Uttarakhand

UTTARAKHAND : पहली बार गंगा किनारे मनाया गया गंगा उत्सव, हरिद्वार का चंडी घाट हुआ रोशन

हरिद्वार, 2024: इस वर्ष गंगा उत्सव का आयोजन एक ऐतिहासिक मोड़ पर हुआ, जब पहली बार गंगा किनारे—हरिद्वार के चंडी घाट पर यह उत्सव मनाया गया। यह उत्सव न सिर्फ मां गंगा की पूजा अर्चना का अवसर था, बल्कि गंगा और अन्य नदियों के संरक्षण को लेकर एक जागरूकता अभियान भी था। कार्यक्रम में नमामि गंगे मिशन के महानिदेशक राजीव मित्तल ने भी शिरकत की, जिन्होंने गंगा के महत्व को समझाते हुए कहा कि यह आयोजन एक अभियान है, जो नदियों के संरक्षण और जल जीवन के महत्व को उजागर करता है।

गंगा उत्सव: नदियों को जीवन का आधार बनाना है उद्देश्य

राजीव मित्तल ने इस मौके पर बताया कि गंगा उत्सव का मुख्य उद्देश्य गंगा और अन्य नदियों के संरक्षण के प्रति समाज में जागरूकता फैलाना है। उन्होंने कहा, “यह उत्सव केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक बड़ा अभियान है, जिसके माध्यम से हम यह समझाना चाहते हैं कि नदियां केवल जल का स्रोत नहीं हैं, बल्कि जीवन का आधार हैं।”

इस उत्सव का आयोजन गंगा के किनारे, विशेष रूप से हरिद्वार के चंडी घाट पर किया गया, जो गंगा नदी के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। चंडी घाट पर आयोजित इस महापर्व में न सिर्फ गंगा की पूजा की गई, बल्कि गंगा नदी के संरक्षण के लिए विभिन्न गतिविधियां भी आयोजित की गईं। मित्तल ने यह भी बताया कि इस बार गंगा उत्सव का आयोजन केवल उत्तराखंड में नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, और उत्तर पूर्वी राज्यों में भी किया जा रहा है।

गंगा उत्सव की विशेषताएं

गंगा उत्सव के दौरान हरिद्वार का चंडी घाट पूरी तरह से सजाया गया था और रात के समय घाट पर दीपों से दीपमालिका सजाई गई। चंडी घाट की जगमगाहट ने एक अद्वितीय दृश्य प्रस्तुत किया। हजारों श्रद्धालु और पर्यटक इस अवसर पर एकत्रित हुए और मां गंगा की पूजा अर्चना की। इस दौरान वहां विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया, जिसमें पारंपरिक संगीत, नृत्य, और गंगा से जुड़ी धार्मिक कृत्याओं का प्रदर्शन हुआ।

राजीव मित्तल ने बताया कि इस उत्सव में नदियों के महत्व को समझाने के लिए विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं। उनका कहना था कि गंगा नदी के संरक्षण के लिए इसे सिर्फ एक धार्मिक स्थल के रूप में नहीं देखा जा सकता। “हमारा उद्देश्य गंगा को एक जीवंत नदी के रूप में संरक्षित करना है, ताकि आने वाली पीढ़ियां इसका लाभ उठा सकें।”

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का संदेश

गंगा उत्सव में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भी ऑनलाइन जुड़कर संबोधित करना था, लेकिन अल्मोड़ा में एक सड़क हादसे के कारण उन्होंने अपना कार्यक्रम स्थगित कर दिया। मुख्यमंत्री धामी हादसे में घायल किशोरों से मिलने के लिए सीधे अल्मोड़ा पहुंचे। उन्होंने इस दौरान केवल हादसे पर दुख जताया और अपने संबोधन को छोटा रखते हुए मृतकों के परिवारों के प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त की।

मुख्यमंत्री का गंगा उत्सव में ना पहुंच पाना

हालांकि, मुख्यमंत्री के आगमन को लेकर प्रशासनिक स्तर पर पूरी तैयारियां की गई थीं। राज्य के विभिन्न हिस्सों से गंगा उत्सव में भाग लेने के लिए लोग और सरकारी अधिकारी एकत्रित हुए थे। मुख्यमंत्री के ऑनलाइन संबोधन का कार्यक्रम तय किया गया था, लेकिन अल्मोड़ा में हुए सड़क हादसे के कारण उन्हें अपना कार्यक्रम स्थगित कर अल्मोड़ा के लिए रवाना होना पड़ा।

राज्य प्रशासन ने मुख्यमंत्री के आदेशों के अनुसार राहत कार्य में जुटे अधिकारियों को सक्रिय किया और सीएम की अनुपस्थिति में अधिकारियों ने गंगा उत्सव के आयोजन की सभी गतिविधियों को सुनिश्चित किया।

गंगा उत्सव का महत्व और भविष्य

गंगा उत्सव के आयोजन का महत्व केवल इस उत्सव तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भविष्य में गंगा नदी और अन्य नदियों के संरक्षण के लिए एक लंबी प्रक्रिया का हिस्सा बन सकता है। इस प्रकार के आयोजनों से न केवल धार्मिक आस्था को बल मिलता है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी समाज की सोच बदलने में मदद मिलती है।

राजीव मित्तल ने कहा, “हमारे लिए यह उत्सव केवल एक दिन का आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक निरंतर चलने वाली मुहिम है, जिसमें हम गंगा और अन्य नदियों को संरक्षित रखने के लिए कार्य कर रहे हैं। इस उत्सव के माध्यम से हम नदियों के महत्व को जन-जन तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।”

गंगा उत्सव के आयोजन के बाद अब यह सुनिश्चित किया जाएगा कि यह आयोजन हर साल गंगा के किनारे और अन्य प्रमुख नदियों के पास नियमित रूप से मनाया जाए। इसके माध्यम से न केवल नदियों के महत्व को उजागर किया जाएगा, बल्कि गंगा और अन्य नदियों के पानी की गुणवत्ता और पारिस्थितिकी तंत्र को सुधारने के लिए भी कदम उठाए जाएंगे।

गंगा के महत्व पर एक नई सोच

गंगा उत्सव ने यह स्पष्ट कर दिया कि नदियों का संरक्षण सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह एक सामूहिक प्रयास है जिसमें हर नागरिक को अपनी भूमिका निभानी होगी। मित्तल ने कहा, “हम चाहते हैं कि हर व्यक्ति गंगा और अन्य नदियों की सफाई में अपना योगदान दे, क्योंकि यह हमारे जीवन का हिस्सा हैं।”

इस अवसर पर विभिन्न पर्यावरणीय संगठनों, समाजसेवियों और जलवायु कार्यकर्ताओं ने भी गंगा उत्सव के आयोजन में भाग लिया और नदियों के संरक्षण पर जागरूकता फैलाने के लिए कई अभियान चलाए।

निष्कर्ष

गंगा उत्सव का आयोजन न केवल गंगा नदी के प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है, बल्कि यह एक व्यापक सामाजिक और पर्यावरणीय आंदोलन का हिस्सा है, जो नदियों के संरक्षण और जल जीवन के महत्व को समझाने के लिए किए जा रहे प्रयासों का हिस्सा है। अब यह देखना होगा कि सरकार और समाज इस उत्सव के माध्यम से गंगा और अन्य नदियों के संरक्षण के लिए किन कदमों को उठाते हैं और इस आंदोलन को कितनी सफलता मिलती है।

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