उत्तराखंड में सहकारी समितियों के चुनाव फिर टलें, 16-17 दिसंबर की तिथि हुई स्थगित
उत्तराखंड की 674 सहकारी समितियों के प्रतिनिधियों के चुनाव जो 16 और 17 दिसंबर को प्रस्तावित थे, अब फिर टलने जा रहे हैं। शासन ने सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण को चुनाव के लिए नयी समय-सारिणी जारी करने की सहमति दे दी है। यह निर्णय इसलिए लिया गया है क्योंकि निर्वाचन नियमावली में अब तक बदलाव नहीं हो पाया है और महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का मामला उच्च न्यायालय में विचाराधीन है।
चुनाव टलने की वजह
प्रदेश में सहकारी समितियों के चुनाव पहले नवंबर में प्रस्तावित थे, लेकिन अब यह दिसंबर तक स्थगित कर दिए गए थे। चुनावों में और देरी का मुख्य कारण राज्य शासन द्वारा अब तक निर्वाचन नियमावली में आवश्यक बदलाव न किए जाने को बताया गया है। इसके अलावा, महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है, जिससे चुनावों की प्रक्रिया में और देरी हो रही है।
महिला आरक्षण और मतदान अधिकार
सहकारी समितियों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का मामला अब हाईकोर्ट में विचाराधीन है। यदि इस मामले में कोई निर्णय नहीं लिया जाता है, तो 33 हजार महिलाओं को मतदान का अधिकार नहीं मिल पाएगा, जो उनकी चुनावी प्रक्रिया में भागीदारी को सीमित करेगा। इसके साथ ही, चुनाव में मतदान करने के योग्य उन 78 हजार पुरुषों के लिए भी यही समस्या खड़ी हो सकती है, जो समितियों से किसी तरह का लेन-देन नहीं कर रहे हैं।
छूट का प्रस्ताव और उसकी स्थिति
सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण ने चुनाव प्रक्रिया के तहत एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव शासन को भेजा था। इस प्रस्ताव में नियम 12(ख) में छूट देने की बात की गई थी, ताकि वे सदस्य जो पिछले तीन वर्षों में सहकारी समितियों से किसी भी प्रकार का लेन-देन नहीं कर रहे हैं, उन्हें भी मतदान का अधिकार मिल सके। यदि इस छूट को मंजूरी नहीं मिलती है, तो यह 33 हजार महिलाओं और 78 हजार पुरुषों के मतदान अधिकार को प्रभावित करेगा।
सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण के अध्यक्ष हंसा दत्त पांडे ने इस बारे में जानकारी दी है कि इस छूट के प्रस्ताव पर शासन से कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि यदि यह छूट नहीं दी जाती है, तो इन हजारों मतदाताओं को चुनाव में भाग लेने का अवसर नहीं मिलेगा।
हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई
महिलाओं को सहकारी समितियों में 33 प्रतिशत आरक्षण देने के संबंध में मामला वर्तमान में उच्च न्यायालय में विचाराधीन है। इस पर सोमवार को सुनवाई होनी है, और इसके परिणाम के बाद ही चुनाव की स्थिति स्पष्ट हो पाएगी। यह मामला सहकारी समितियों में महिलाओं के आरक्षण के मुद्दे पर है, जिसमें न्यायालय को यह तय करना है कि यह आरक्षण वैध है या नहीं। यदि न्यायालय का निर्णय सकारात्मक होता है, तो इसे लागू किया जाएगा और महिलाओं को उनके मतदान अधिकार मिलेंगे।
सहकारी समितियों के चुनाव के बारे में पहले की योजना
पहले सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण ने चुनाव की तिथि घोषित की थी, जिसमें पहले चरण में समितियों के प्रतिनिधियों के चुनाव होने थे और इसके बाद जिला और राज्य सहकारी समितियों के अध्यक्षों और उपाध्यक्षों के चुनाव कराए जाने थे। हालांकि, अब तक इन चुनावों की तिथियां स्थगित की जा चुकी हैं।
चुनावों की स्थगन से जुड़ी अन्य जटिलताएँ
सहकारी समितियों में चुनाव के समय में आई देरी राज्य की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति को भी प्रभावित कर सकती है। चुनाव में महिलाओं की भागीदारी के मुद्दे पर राजनीतिक दलों के बीच भी चर्चा हो रही है, और विभिन्न संगठन इस मामले में न्यायालय से जल्द निर्णय की अपेक्षा कर रहे हैं।
इसके अलावा, सहकारी समितियों के चुनावी प्रक्रिया में देरी के कारण समितियों के कामकाज और उनकी कार्यक्षमता पर भी असर पड़ सकता है। चुनावी प्रक्रिया का स्थगित होना समितियों के पुनर्गठन और संचालन में और अधिक समय की आवश्यकता पैदा कर सकता है, जिससे उनके प्रशासनिक कार्यों में भी देरी हो सकती है।
आगामी चुनावों का भविष्य
सहकारी समितियों के चुनाव की प्रक्रिया में वर्तमान में जो असमंजस की स्थिति है, उससे लोगों और कर्मचारियों में चिंता बढ़ रही है। चुनावों के स्थगन के बाद, अब सभी की नजर न्यायालय के निर्णय पर है। यदि उच्च न्यायालय से सकारात्मक आदेश मिलता है, तो चुनाव प्रक्रिया जल्द ही शुरू हो सकती है।
हालांकि, यह स्थिति तब तक कायम रहेगी जब तक न्यायालय का कोई अंतिम निर्णय नहीं आता है। शासन की ओर से सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण को नया समय-सारणी जारी करने की सहमति दी गई है, जो आगामी घटनाओं के आधार पर चुनावों के लिए नया मार्गदर्शन प्रदान करेगी।।