PUNJAB : हरियाणा विधानसभा की नई इमारत पर सियासत , वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने राज्यपाल से की मुलाकात
चंडीगढ़, 15 नवंबर 2024: पंजाब के वित्त मंत्री एडवोकेट हरपाल सिंह चीमा और शिक्षा मंत्री हरजोत बैंस ने शुक्रवार को पंजाब के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया से चंडीगढ़ स्थित पंजाब राज भवन में मुलाकात की। इस मुलाकात में, चीमा ने राज्यपाल से चंडीगढ़ में हरियाणा विधानसभा के लिए 10 एकड़ भूमि आवंटन के प्रस्ताव पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने की मांग की। यह मुद्दा पंजाब के अधिकारों और चंडीगढ़ के प्रशासनिक स्थिति से जुड़ा हुआ है, जिसे लेकर पंजाब सरकार और केंद्र सरकार के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है।
पंजाब और चंडीगढ़ पर अधिकार का विवाद
वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने राज्यपाल से मुलाकात के दौरान कहा कि चंडीगढ़ पर पंजाब का अधिकार पूरी तरह से स्थापित है और इसे लेकर कोई भी समझौता नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, “पंजाब के 22 गांवों को उजाड़ कर चंडीगढ़ शहर बसाया गया था। 1966 में जब पंजाब और हरियाणा का बंटवारा हुआ, तब अस्थायी तौर पर हरियाणा को चंडीगढ़ में अपने प्रशासनिक कार्यों के संचालन के लिए स्थान दिया गया था, लेकिन चंडीगढ़ पर केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर पूरा अधिकार पंजाब का है।”
चीमा ने यह भी कहा कि यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में रखा गया था, लेकिन इसका नियंत्रण पूरी तरह से पंजाब के पास है। उनका यह भी कहना था कि चंडीगढ़ में हरियाणा विधानसभा के लिए भूमि आवंटन की प्रक्रिया पंजाब के अधिकारों का उल्लंघन करती है, और इसे तत्काल रोक दिया जाना चाहिए।
चंडीगढ़ के विवादित मुद्दे पर पुरानी सरकारों की लापरवाही
मुलाकात के बाद मीडिया से बात करते हुए, वित्त मंत्री ने कांग्रेस, भाजपा और शिरोमणि अकाली दल की सरकारों पर निशाना साधते हुए कहा कि यह इन दलों की बड़ी लापरवाही है, जिसका खामियाजा आज पंजाब को भुगतना पड़ रहा है। चीमा ने आरोप लगाया कि लंबे समय तक पंजाब में कांग्रेस की सरकार और गठबंधन सरकारों के तहत भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के नेतृत्व में चंडीगढ़ पर पंजाब के अधिकार को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
“कांग्रेस, भाजपा और शिरोमणि अकाली दल की सरकारों ने इस मुद्दे को कभी गंभीरता से नहीं उठाया। अब, केंद्र सरकार साजिश के तहत चंडीगढ़ में हरियाणा के अधिकार क्षेत्र को बढ़ावा दे रही है, ताकि पंजाब के अधिकारों का हनन हो सके।” चीमा ने यह आरोप लगाया कि इन दलों ने चंडीगढ़ के अधिकारों पर पंजाब की स्थिति को लेकर कभी भी केंद्र के समक्ष कोई गंभीर बातचीत नहीं की, और अब पंजाब को इसके परिणामस्वरूप यह संकट सामना करना पड़ रहा है।
राज्यपाल से ज्ञापन सौंपा, कानूनी कदम की चेतावनी
वित्त मंत्री ने राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया से मुलाकात के बाद, उन्हें इस मामले में एक ज्ञापन भी सौंपा। ज्ञापन में, उन्होंने चंडीगढ़ में हरियाणा विधानसभा के लिए नई इमारत की मंजूरी देने के प्रस्ताव पर पंजाब के पक्ष को मजबूती से रखने का आग्रह किया। चीमा ने राज्यपाल से अनुरोध किया कि वह इस मुद्दे को गंभीरता से उठाएं और पंजाब के अधिकारों का उल्लंघन होने से रोकने के लिए केंद्र सरकार से दबाव डालें।
