उत्तराखंड में भू-कानून और मूल निवास की मांग को लेकर आमरण अनशन,
उत्तराखंड में भूमि कानूनों और मूल निवासियों के अधिकारों की रक्षा को लेकर आवाज़ तेज हो गई है। राज्य के महत्वपूर्ण सामाजिक संगठनों के नेतृत्व में चल रहा संघर्ष अब नए मुकाम पर पहुंच चुका है। मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने आज से आमरण अनशन करने का ऐलान किया था, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की। शहीद स्मारक पर आमरण अनशन के आयोजन के पहले ही, पुलिस प्रशासन ने गेट पर ताला लगा दिया। बावजूद इसके, मोहित डिमरी ने अपने दृढ़ नायकत्व का परिचय देते हुए यह निर्णय लिया कि वह शहीद स्मारक के गेट के बाहर ही अनशन करेंगे।
यह घटना राज्य के भूमि कानूनों में हालिया संशोधनों और मूल निवासियों के अधिकारों पर चल रहे विवाद को लेकर हो रही है। समिति का कहना है कि सरकार द्वारा किए गए भूमि कानूनों में बदलावों ने न केवल स्थानीय निवासियों के अधिकारों पर आघात किया है, बल्कि इन संशोधनों के परिणामस्वरूप राज्य की कृषि भूमि भी खतरे में पड़ गई है।
संघर्ष समिति और समर्थक संगठनों का आंदोलन
मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति द्वारा शहीद स्मारक पर आज से आमरण अनशन करने की घोषणा की गई थी। समिति के साथ कई संगठनों ने समर्थन दिया है, जिनमें महिला मंच, राज्य आंदोलनकारी मंच, और अन्य स्थानीय जन संगठनों का भी समर्थन प्राप्त है। समिति के नेताओं ने बताया कि यह अनशन तब तक जारी रहेगा जब तक उत्तराखंड सरकार भूमि कानूनों में किए गए संशोधनों को रद्द नहीं करती और राज्य में निवासियों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं करती।
मोहित डिमरी ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार भू-कानून पर गंभीर नहीं है और इस मुद्दे को चुनावी वादों के रूप में प्रयोग कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार ने राज्य के बजट सत्र में भू-कानून लाने का दावा किया है, लेकिन इस कानून के बारे में स्पष्टता नहीं है। “हम चाहते हैं कि उत्तराखंड सरकार भूमि कानूनों में किए गए सभी संशोधनों को तत्काल रद्द करे। 2018 के बाद हुए सभी बदलावों को अध्यादेश के माध्यम से वापस लिया जाए।”
भूमि कानूनों में संशोधनों के खिलाफ विरोध
समिति ने अपने विरोध को लेकर कई बिंदुओं पर जोर दिया है। एक प्रमुख मांग यह है कि धारा-2 को हटाया जाए, जिसके कारण 400 से अधिक गांवों को नगरीय क्षेत्र में शामिल किया गया है। इससे 50,000 हैक्टेयर कृषि भूमि का नुकसान हुआ है। समिति के नेताओं का कहना है कि इस बदलाव से कृषि भूमि का तेजी से कम होना और निर्माण कार्यों का बढ़ना, राज्य की पारंपरिक जीवनशैली के लिए खतरे का संकेत है।
समिति ने सरकार से यह भी मांग की है कि निवेश के नाम पर दी गई जमीनों का पूरा विवरण सार्वजनिक किया जाए। इन जमीनों का उपयोग क्या किया गया, इससे कितनी नौकरियां उत्पन्न हुईं, यह जानकारी भी जनता के सामने लाने की आवश्यकता है। समिति ने चेतावनी दी कि जो लोग 250 वर्ग मीटर से अधिक जमीन खरीद चुके हैं, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए और आपराधिक मुकदमे दायर किए जाएं।
मूल निवासियों की पहचान और अधिकारों की रक्षा
समिति ने जोर देते हुए कहा कि मूल निवासियों को विशेष पहचान दी जाए और राज्य में सरकारी नौकरियों तथा योजनाओं में 90 प्रतिशत हिस्सेदारी मूल निवासियों की होनी चाहिए। यह कदम राज्य के स्थानीय निवासियों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा और बाहरी लोगों की बढ़ती हिस्सेदारी को रोकने में मदद करेगा।
समिति के महासचिव प्रांजल नौडियाल ने कहा कि राज्य सरकार को स्पष्ट रूप से अपनी मंशा बतानी चाहिए कि वह भू-कानून और मूल निवास के संबंध में क्या कदम उठाने जा रही है। उन्होंने कहा, “यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं होतीं। सरकार को जनहित में शीघ्र निर्णय लेना होगा।”
महिला मंच और राज्य आंदोलनकारियों का समर्थन
समिति के आंदोलन को महिला मंच और राज्य आंदोलनकारी मंच का भी समर्थन मिल रहा है। महिला मंच की उपाध्यक्ष निर्मला बिष्ट ने कहा कि राज्य आंदोलन के दौरान महिलाओं ने अपनी सर्वोच्च बलिदान दिया और इस राज्य की नींव रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। “आज जब यह राज्य खतरे में है, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे अधिकार सुरक्षित रहें।”
वहीं, राज्य आंदोलनकारी मोहन सिंह रावत ने कहा कि, “42 शहीदों ने अपनी जान देकर उत्तराखंड राज्य के निर्माण का सपना साकार किया। लेकिन आज, वही राज्य भूमि कानूनों में किए गए बदलावों के कारण अपनी पहचान खो रहा है। हमें यह आंदोलन उन शहीदों के सम्मान में भी करना होगा, जिन्होंने इस राज्य की खातिर बलिदान दिया।”