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लोकसभा में संविधान पर चर्चा की शुरुआत, राजनाथ सिंह ने की महत्वपूर्ण टिप्पणी

नई दिल्ली: भारतीय लोकसभा में संविधान पर चर्चा की शुरुआत केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने की, जिसमें उन्होंने भारतीय संविधान के महत्व और इसके निर्माण की प्रक्रिया पर गहरी टिप्पणी की। 75 साल पहले संविधान सभा द्वारा भारतीय संविधान के निर्माण के ऐतिहासिक कार्य को पूरा किया गया था, जिसे राजनाथ सिंह ने एक महत्वपूर्ण संदर्भ के रूप में प्रस्तुत किया।

अपने भाषण में राजनाथ सिंह ने कहा, “संविधान सिर्फ एक कानूनी दस्तावेज नहीं था, बल्कि यह जनआकांक्षाओं का प्रतिबिंब था।” उन्होंने संविधान के निर्माण की प्रक्रिया और इसके उद्देश्यों को विस्तार से समझाया, और यह भी बताया कि यह केवल एक राजनीतिक दस्तावेज नहीं, बल्कि भारत के लोगों के जीवन में समग्र बदलाव लाने के लिए तैयार किया गया था।

भारतीय संविधान की विशेषताएँ

राजनाथ सिंह ने कहा, “हमारा संविधान एक सार्वभौम दस्तावेज है। यह केवल राज्य की जिम्मेदारियों को ही नहीं, बल्कि नागरिकों के अधिकारों को भी स्पष्ट रूप से उल्लेख करता है।” उनके अनुसार, संविधान में सहकारी संवाद की अवधारणा को संस्थागत रूप से स्वीकार किया गया है, जो देश की एकता और सामूहिक विकास को सुनिश्चित करता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय संविधान ने देश के गौरव को स्थापित करने के लिए एक स्पष्ट रोडमैप तैयार किया है।

उन्होंने संविधान की कई विशेषताओं पर प्रकाश डाला, जिनमें राज्य और नागरिक के बीच पारदर्शिता, न्याय और समानता की अवधारणाएँ शामिल हैं। राजनाथ सिंह ने कहा, “हमारा संविधान समावेशी और परिवर्तनकारी है। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति देश के शीर्ष पद तक पहुँच सकता है।” उन्होंने उदाहरण के तौर पर महिला सशक्तिकरण की दिशा में सरकार द्वारा किए गए कार्यों, जैसे नारी शक्ति वंदन अधिनियम और राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की बात की।

संविधान को लेकर विपक्ष का दृष्टिकोण

राजनाथ सिंह ने कांग्रेस पार्टी और विपक्ष पर तीखा हमला करते हुए कहा कि संविधान निर्माण को अक्सर एक राजनीतिक एजेंडे के रूप में पेश किया गया है। उन्होंने यह आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी और कुछ अन्य दलों ने हमेशा भारतीय संविधान के निर्माण को केवल एक पार्टी की देन के रूप में दिखाने की कोशिश की है।

उन्होंने कहा, “कुछ लोग हमारे संविधान को उपनिवेशवाद का उपहार मानते हैं, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। भारत ने अपना संविधान खुद रचा है, जो हमारे लिए गर्व का विषय है।” राजनाथ सिंह ने इस पर भी जोर दिया कि भारत ने एक स्थिर और प्रगतिशील संविधान अपनाया है, जो दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले कहीं अधिक मजबूत और टिकाऊ साबित हुआ है।

संविधान की रक्षा और अपमान

केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि संविधान के निर्माण में भाग लेने वाले सभी लोग महान देशभक्त थे। उन्होंने यह सवाल उठाया कि जब 1973 में कांग्रेस सरकार ने संविधान के मूल्यों का उल्लंघन करते हुए न्यायपालिका के अधिकारों को नकारा था, तो उसी पार्टी की तरफ से अब संविधान की रक्षा की बात की जा रही है।

राजनाथ सिंह ने यह भी कहा कि “कांग्रेस ने हमेशा संविधान को राजनीतिक हितों का साधन बनाया है।” उन्होंने कहा, “हमने कभी भी संविधान को राजनीतिक खेल बनाने की कोशिश नहीं की। जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तब हमने मंत्रिपरिषद के आकार को कम किया, जो कांग्रेस ने कभी नहीं किया।”

उन्होंने यह बताते हुए कांग्रेस पर हमला किया कि पंडित नेहरू के समय संविधान में 17 बार, इंदिरा गांधी के समय 28 बार, राजीव गांधी के समय 10 बार, और मनमोहन सिंह के समय 7 बार बदलाव किए गए थे। राजनाथ सिंह के अनुसार, ये बदलाव या तो विरोधियों को चुप कराने के लिए किए गए थे, या फिर गलत नीतियों को लागू करने के लिए।

संविधान में बदलाव की आवश्यकता

राजनाथ सिंह ने आगे कहा, “भारत का संविधान इतना समृद्ध और संरक्षित है कि इसमें संशोधन की आवश्यकता हमेशा महसूस की गई। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने भी स्वीकार किया था कि संविधान भविष्य की सभी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाएगा, इसलिए उसमें संशोधन की व्यवस्था की गई है।”

इस टिप्पणी से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान के लचीलेपन और समयानुसार उसके संशोधन की आवश्यकता को लेकर राजनाथ सिंह ने अपनी समझ और दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।

लोकतंत्र की ताकत

राजनाथ सिंह ने यह भी कहा कि भारत का संविधान लोकतंत्र की जननी है, और यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अंतर्गत संविधान के सिद्धांतों को लागू करने का माध्यम है। उन्होंने इस पर बल दिया कि भारत में लोकतांत्रिक संस्थानों की स्वतंत्रता और संविधान के पवित्रता को बनाए रखना बेहद जरूरी है।

उनका यह बयान विपक्षी दलों द्वारा संविधान की रक्षा करने के दावे पर सवाल उठाते हुए आया। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने हमेशा संविधान की स्वतंत्रता और समाज के बेहतर विकास के लिए उसकी स्थिरता को नकारा है।

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