देहरादून में ढाई दिन की बच्ची का देह दान देश में पहली बार इतनी कम उम्र में हुआ देह दान
देहरादून में एक दिल छूने वाली घटना सामने आई है, जिसमें ढाई दिन की बच्ची का देह दान किया गया। यह घटना न केवल देहरादून बल्कि पूरे देश के लिए एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित हो रही है, क्योंकि यह देश में पहली बार है जब इतनी कम उम्र में किसी बच्चे का देह दान किया गया हो। बच्ची का निधन हृदय गति रुकने के कारण हुआ था, और उसके परिवार ने उसकी देह को दान करने का निर्णय लिया। इस फैसले ने समाज में देह दान और अंग दान के प्रति जागरूकता बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
बच्ची का निधन और देह दान का निर्णय
यह घटना दून अस्पताल में घटित हुई, जहां ढाई दिन की बच्ची का निधन हो गया था। चिकित्सकों के अनुसार, बच्ची के हृदय में एक विकृति थी, जिसके कारण उसका हृदय गति रुक गया और आज सुबह उसकी मौत हो गई। बच्ची के परिवार ने इस दुःखद घटना के बावजूद एक सराहनीय कदम उठाते हुए उसकी देह दान करने का फैसला किया।
बच्ची के पिता, राम मिहर, जो हरिद्वार में एक फैक्ट्री में कार्यरत हैं, ने इस दान को स्वीकार किया। जानकारी के मुताबिक, हरिद्वार के डॉ. राजेंद्र सैनी ने परिवार को देह दान के महत्व को समझाया और प्रेरित किया। इसके बाद परिवार ने दधिचि देह दान समिति के मुकेश गोयल से संपर्क किया, जो देह दान के क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। मुकेश गोयल और उनकी टीम ने परिवार को इस निर्णय को लागू करने में मदद की।
दधिचि देह दान समिति की मदद से किया देह दान
बच्ची के परिवार ने दधिचि देह दान समिति के माध्यम से इस नेक कार्य को अंजाम दिया। आज सुबह, बच्ची का देह दान किया गया और उसकी देह को दून मेडिकल कॉलेज के म्यूजियम में संरक्षित करने के लिए भेजा गया। यह म्यूजियम भविष्य में लोगों को देह दान के प्रति जागरूक करने और इस पहल को बढ़ावा देने का कार्य करेगा।
इस कदम ने न केवल बच्ची के परिवार को सम्मानित किया, बल्कि समाज में देह दान के महत्व को भी एक नया मोड़ दिया। बच्ची के अंगों को संरक्षित किया जाएगा, ताकि आने वाली पीढ़ियों को इस नेक कार्य के बारे में बताया जा सके। बच्ची का नाम समिति ने “सरस्वती” रखा है, जो ज्ञान और शिक्षा की देवी का प्रतीक है।
दून मेडिकल कॉलेज में अंगों की संरक्षिति
एनॉटिमी विभाग के अध्यक्ष डॉ. एमके पंत और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजेश कुमार मौर्य ने बताया कि इस तरह के मामले अत्यंत दुर्लभ होते हैं, जहां इतनी कम उम्र के बच्चे के शव का देह दान किया गया हो। उन्होंने यह भी बताया कि बच्ची के शव को लंबे समय तक संरक्षित रखने के लिए उसे थर्मलीन के लेप से ढका जाएगा। थर्मलीन का यह लेप शव को संरक्षित करने में मदद करेगा और उसे म्यूजियम में सुरक्षित रखा जाएगा।
यह कदम न केवल मेडिकल क्षेत्र में एक बड़ी पहल है, बल्कि इससे देह दान के प्रति समाज में जागरूकता भी फैल रही है। मेडिकल छात्र और शोधकर्ता इस अवसर का उपयोग देह दान और अंग दान के महत्व को समझने और उस पर अध्ययन करने के लिए करेंगे। इस प्रक्रिया से यह संदेश जाता है कि देह दान केवल एक व्यक्ति के अंगों के दान से संबंधित नहीं है, बल्कि यह समाज की भलाई के लिए एक अमूल्य योगदान है।
देह दान के महत्व पर चर्चा
देह दान और अंग दान की प्रक्रिया को लेकर हमारे समाज में अभी भी बहुत सी भ्रांतियां और संकोच हैं। हालांकि, जैसे-जैसे लोग इसके लाभों को समझने लगे हैं, वैसे-वैसे अंग दान और देह दान को लेकर सकारात्मक दृष्टिकोण सामने आ रहा है। इस घटना ने देह दान के महत्व को स्पष्ट किया है, खासकर तब जब इसे इतनी छोटी उम्र के बच्चे के शरीर से जोड़ा गया हो।
देह दान केवल एक व्यक्ति के शरीर को मेडिकल शोध, शिक्षा और उपचार के लिए दान करने का कार्य नहीं है, बल्कि यह समाज में इंसानियत और सहानुभूति को बढ़ावा देने का भी एक तरीका है। यह अन्य लोगों के जीवन को बचाने और बेहतर बनाने में मदद कर सकता है। जब एक व्यक्ति अपने अंगों को दान करता है, तो वह न केवल अपनी शारीरिक देह का दान करता है, बल्कि अपने समाज के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी निभाता है।
इस घटना ने यह साबित कर दिया कि देह दान केवल किसी बड़े व्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह किसी छोटे बच्चे की देह से भी किया जा सकता है, यदि उसकी पारिवारिक स्थिति और स्वास्थ्य इसे अनुमति दें। इस प्रकार का कदम हमारे समाज को यह सिखाता है कि देह दान के द्वारा हम जीवन के महत्व को समझ सकते हैं और एक दूसरे की मदद कर सकते हैं।