UTTARAKHAND : बदरीनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद, 10 हजार श्रद्धालुओं ने किए दर्शन
बदरीनाथ, उत्तराखंड – रविवार, 18 नवंबर को बदरीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। कपाट बंद करने की प्रक्रिया रात्रि 9 बजकर 7 मिनट पर पूरी हुई। इस अवसर पर मंदिर में लगभग 10 हजार श्रद्धालुओं ने भगवान बदरीनाथ के दर्शन किए और धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा बने। श्रद्धालुओं के बीच इस दिन का महत्व बहुत बढ़ जाता है, क्योंकि यह दिन एक धार्मिक परंपरा का हिस्सा है, जिसमें श्रद्धालु अपने गुरु या भगवान से आशीर्वाद लेकर यात्रा पूरी करते हैं।
बदरीनाथ धाम में हर साल यह परंपरा निभाई जाती है, और हर वर्ष इस दिन को लेकर श्रद्धालुओं में विशेष श्रद्धा होती है। कपाट बंद होने के बाद बदरीनाथ धाम की जय जयकार से गूंज उठी और वातावरण को भव्य धार्मिक ऊर्जा से भर दिया गया।
धार्मिक अनुष्ठानों के बीच बदरीनाथ का शृंगार
इस महत्वपूर्ण अवसर पर बदरीनाथ मंदिर को 15 क्विंटल फूलों से सजाया गया था, जिससे मंदिर की सुंदरता और भी बढ़ गई। दिनभर मंदिर श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खुला रहा। सुबह साढ़े चार बजे से अभिषेक पूजा का आयोजन शुरू हुआ, जो पूरे दिन चलता रहा।
विशेष पूजा के दौरान भगवान बदरीनाथ का श्रृंगार तुलसी और हिमालयी फूलों से किया गया था, जो इस मंदिर और धाम की शुद्धता और पवित्रता को और बढ़ाते हैं। इस दिन को लेकर मंदिर प्रशासन और पुजारियों ने हर विशेष पूजा अर्चना को बड़े धूमधाम से आयोजित किया।
सायंकालीन पूजा और रात्रिकालीन अनुष्ठान
दोपहर के बाद, शाम 6 बजकर 45 मिनट पर बदरीनाथ की सायंकालीन पूजा शुरू की गई। यह पूजा खास तौर पर मंदिर के गर्भगृह में भगवान की महिमा का गुणगान करने के लिए होती है। इस पूजा के दौरान रावल, जो कि मंदिर के मुख्य पुजारी होते हैं, ने मंदिर के सभी देवताओं की पूजा अर्चना की।
रात्रि 7 बजकर 45 मिनट पर रावल अमरनाथ नंबूदरी ने विशेष रूप से स्त्री वेष धारण कर लक्ष्मी माता को बदरीनाथ मंदिर में प्रवेश कराया। इसके बाद, पूजा के अन्य अनुष्ठान शुरू हुए, जिसमें उद्धव जी और कुबेर जी की प्रतिमाओं को गर्भगृह से बाहर लाया गया और फिर उनका पूजन किया गया। इस पूरे पूजा प्रक्रिया में मंदिर में एक विशेष धार्मिक माहौल बना रहा, और श्रद्धालु इस पवित्र समय का हिस्सा बनने के लिए उत्सुक दिखे।
शयन आरती और कपाट बंद होने की प्रक्रिया
रात्रि 8 बजकर 10 मिनट पर शयन आरती का आयोजन किया गया, जो भगवान बदरीनाथ को शयन के लिए तैयार करने का एक विशेष अनुष्ठान है। इसके बाद, बदरीनाथ के कपाट बंद करने की प्रक्रिया शुरू हुई।
शीतकाल के लिए कपाट बंद होने की यह प्रक्रिया श्रद्धालुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि यह परंपरा बदरीनाथ धाम की सर्दी की अवधि के दौरान श्रद्धालुओं को सुरक्षा और शांति की भावना प्रदान करती है।
कपाट बंद करने से पहले, माणा गांव की कन्याओं द्वारा तैयार घृत कंबल भगवान बदरीनाथ को ओढ़ाया गया। यह घृत कंबल खास तौर पर शीतकाल के दौरान भगवान को ठंड से बचाने के लिए तैयार किया जाता है। इसके बाद, अखंड ज्योति जलाई गई, जो पूरे धाम में धार्मिक ऊर्जा को बनाए रखने का प्रतीक होती है।
कपाट बंद करने की प्रक्रिया
अंत में, रात्रि 9 बजकर 7 मिनट पर बदरीनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। इस दौरान बदरीनाथ मंदिर का वातावरण भगवान बदरीनाथ की जयकारों से गूंज उठा। भक्तगण श्रद्धा और आस्था से भरे हुए थे, और उनके चेहरों पर शांति का भाव था।
इसके साथ ही, रावल और अन्य मंदिर अधिकारियों ने यह सुनिश्चित किया कि सभी अनुष्ठान सही समय और तरीके से पूरे किए गए। इस अवसर पर भगवान की पूजा अर्चना और धार्मिक अनुष्ठान के साथ बदरीनाथ के कपाट बंद होने की प्रक्रिया पूरी हुई।
यात्रा समाप्ति के बाद के आगामी आयोजन
कपाट बंद होने के बाद, रावल, धर्माधिकारी, वेदपाठी, और बदरीनाथ के हक-हकूकधारी एक विशेष यात्रा के लिए तैयार हो गए। सोमवार को, सुबह के समय, उद्धव जी और कुबेर जी की उत्सव डोली के साथ-साथ आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी भी पांडुकेश्वर के योग बदरी मंदिर के लिए प्रस्थान करेगी। यह यात्रा धार्मिक महत्व रखती है, क्योंकि यह देवताओं के सम्मान और पूजा के रूप में होती है।
पांडुकेश्वर स्थित योग बदरी मंदिर में एक विशेष पूजा का आयोजन किया जाएगा, और श्रद्धालु इस पूजा का हिस्सा बनने के लिए वहां पहुंचेंगे। योग बदरी मंदिर को भी बदरीनाथ धाम से जुड़ा हुआ एक महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है, जहां शंकराचार्य ने ध्यान किया था।
बदरीनाथ धाम: एक धार्मिक धरोहर
बदरीनाथ मंदिर उत्तराखंड के चार धामों में से एक प्रमुख स्थल है और हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए एक अत्यधिक पवित्र स्थान है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे बर्फ से ढके हिमालयी क्षेत्र में स्थित होने के कारण शीतकाल के दौरान कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस पवित्र स्थान का दौरा करते हैं, और यहां की प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक आस्था को महसूस करते हैं। यह स्थान न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यहां की शांति और वातावरण भी भक्तों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करते हैं।
इस साल भी कपाट बंद होने की प्रक्रिया बहुत भव्य रही, और श्रद्धालुओं ने इसे एक विशेष अवसर के रूप में मनाया। अब शीतकाल में बदरीनाथ की यात्रा समाप्त हो चुकी है, लेकिन आने वाले दिनों में यहां के धार्मिक कार्य जारी रहेंगे, और अगले साल जब कपाट फिर से खुलेंगे, तो एक और नए अनुभव की शुरुआत होगी।