सियासी घमासान के बीच केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव के परिणाम पर सबकी नजरें, मिथक टूटेगा या फिर दोहराया जाएगा?
केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव के परिणाम पर अब सबकी नजरें टिकी हुई हैं। लगभग तीन महीने की सियासी तैयारियों के बाद 23 नवंबर को मतगणना का दिन आ रहा है, जब यह साफ हो जाएगा कि इस महत्वपूर्ण उपचुनाव का ताज किसके सिर सजेगा। क्या भाजपा महिला प्रत्याशी की जीत का मिथक दोहराएगी, या फिर कांग्रेस की ओर से की गई कड़ी मेहनत और एकजुटता रंग लाएगी? यह सवाल चुनावी संग्राम में दोनों दलों के बीच बना हुआ है। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच माना जा रहा है, लेकिन इस उपचुनाव में कुल छह उम्मीदवार मैदान में हैं, जो अपनी-अपनी जीत के लिए प्रचार में लगे हुए थे।
भाजपा के लिए प्रतिष्ठा और विचारधारा की परीक्षा
केदारनाथ उपचुनाव सिर्फ एक सीट पर काबिज होने का मामला नहीं है, बल्कि यह भाजपा के लिए एक प्रतिष्ठा और विचारधारा की बड़ी परीक्षा भी है। पार्टी ने इससे पहले बदरीनाथ उपचुनाव में हार का सामना किया था, जिसके बाद उसे वैचारिक मोर्चे पर कुछ कमजोरियों का सामना करना पड़ा। भाजपा अब इस असहज स्थिति को दोबारा नहीं बनने देना चाहती और इसी कारण उसने उपचुनाव की घोषणा से पहले चुनावी प्रबंधन के रणनीतिकारों को मैदान में उतार दिया। भाजपा ने अपने प्रचार में अधिकतम समय तक युवा मंत्री सौरभ बहुगुणा, प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी और विधायक भरत चौधरी को सक्रिय रखा।
मुख्यमंत्री की सक्रियता और विकास योजनाएं
पार्टी ने इस उपचुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से लेकर केंद्रीय मंत्रियों तक को प्रचार में लगाया। मुख्यमंत्री ने केदारनाथ क्षेत्र के विकास के लिए कई अहम फैसले लिए, जिनमें आपदा प्रभावितों के लिए विशेष पैकेज का एलान भी शामिल था। मुख्यमंत्री धामी ने केदारनाथ की जनता के बीच बार-बार पहुंचकर भाजपा के पक्ष में हवा बनाने का हरसंभव प्रयास किया। प्रचार के अंतिम दिनों में भी वे क्षेत्र में डटे रहे और कई विकास कार्यों को तेजी से मंजूरी दी।
भाजपा की ताकत और कमजोरी
इस उपचुनाव में भाजपा के मजबूत पक्षों की बात करें तो सबसे पहले इसका जिक्र किया जा सकता है कि पार्टी के पास प्रदेश और केंद्र में मजबूत सरकार है। साथ ही केदारनाथ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जुड़ाव भी भाजपा के लिए एक बड़ा पक्ष साबित हो सकता है। महिला प्रत्याशी आशा नौटियाल की छवि भी भाजपा के लिए एक अहम मुद्दा है, क्योंकि यह सीट महिला मतदाताओं के लिए अहम मानी जाती है और भाजपा की उम्मीद है कि इस बार महिला उम्मीदवार पर लगाया गया दांव सही साबित होगा। हालांकि, भाजपा का कमजोर पक्ष यह माना जा रहा है कि हाल ही में केदारनाथ मंदिर के शिलान्यास को लेकर उठे विवाद ने पार्टी की छवि को थोड़ा नुकसान पहुंचाया है।
कांग्रेस का एकजुट प्रचार और उम्मीदें
कांग्रेस ने उपचुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर देने के लिए पूरी ताकत झोंकी है। पार्टी में भले ही कई गुट हों, लेकिन इस उपचुनाव के प्रचार में कांग्रेस एकजुट नजर आई। बदरीनाथ और मंगलौर उपचुनावों में जीत से उत्साहित कांग्रेस ने केदारनाथ में प्रचार के दौरान अपनी पूरी ताकत झोंकी। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और रणनीतिकारों ने प्रचार के हर मोर्चे पर मोर्चा संभाला।
कांग्रेस की रणनीति: केदारनाथ में जीत का बड़ा संदेश
कांग्रेस के लिए केदारनाथ उपचुनाव केवल एक सीट की जीत नहीं है, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनाव को लेकर भी यह एक बड़ा संदेश साबित हो सकता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को राज्य की सभी पांचों सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन बदरीनाथ और मंगलौर में जीत के बाद पार्टी के हौसले में जान आई है। कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि इस बार केदारनाथ उपचुनाव में वह जीत हासिल कर अपने विरोधियों को एक मजबूत संदेश दे सके।
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, और प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा सहित पार्टी के कई बड़े नेता प्रचार में सक्रिय रहे। कांग्रेस ने महिला मतदाताओं को साधने के लिए खास रणनीतियां अपनाई, जिसमें खेत-खलियान से लेकर गांव-गांव तक जनसंपर्क किया गया।
कांग्रेस की ताकत: आपदा मुद्दा और केदारनाथ धाम
कांग्रेस का मानना है कि केदारनाथ धाम और आपदा के मुद्दे को लेकर पार्टी के पास एक मजबूत राजनीतिक हथियार है। केदारनाथ मंदिर में दिल्ली से प्रतीकात्मक मंदिर का निर्माण और केदारघाटी में पिछले कुछ वर्षों में आई आपदाओं को लेकर कांग्रेस ने भाजपा पर लगातार हमले किए हैं। 2017 में कांग्रेस के मनोज रावत ने महिला उम्मीदवार की जीत का मिथक तोड़ा था और इस बार पार्टी को उम्मीद है कि वह फिर से यह मिथक तोड़कर जीत हासिल करेंगे।