के प्रथम गांव माणा में सरस्वती नदी के किनारे स्वर्गारोहण ट्रेक पर बनाई गई पांडवों और द्रोपदी की मिश्र धातु की मूर्तियां तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए एक अद्वितीय आकर्षण का केंद्र बन गई हैं। यह मूर्तियां न केवल अपनी सुंदरता के लिए जानी जा रही हैं, बल्कि ये श्रद्धालुओं को विशेष आध्यात्मिक शांति भी प्रदान कर रही हैं।
पांडवों की मूर्तियों का निर्माण
वर्ष 2021 में, एमआइटी पुणे, महाराष्ट्र के संस्थापक और अध्यक्ष डॉ. विश्वनाथ कराड़ ने स्वर्गारोहिणी सतोपंथ मार्ग पर सरस्वती नदी के किनारे एक भव्य सरस्वती माता का मंदिर स्थापित किया। इसके साथ ही, उन्होंने पांडवों की मूर्तियों की स्थापना का निर्णय लिया, जो अब इस क्षेत्र के प्रमुख आकर्षणों में से एक बन गई हैं। माणा गांव के मणि भद्रपुर में भीम पुल के पास स्थित इस मंदिर और मूर्तियों की बेहतरीन नक्काशी ने हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित किया है।
मूर्तियों की विशेषताएँ
सरस्वती नदी के किनारे स्थापित इन मूर्तियों में कुल सात मूर्तियां हैं, जिनमें पांच पांडव, द्रोपदी और एक पथ प्रदर्शक स्वान की मूर्ति शामिल है। ग्राम प्रधान पीतांबर मोल्फा के अनुसार, ये मिश्र धातु की मूर्तियां चार क्विंटल से लेकर 13 क्विंटल वजनी हैं। यह जानकारी पर्यटकों के बीच चर्चा का विषय बन गई है, और लोग इन मूर्तियों के साथ अपनी तस्वीरें खिंचवा रहे हैं और पूजा-अर्चना भी कर रहे हैं।
आध्यात्मिक शांति का अनुभव
बसुधारा स्वर्गारोहिणी मार्ग पर स्थित ये मूर्तियां उन तीर्थ यात्रियों के लिए विशेष आध्यात्मिक शांति का अनुभव प्रदान कर रही हैं, जो बदरीनाथ धाम के दर्शनों के बाद माणा भीम पुल, व्यास गुफा, सत्य पथ सतोपंथ स्वर्गारोहिणी बसुधारा की ओर जा रहे हैं। तीर्थयात्री इन स्थलों पर पहुंचकर न केवल धार्मिक भावनाओं को महसूस कर रहे हैं, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य के बीच आध्यात्मिक अनुभव भी प्राप्त कर रहे हैं।
सरस्वती नदी का महत्व
सरस्वती नदी, जो माणा गांव से निकलती है, उस समय लुप्त नहीं होती जब यह भीम पुल के आगे जाती है। भूगर्भीय हलचल के कारण नदी का कुछ प्रवाह भूमिगत हो गया है, जिससे यह विलुप्त प्रतीत होती है। महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतीहारी के कुलाधिपति पद्मश्री डॉ. महेश शर्मा ने इस नदी के उद्गम स्थल का अध्ययन करने के बाद यह जानकारी दी है। उन्होंने क्षेत्र के ग्रामीणों के साथ विशेष बैठक की और उन्हें इस संबंध में जागरूक किया।
स्थानीय विकास और जैव विविधता
डॉ. शर्मा ने बताया कि इसरो भी सरस्वती नदी के अध्ययन में लगा हुआ है, और अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय स्थापित कर इस क्षेत्र की जैव विविधता और संसाधनों के संरक्षण पर काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की जैव संपदा विशेष है, और इस क्षेत्र में कृषि और उद्यानिकी के विकास के लिए वैज्ञानिक प्रबंधन की आवश्यकता है।
सरकारी पहल और स्थानीय संवाद
शिवालिक देवभूमि ट्रस्ट के माध्यम से उत्तराखंड के लगभग सौ गांवों में विकास को लेकर जनता के साथ संवाद स्थापित किया जा रहा है। डॉ. शर्मा ने गांवों की जरूरतों और अनुभवों को जानने के लिए विशेष प्रयास किए हैं। उन्होंने बताया कि स्थानीय संसाधनों का संरक्षण और विकास आवश्यक है ताकि पहाड़ों से हो रहे पलायन को रोका जा सके।
पर्यटकों का अनुभव
पर्यटकों ने इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिकता के बीच इस नई पहल का स्वागत किया है। एक पर्यटक ने कहा, “यहां आकर मुझे एक अद्भुत अनुभव हुआ है। मूर्तियां न केवल खूबसूरत हैं, बल्कि उनके साथ जो शांति है, वह अनमोल है। मैं यहां अपनी यात्रा को यादगार बनाने के लिए आया था और यह जगह वास्तव में खास है।”
माणा गांव की इस अद्वितीय पहल ने न केवल तीर्थयात्रियों के लिए एक नया आकर्षण जोड़ा है, बल्कि इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित किया जा सकता है। स्थानीय प्रशासन और ट्रस्ट इस दिशा में कई योजनाएं बना रहे हैं, जिसमें सुविधाएं बढ़ाने और इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने पर जोर दिया जाएगा।