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केदारनाथ के भैरव-झांप की रहस्यमयी मान्यता कूदकर जान देने से मिलता है मोक्ष

उत्तराखंड, जो धार्मिकता और पुरानी मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है, एक ऐसी प्राचीन मान्यता भी मौजूद है, जो कई पीढ़ियों से चली आ रही है। यह मान्यता केदारनाथ से जुड़ी है, जहां एक ऐसी पहाड़ी चोटी पर लोग कभी अपनी जान दे देते थे, मान्यता थी कि वहां प्राण त्यागने से जन्म-मृत्यु के बंधनों से मुक्ति मिलती थी। यह स्थान है भैरव-झांप, जो केदारनाथ मंदिर से करीब छह किलोमीटर दूर स्थित है। इस मान्यता के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति इस पहाड़ी चोटी से कूदकर आत्महत्या करता था, तो उसे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती थी और उसे मोक्ष प्राप्त होता था। हालांकि, यह प्रथा अब खत्म हो चुकी है, लेकिन प्राचीन समय में यहां सैकड़ों लोग आत्महत्या करने आते थे, ताकि वे इस जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो सकें।

केदारनाथ और भैरव नाथ का धार्मिक संबंध

केदारनाथ, जो कि भारत के प्रमुख चार धाम तीर्थ स्थल में से एक है, अपनी धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां हर साल हजारों श्रद्धालु आते हैं और भगवान शिव के दर्शन करते हैं। केदारनाथ मंदिर के आसपास कई प्राचीन मान्यताएँ और कथाएं जुड़ी हुई हैं। इन्हीं में से एक कथा भैरव नाथ से संबंधित है।

केदारनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक छोटा सा मंदिर है, जो भैरव नाथ को समर्पित है। भैरव नाथ की पूजा केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने और बंद होने के समय विशेष रूप से की जाती है। माना जाता है कि जब बाबा केदारनाथ के कपाट बंद हो जाते हैं, तब भैरव नाथ ही केदारनाथ भूमि की रक्षा करते हैं और उस दौरान उनके द्वारा की गई पूजा और अनुष्ठान के माध्यम से क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है।

यह मान्यता है कि भैरव नाथ के बिना, केदारनाथ का क्षेत्र अपनी रक्षा नहीं कर सकता। भैरव नाथ को विशेष रूप से रक्षक देवता माना जाता है, जो संकटों और समस्याओं से मुक्ति दिलाने में सक्षम होते हैं। भैरव नाथ का मंदिर बहुत पुराना है और तीर्थयात्रियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण स्थान है।

भैरव-झांप: वो पहाड़ी चोटी जहाँ मिलती थी मुक्ति

भैरव नाथ के मंदिर के ठीक ऊपर, केदारनाथ मंदिर से लगभग छह किलोमीटर दूर एक पहाड़ी चोटी है, जिसे भैरव-झांप कहा जाता है। यह जगह सदियों तक आत्महत्या के लिए प्रसिद्ध रही। प्राचीन समय में, लोग यहां आकर जान देने की कोशिश करते थे, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि यहां आत्महत्या करने से उन्हें जन्म-मृत्यु के बंधनों से मुक्ति मिलती थी।

मान्यता के अनुसार, जब कोई व्यक्ति भैरव-झांप से कूदकर अपनी जान दे देता था, तो उसे सारे पापों से मुक्ति मिलती थी और उसे मोक्ष प्राप्त होता था। इस स्थान का नाम भी इसके विशेष महत्व को दर्शाता है – “झांप” शब्द का अर्थ है कूदना।

इतिहासकारों और धार्मिक जानकारों के अनुसार, यह प्रथा बहुत ही पुरानी थी और इसका संबंध हिन्दू धर्म के कुछ गहरे विश्वासों से था। खासकर, जब व्यक्ति जीवन से दुखी होता था या उसे लगता था कि उसके पापों का प्रायश्चित संभव नहीं है, तो वह भैरव-झांप का रुख करता था। ऐसा माना जाता था कि यहां कूदने से न केवल वह व्यक्ति पापों से मुक्त हो जाता था, बल्कि उसे अनंत शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती थी।

प्रथा का अंत और बदलाव

हालांकि, समय के साथ यह प्रथा धीरे-धीरे समाप्त हो गई। आधुनिकता के साथ-साथ इस प्रकार की मान्यताएँ और प्रथाएँ भी बदलने लगीं। अब भैरव-झांप स्थान का धार्मिक महत्व तो बना हुआ है, लेकिन वहां कूदकर जान देने की घटनाएं बहुत कम हो चुकी हैं।

आजकल केदारनाथ और भैरव नाथ मंदिर के आस-पास के लोग इस स्थान को श्रद्धा से देखते हैं, लेकिन जान देने की प्रथा अब पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। इसके बजाय, लोग अब यहां आकर अपनी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और ईश्वर से आशीर्वाद मांगते हैं।

इसके साथ ही, उत्तराखंड सरकार और धार्मिक संस्थाएं भी इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए प्रयासरत हैं। वे लोगों को मानसिक स्वास्थ्य और आंतरिक शांति की ओर प्रोत्साहित करते हैं, ताकि किसी भी व्यक्ति को आत्महत्या करने का विचार न आए।

भैरव-झांप का वर्तमान: श्रद्धा और शांति का स्थान

आज के समय में, भैरव-झांप एक महत्वपूर्ण धार्मिक और पर्यटन स्थल बन चुका है। यहां आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक अब इस स्थान को शांति और भक्ति के रूप में देखते हैं, न कि आत्महत्या के स्थान के रूप में। यह जगह अब एक प्रतीक बन चुकी है, जहां लोग अपने जीवन के तनावों और दुखों से उबरने के लिए आकर शांति का अनुभव करते हैं।

इसके अलावा, केदारनाथ के अन्य धार्मिक स्थल और भैरव नाथ के मंदिर भी लोगों के लिए आस्था और श्रद्धा का स्रोत बने हुए हैं। हर साल बड़ी संख्या में तीर्थयात्री इन स्थानों पर आते हैं और भगवान शिव और भैरव नाथ से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

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