“हम इस मुद्दे पर कानूनी कदम उठाने के लिए तैयार हैं। अगर केंद्र सरकार इस मामले में पंजाब के अधिकारों की अनदेखी करती है, तो हम इसके खिलाफ कानूनी लड़ाई भी लड़ने के लिए तैयार हैं,” वित्त मंत्री ने कहा। उन्होंने यह भी बताया कि सरकार ने लीगल एक्सपर्ट्स को निर्देश दिया है कि वे इस मुद्दे पर कानूनी रूप से तैयारी करें, ताकि चंडीगढ़ में हरियाणा विधानसभा के लिए नई इमारत की मंजूरी देने से पहले पंजाब और हरियाणा के बंटवारे के समय बनी व्यवस्था को लेकर कानूनी दृष्टिकोण से पूरी जांच की जा सके।
चंडीगढ़ और पंजाब-हरियाणा विवाद का ऐतिहासिक संदर्भ
चंडीगढ़ को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच विवाद नए नहीं हैं। 1966 में जब पंजाब का विभाजन हुआ और हरियाणा राज्य का निर्माण हुआ, तो चंडीगढ़ को एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में रखा गया था, जो दोनों राज्यों के लिए एक साझा राजधानी के रूप में कार्य करता था। हालांकि, समय के साथ चंडीगढ़ को लेकर विवाद बढ़ते गए, खासकर हरियाणा की बढ़ती प्रशासनिक जरूरतों के कारण।
हरियाणा सरकार लंबे समय से चंडीगढ़ में अपनी विधानसभा के लिए एक अलग इमारत बनाने की मांग कर रही है, लेकिन पंजाब इसका विरोध करता आ रहा है। पंजाब का यह कहना है कि चंडीगढ़ का नियंत्रण पूरी तरह से पंजाब के पास होना चाहिए, और हरियाणा के लिए यहां प्रशासनिक कार्यों के लिए स्थान देने के बाद भी, चंडीगढ़ को पंजाब का हिस्सा माना जाता है।
पंजाब का विरोध और राजनीतिक प्रतिक्रिया
वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने कहा कि इस मुद्दे पर पंजाब सरकार के सभी प्रमुख दल एकजुट हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह केवल एक प्रशासनिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह पंजाब की राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा हुआ है। “चंडीगढ़ का मुद्दा पंजाब के अस्तित्व का सवाल बन चुका है, और हम इसे किसी भी हालत में नजरअंदाज नहीं कर सकते,” चीमा ने कहा।
पंजाब में विभिन्न राजनीतिक दलों और संगठनों द्वारा चंडीगढ़ के अधिकारों को लेकर विरोध प्रदर्शन भी होते रहे हैं, और अब पंजाब सरकार इस मुद्दे को और अधिक गंभीरता से उठा रही है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी इस मुद्दे पर केंद्र से स्पष्ट रुख अपनाने की अपील की है और कहा है कि चंडीगढ़ पर पंजाब का अधिकार किसी भी हालत में कमजोर नहीं होने दिया जाएगा।
हरियाणा के दृष्टिकोण और राज्य का संघर्ष
हरियाणा सरकार का दृष्टिकोण इस मुद्दे पर स्पष्ट है, और वह चंडीगढ़ में अपनी विधानसभा के लिए एक अलग इमारत बनाने की लगातार मांग करती रही है। हरियाणा का यह कहना है कि चंडीगढ़ उनके राज्य का हिस्सा है, और उन्हें यहां अपनी प्रशासनिक कार्यों के लिए अलग स्थान की आवश्यकता है। इस मुद्दे पर हरियाणा ने हमेशा पंजाब सरकार से सकारात्मक प्रतिक्रिया की उम्मीद की है, लेकिन पंजाब का यह कहना है कि चंडीगढ़ का पूरी तरह से नियंत्रण और प्रशासनिक अधिकार पंजाब के पास है।