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कैलाश मानसरोवर यात्रा उत्तराखंड से फिर शुरू होगी ?भारत-चीन विदेश मंत्रियों के बीच बातचीत

भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच हाल ही में हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने पर चर्चा की गई। यह मुलाकात ब्राजील में जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान हुई, जहां विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की। इस बैठक के दौरान दोनों नेताओं ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार-विमर्श किया, जिसमें सीमा पार नदियों पर डेटा साझा करना, सीधी उड़ानों की शुरुआत और मीडिया आदान-प्रदान जैसे मुद्दे शामिल थे।

कैलाश मानसरोवर यात्रा: धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

कैलाश मानसरोवर यात्रा, जो हर साल जून से सितंबर तक आयोजित होती है, हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यधिक पूजनीय मानी जाती है। यह यात्रा दो प्रमुख मार्गों से पूरी होती है—लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड) और नाथू-ला दर्रा (सिक्किम)। इन मार्गों पर स्थित कैलाश पर्वत और पवित्र मानसरोवर झील, जो समुद्र तल से 15,015 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, इन धर्मों के अनुयायियों के लिए आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

कैलाश मानसरोवर यात्रा का मार्ग कठिन और मौसम प्रतिकूल होने के बावजूद भारतीय नागरिकों के लिए विशेष रूप से उपलब्ध है। इस यात्रा के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ₹1 लाख का अनुदान प्रदान करती है, जिससे और भी अधिक लोग इस पवित्र यात्रा पर जा पाते हैं। भारत और चीन के बीच हुई यह बातचीत इस यात्रा को फिर से शुरू करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।

सीमा पर सैनिकों की वापसी: स्थिरता की दिशा में कदम

बैठक में एक महत्वपूर्ण बिंदु सीमा पर सैनिकों की वापसी था। दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने इस बात पर सहमति जताई कि सीमा पर सैनिकों की वापसी से स्थिरता कायम रखने में मदद मिली है। यह कदम दोनों देशों के बीच सीमावर्ती इलाकों में शांति बहाल करने के लिए आवश्यक है। सीमा पर शांति और स्थिरता दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में सुधार लाने के लिए एक अहम कदम साबित हो सकता है।

ब्रिक्स, एससीओ, और जी20 जैसे मंचों पर सहयोग

भारत और चीन के विदेश मंत्री दोनों ही इस बात पर सहमत थे कि दोनों देशों के बीच मतभेद होने के बावजूद, वैश्विक मंचों पर दोनों देशों ने मिलकर रचनात्मक तरीके से काम किया है। विशेष रूप से ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और जी20 जैसे मंचों पर भारत और चीन ने साझा प्रयासों के तहत कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहयोग किया है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस बारे में कहा कि भारत का दृष्टिकोण बहुध्रुवीय विश्व और बहुध्रुवीय एशिया का समर्थन करना है, और उनकी विदेश नीति स्वतंत्र और सैद्धांतिक है।

यह स्पष्ट है कि भारत और चीन दोनों ही अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अपने-अपने हितों के साथ-साथ वैश्विक स्थिरता और शांति के लिए काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। दोनों देशों के बीच यह सहयोग और तालमेल दुनिया के अन्य देशों के लिए एक सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करता है।

भारत-चीन संबंधों में सुधार की दिशा

चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने इस बैठक में भारत-चीन संबंधों के महत्व को स्वीकार करते हुए कहा कि इन रिश्तों को स्थिर करना और मतभेदों को कम करना बहुत जरूरी है। उनका यह बयान इस बात का संकेत है कि चीन भारत के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाने के लिए गंभीर है और भविष्य में ठोस कदम उठाए जाने की संभावना है। दोनों नेताओं ने महसूस किया कि वैश्विक राजनीति में भारत-चीन संबंधों का खास महत्व है, और इन रिश्तों को सुधारने के लिए दोनों पक्ष ठोस प्रयास करेंगे।

वांग यी ने यह भी कहा कि दोनों देशों के बीच समझदारी और सहयोग से ही क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता सुनिश्चित की जा सकती है। इसलिए, दोनों देशों को मिलकर अपने मतभेदों को सुलझाने और भविष्य में अच्छे रिश्ते बनाने की दिशा में काम करना होगा।

भविष्य की दिशा: उच्च स्तरीय बैठक और सहयोग के नए आयाम

भारत और चीन के विदेश मंत्रियों ने इस बैठक में सहमति व्यक्त की कि दोनों देशों के विदेश सचिव और उप मंत्रियों के बीच जल्द ही एक बैठक आयोजित की जाएगी। इस बैठक के माध्यम से दोनों देशों के बीच होने वाली बातचीत को और भी अधिक विस्तृत किया जाएगा, ताकि द्विपक्षीय संबंधों में सुधार लाने के लिए और प्रभावी कदम उठाए जा सकें।

यह बैठक भारत-चीन संबंधों में एक नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है, जहां दोनों देश आपसी सहयोग और समझदारी के आधार पर अपने मतभेदों को सुलझाने की दिशा में काम करेंगे।

निष्कर्ष

भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच हुई यह बैठक कई महत्वपूर्ण मामलों पर चर्चा करने के लिए एक अहम अवसर साबित हुई। विशेष रूप से कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने, सीमा पर स्थिरता बनाए रखने, और दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने के लिए उठाए गए कदमों की दिशा में यह बैठक एक सकारात्मक शुरुआत हो सकती है।

भारत और चीन दोनों ही देशों के लिए यह समझौते और सहयोग न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती प्रदान करेंगे, बल्कि वैश्विक राजनीति में भी इनके योगदान को महत्व मिलेगा। दोनों देशों के बीच सहयोग और शांति का वातावरण बनाना, न केवल एशिया, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक आशाजनक संकेत है।

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