Rishikesh: विद्यालय में तिलक लगाकर पहुंची छात्रा को कक्षा से बाहर करने पर हिंदू संगठनों का विरोध
बीते बुधवार को शहर के एक प्रसिद्ध विद्यालय में आठवीं कक्षा की एक छात्रा तिलक लगाकर स्कूल पहुंची। तिलक के साथ विद्यालय आने पर शिक्षिका ने छात्रा को कक्षा से बाहर कर दिया और उससे तिलक साफ करने को कहा, ताकि वह कक्षा में वापस आ सके। छात्रा ने शिक्षिका के आदेश का पालन करते हुए तिलक साफ किया और फिर कक्षा में बैठी। इस घटना को लेकर छात्रा ने स्कूल की छुट्टी के बाद अपने परिजनों को सूचित किया, जिससे यह मामला तूल पकड़ गया।
हिंदू संगठनों का विरोध
इस घटना के बाद, छात्रा के परिजनों ने राष्ट्रीय हिंदू शक्ति संगठन, विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को जानकारी दी। इसके बाद बृहस्पतिवार को सैकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ वे विद्यालय पहुंचे और प्रधानाचार्य का घेराव किया। कार्यकर्ताओं ने स्कूल प्रशासन से इस घटना पर कड़ी आपत्ति जताई और दोषी शिक्षिका से लिखित माफी की मांग की।
करीब आधे घंटे तक विरोध प्रदर्शन चलता रहा, जिसमें कार्यकर्ताओं ने हिंदू धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाते हुए, शिक्षिका और विद्यालय प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि धार्मिक आस्थाओं का अपमान सहन नहीं किया जाएगा और इस प्रकार के कृत्यों का विरोध किया जाएगा।
विद्यालय प्रशासन ने मांगी माफी
विद्यालय परिसर में घेराव के बाद प्रधानाचार्य ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए इस घटना पर खेद जताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह एक व्यक्तिगत घटना थी और भविष्य में ऐसी कोई भी स्थिति उत्पन्न नहीं होगी। प्रधानाचार्य ने कार्यकर्ताओं को विश्वास दिलाया कि विद्यालय में सभी छात्रों को समान सम्मान मिलेगा, चाहे उनकी धार्मिक आस्था कुछ भी हो।
इसके बाद कार्यकर्ता शांत हुए और विद्यालय प्रशासन द्वारा माफी मांगने के बाद प्रदर्शन समाप्त हुआ। विद्यालय प्रशासन ने आश्वासन दिया कि इस प्रकार की घटना भविष्य में नहीं दोहराई जाएगी और सभी धार्मिक आस्थाओं का सम्मान किया जाएगा।
राघवेंद्र भटनागर का बयान
राष्ट्रीय हिंदू शक्ति संगठन के प्रदेश अध्यक्ष राघवेंद्र भटनागर ने इस घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदू धार्मिक भावनाओं को आहत करने का प्रयास किया गया। उन्होंने कहा, “अगर भविष्य में ऐसी कोई घटना होती है, तो हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। हमारी धार्मिक आस्थाओं का सम्मान किया जाना चाहिए।”
भटनागर ने यह भी बताया कि स्कूल प्रबंधन ने माफी मांगते हुए घटना की सफाई दी है, और उन्होंने इस बात का भरोसा जताया कि भविष्य में इस प्रकार की घटना की पुनरावृत्ति नहीं होगी।
इस घटना पर पक्ष और विपक्ष के विचार
इस मामले पर विभिन्न विचार सामने आए हैं। एक ओर जहां हिंदू संगठन इस कृत्य को धार्मिक आस्था का अपमान मानते हुए कड़ी प्रतिक्रिया दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इसे एक सामान्य शिक्षिका की गलती मानते हैं और इस प्रकार के मामलों को बढ़ावा न देने की अपील कर रहे हैं।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना एक समझदारी से हल हो सकती थी और यह एक शिक्षा प्रणाली की जिम्मेदारी है कि वह धार्मिक और सांस्कृतिक विविधताओं का सम्मान करें। वहीं, कुछ लोग इसे एक व्यक्तिगत विवाद मानते हैं और कहते हैं कि इसका राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए।
तिलक के प्रतीकात्मक महत्व पर चर्चा
तिलक भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रतीक है, जिसे अक्सर पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठानों और शुभ अवसरों पर लगाया जाता है। हिंदू धर्म में तिलक का विशेष महत्व है, जो व्यक्ति की धार्मिक आस्था और भगवान के प्रति श्रद्धा का प्रतीक होता है। इसे संस्कार, सम्मान और समाज में व्यक्ति की स्थिति को प्रकट करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
इस मामले में तिलक को लेकर विवाद ने इस बात को फिर से उजागर किया कि धार्मिक आस्थाएं और प्रतीक केवल एक व्यक्ति की निजी श्रद्धा का हिस्सा नहीं होते, बल्कि समाज और संस्कृति का अहम हिस्सा होते हैं। ऐसे में किसी भी धार्मिक प्रतीक को अपमानित करना, न केवल उस व्यक्ति की भावना को आहत करता है, बल्कि समाज में तनाव का भी कारण बनता है।
विद्यालयों में धार्मिक संवेदनशीलता की आवश्यकता
यह घटना इस बात की ओर इशारा करती है कि शैक्षिक संस्थानों में धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलता का महत्व बढ़ गया है। जहां विद्यालयों का मुख्य उद्देश्य शिक्षा देना होता है, वहीं यह भी आवश्यक है कि धार्मिक आस्थाओं और सांस्कृतिक विविधताओं का सम्मान किया जाए। विशेषकर उस समय जब समाज में धर्म और संस्कृति को लेकर बहसें तेज हो रही हैं, विद्यालयों को इस दिशा में जागरूकता और संवेदनशीलता दिखानी चाहिए।
कुछ शिक्षाविदों का कहना है कि स्कूलों में धार्मिक संवेदनशीलता पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि किसी भी छात्र की धार्मिक भावना को आहत न किया जा सके। इसके लिए स्कूलों को अपने कर्मचारियों को इस संदर्भ में प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है ताकि वे धार्मिक प्रतीकों और आस्थाओं का सम्मान करते हुए सभी छात्रों को समान अवसर और सम्मान प्रदान कर सकें।