देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश और कुमाऊं में छठ महापर्व की धूम, पहाड़ से लेकर मैदान तक उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
उत्तराखंड में इस बार छठ महापर्व की अनोखी छटा देखने को मिली। यह पर्व राज्य के विभिन्न हिस्सों में श्रद्धा, भक्ति और उल्लास के साथ मनाया गया। देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश से लेकर कुमाऊं तक, छठ व्रति उत्साह के साथ अपने-अपने छठ घाटों पर पहुंचे और सूर्य भगवान की पूजा में रत रहे। विशेष रूप से इस पर्व के तीसरे दिन, छठ व्रति गंगा, यमुना और अन्य जलस्रोतों में खड़े होकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देते हुए भगवान भास्कर की पूजा अर्चना कर रहे थे।
36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत
इस महापर्व के दौरान व्रतियों ने 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा था, जिसमें उन्होंने न तो पानी पीने का कोई अधिकार लिया और न ही कोई अन्य खाद्य सामग्री का सेवन किया। इस कठिन व्रत के साथ-साथ व्रति पूरे मनोयोग से छठ महापर्व की धार्मिक परंपराओं का पालन कर रहे थे। छठ पूजा का यह अनुष्ठान विशेष रूप से महिलाओं द्वारा बड़ी श्रद्धा और समर्पण के साथ किया जाता है। व्रति परिवार की सुख-समृद्धि, संतान सुख और जीवन में खुशहाली की कामना करते हैं।
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य: परंपरा और श्रद्धा का संगम
छठ पूजा का प्रमुख आकर्षण सूर्य के अस्ताचल होते वक्त दिया जाने वाला अर्घ्य है। व्रति सायं कालीन अर्घ्य देते समय भगवान सूर्य से आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करते हैं। इस दौरान व्रति घाटों पर खड़े होकर जल में खड़े होते हैं और अपने दोनों हाथों से सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह अर्घ्य देवता को समर्पित करने का एक विशिष्ट तरीका है, जिसमें सूरज को जल अर्पित किया जाता है और उनकी आराधना की जाती है। छठ पूजा की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे पूरे विधान के साथ किया जाता है।
उत्तराखंड में छठ महापर्व के आयोजन में खास इंतजाम
उत्तराखंड सरकार और स्थानीय प्रशासन ने छठ पूजा को लेकर सुरक्षा से लेकर हर पहलू पर खास इंतजाम किए थे। देहरादून और अन्य शहरों में छठ पूजा के दौरान घाटों पर विशेष ध्यान रखा गया। यहां सैकड़ों कार्यकर्ता तैनात किए गए थे, जिनका कार्य श्रद्धालुओं की मदद करना और किसी भी अप्रिय घटना को रोकना था। इसके अलावा महिला टीम और चिकित्सकों की टीम भी विशेष रूप से तैनात की गई थी ताकि किसी प्रकार की असुविधा या आपातकालीन स्थिति में तुरंत मदद मिल सके।
ऋषिकेश और त्रिवेणी घाट पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़
ऋषिकेश में भी छठ महापर्व के दौरान त्रिवेणी घाट पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। विशेष रूप से उत्तर भारतीय राज्यों से आए श्रद्धालु यहां इकट्ठा हुए थे। उत्तराखंड के साथ ही पूर्वांचल और बिहार क्षेत्र के लोग भी इस पर्व को बड़े धूमधाम से मना रहे थे। छठ पूजा के दौरान श्रद्धालु पारंपरिक गीत गाते हुए घाटों की ओर बढ़ रहे थे। “कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाए…” जैसे पारंपरिक गीतों के साथ व्रति और श्रद्धालु घाटों तक पहुंचते थे।
पारंपरिक गीत और संस्कृति का अनूठा संगम
उत्तराखंड में छठ पूजा के दौरान पारंपरिक गीतों का बहुत महत्व है। “कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाए…” जैसे गीतों के माध्यम से श्रद्धालु अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। यह गीत विशेष रूप से बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में प्रचलित है और अब यह उत्तराखंड में भी बड़े धूमधाम से गाए जाते हैं। इन गीतों के माध्यम से श्रद्धालु अपनी आस्था और विश्वास को भगवान सूर्य तक पहुंचाते हैं।
इसके अलावा, छठ पूजा के दौरान श्रद्धालु घाटों पर दीपक जलाकर सूर्य की आराधना करते हैं। दीपों की रौशनी और सूर्य की पूजा का यह दृश्य अत्यंत भव्य और आकर्षक होता है। कई घाटों पर रंग-बिरंगे चादरों और सजावटों से भी वातावरण को एक धार्मिक और सांस्कृतिक माहौल दिया गया था।
छठ महापर्व का महत्व और इसकी धार्मिक परंपराएं
छठ महापर्व का महत्व सनातन धर्म में अत्यधिक है। यह पर्व विशेष रूप से सूर्य देवता की पूजा करने के लिए मनाया जाता है। यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है और प्रत्येक दिन की अपनी एक विशेष पूजा और अनुष्ठान विधि होती है।
पहला दिन ‘नहाय-खाय’ होता है, जिसमें व्रति अपने शरीर को शुद्ध करते हैं और फिर विशेष प्रकार का पकवान बनाते हैं। दूसरे दिन ‘खरना’ होता है, जब व्रति दिनभर उपवासी रहते हैं और शाम को एक विशेष व्रत का आयोजन करते हैं। तीसरे दिन सूर्य के अस्ताचल होते वक्त अर्घ्य अर्पित किया जाता है। चौथे दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ यह पर्व संपन्न होता है।
इस महापर्व के माध्यम से श्रद्धालु अपने जीवन के हर पहलू में शुभता की कामना करते हैं। यह पर्व प्राकृतिक तत्त्वों की पूजा का प्रतीक है और प्रकृति के प्रति आस्था और सम्मान को दर्शाता है।
छठ महापर्व का समापन: उदीयमान सूर्य के अर्घ्य से
शुक्रवार को उदीयमान सूर्य के अर्घ्य के साथ ही यह पर्व समाप्त होगा। इस दिन व्रति फिर से सूर्य की उपासना करेंगे और अपनी मेहनत और भक्ति के बाद सूर्य देवता से आशीर्वाद प्राप्त करेंगे। यह दिन विशेष रूप से एक नई ऊर्जा और उम्मीद का प्रतीक होता है, क्योंकि व्रति सूर्योदय के साथ अपने उपवास को समाप्त करते हैं और इस पर्व को श्रद्धा और समर्पण के साथ सम्पन्न करते हैं।
इस बार उत्तराखंड में छठ महापर्व की धूम और उल्लास ने यह साबित कर दिया कि यह पर्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का भी प्रतीक है।