Nainital : राजाजी-कॉर्बेट पार्क के हाथियों का बदला व्यवहार , नहीं जा रहे नेपाल
राजाजी पार्क और कॉर्बेट पार्क के बीच स्थित हाथी कॉरिडोर में हाल के वर्षों में बदलाव देखने को मिल रहा है। यह बदलाव इन पार्कों के हाथियों के व्यवहार पर गहरा असर डाल रहा है, जिससे न केवल उनके विचरण क्षेत्र में परिवर्तन आया है, बल्कि मानव-वन्यजीव संघर्ष की स्थिति भी बिगड़ रही है। अब, ये हाथियों के झुंड पहले की तरह नेपाल की ओर नहीं बढ़ रहे हैं, बल्कि अब इनका विचरण केवल पार्कों के अंदर और आसपास ही देखा जा रहा है।
कॉरिडोर में रुकावट और उसके प्रभाव
हाथियों के झुंड आमतौर पर राजाजी पार्क और कॉर्बेट पार्क के बीच स्थित मार्गों का इस्तेमाल करते थे, जो उन्हें नेपाल तक जाने का रास्ता देते थे। हालांकि, अब इन मार्गों में रुकावटें उत्पन्न हो चुकी हैं, जिससे हाथियों के व्यवहार में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। इस रुकावट की सबसे बड़ी वजह है, इन हाथियों के सुरक्षित मार्गों में बाधाएं, जो उनकी प्राकृतिक यात्रा को रोकने का कारण बन रही हैं।
हाथियों की सुरक्षा पर असर
इस परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण हाथियों की सुरक्षा से जुड़ा है। विशेषकर जब झुंड में छोटे हाथी होते हैं, तो इनकी सुरक्षा के लिहाज से बड़े मार्गों का उपयोग करने में खतरे की आशंका बढ़ जाती है। डा. साकेत बडोला, निदेशक सीटीआर रामनगर के मुताबिक, हाथियों के झुंड अब लंबी दूरी तय करने से बचते हैं और सुरक्षा की दृष्टि से छोटे और सीमित क्षेत्रों में ही विचरण करते हैं।
“हाथियों के झुंड अब नेपाल तक जाने के बजाय केवल राजाजी और कॉर्बेट पार्क के अंदर ही रह रहे हैं। इसका मुख्य कारण उनकी बच्चों की सुरक्षा है। जब हाथियों के झुंड में छोटे हाथी होते हैं, तो वे लंबी यात्रा से बचने की कोशिश करते हैं,” डॉ. बडोला ने कहा। इसके परिणामस्वरूप, हाथी मानव-वन्यजीव संघर्ष से बचने के लिए अपने मार्गों में बदलाव कर रहे हैं।
मखना हाथी का विचरण
हालांकि, इस बदलाव के बावजूद कुछ मखना हाथी, जो अकेले होते हैं, अब भी नेपाल तक यात्रा करते हुए देखे गए हैं। मखना हाथी अपनी आदतों और स्वभाव के कारण कम जोखिम से यात्रा करते हैं, क्योंकि वे अकेले होते हैं और बच्चों या अन्य झुंड के सदस्यों की सुरक्षा की चिंता नहीं होती।
मखना हाथियों का नेपाल की ओर विचरण इस बात का संकेत है कि अकेले हाथियों के लिए ये मार्ग अभी भी सुरक्षित हैं, लेकिन परिवारों और झुंडों के लिए स्थिति थोड़ी अलग है। बड़े झुंडों के लिए अब सुरक्षित रास्ते सीमित हो गए हैं, और उन्हें अपने परंपरागत मार्गों से बचना पड़ता है।
खटीमा और पीलीभीत से होते हुए सरहद पार करने की घटना
इसके अलावा, खटीमा और पीलीभीत से हाथियों के सरहद पार करने और वापस आने का सिलसिला लगातार जारी है। यह सिलसिला अब भी देखने को मिल रहा है, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की स्थिति और जटिल होती जा रही है। इन हाथियों का सरहद पार करना एक बड़ा खतरा उत्पन्न करता है क्योंकि इससे स्थानीय क्षेत्रों में खेती की भूमि और गांवों के बीच टकराव की संभावना बढ़ जाती है।
हाथी कॉरिडोर के बाधित होने से अब हाथियों के लिए प्राकृतिक मार्गों का अभाव हो गया है, और वे अपने जीवन-यापन के लिए अधिक असुरक्षित क्षेत्रों में विचरण करने लगे हैं। इन बाधित मार्गों में कोटा, चिलकिया-कोटा, और दक्षिण पटलिदुन-चिलकिया जैसे प्रमुख हाथी कॉरिडोर शामिल हैं, जो अब अपनी प्राकृतिक स्थिति में नहीं हैं।
संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता
यह समय है जब इस समस्या के समाधान के लिए कदम उठाए जाएं। हाथी संरक्षण के लिए कार्यरत संगठनों और सरकार को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना होगा। कई स्थानों पर हाथी कॉरिडोर में रुकावटों के कारण हाथियों के झुंड अब एक ही दायरे में सिमटकर रह गए हैं। यह स्थिति न केवल हाथियों के लिए, बल्कि उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए भी खतरे की घंटी है।
डॉ. साकेत बडोला का कहना है कि कॉरिडोर बाधित होने से हाथियों के झुंड के बीच की दूरी भी घट गई है और यह छोटी-सी सीमा में ही सिमट गए हैं। इससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की संभावना बढ़ी है, क्योंकि हाथियों के झुंड को अपने प्राकृतिक रास्तों पर जाने का अवसर नहीं मिल पा रहा है।
अंतत: एक सतत समाधान की आवश्यकता
हाथियों के संरक्षण के लिए सिर्फ हाथी कॉरिडोर को बहाल करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह भी जरूरी है कि स्थानीय समुदायों को इसके महत्व के बारे में जागरूक किया जाए। जब तक स्थानीय लोग समझेंगे नहीं कि यह संरक्षण उनके और उनके गांवों के लिए कितना महत्वपूर्ण है, तब तक इस संघर्ष को सुलझाना मुश्किल होगा।
सरकार और संरक्षण संस्थाओं को मिलकर स्थायी समाधान विकसित करने की आवश्यकता है ताकि हाथियों के लिए सुरक्षित रास्ते बनाए जा सकें, और स्थानीय समुदायों को भी इस बदलाव से होने वाले लाभों का अनुभव हो।