तबला वादक जाकिर हुसैन का निधन, भारतीय संगीत जगत में शोक की लहर
भारतीय शास्त्रीय संगीत के महानायक और विश्व प्रसिद्ध तबला वादक, उस्ताद जाकिर हुसैन का 15 दिसंबर को निधन हो गया। वे अमेरिकी शहर सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में इलाज के दौरान अंतिम समय में रहे। उस्ताद जाकिर हुसैन आईडीओपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस (Idiopathic Pulmonary Fibrosis) नामक गंभीर फेफड़ों की बीमारी से जूझ रहे थे और करीब दो हफ्तों से अस्पताल में भर्ती थे। उनकी हालत शनिवार, 14 दिसंबर को गंभीर हो गई थी, जिसके बाद उन्होंने अस्पताल में आखिरी सांस ली। उनके निधन की खबर ने संगीत प्रेमियों, कलाकारों और प्रशंसकों को शोक में डुबो दिया है।
बचपन से लेकर विश्व पटल तक की यात्रा
जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था। भारतीय शास्त्रीय संगीत के इस दिग्गज ने महज तीन साल की उम्र में तबला बजाना शुरू कर दिया था। उनके पिता, उस्ताद अल्ला रखा, स्वयं एक महान तबला वादक थे, जिन्होंने उन्हें संगीत की बारीकियां सिखाई। जाकिर की प्रतिभा बचपन से ही उजागर हो गई थी। महज 11 साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला सार्वजनिक मंच प्रदर्शन किया। उनके द्वारा पेश की गई तबला की धुनों ने न केवल भारतीय संगीत प्रेमियों को आकर्षित किया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी पहचान बन गई।
संघर्ष और परिवार के खिलाफ घर से भाग जाना
जाकिर हुसैन के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उनकी मां उनके संगीत करियर के खिलाफ थीं। एक इंटरव्यू के दौरान जाकिर हुसैन ने बताया था कि जब वह महज छह साल के थे, तो उन्होंने घर छोड़ने का फैसला किया था।
“मेरी मां नहीं चाहती थीं कि मैं संगीत को अपना करियर बनाऊं। वह मुझे संगीत से दूर रखना चाहती थीं। मैं बहुत दुखी था और मैंने अपनी एक सहेली, पुजारन, से कहा, ‘चलो भाग जाते हैं, तुम गाओ और मैं तबला बजाऊं। हम इसी तरह अपना जीवन यापन करेंगे’,” जाकिर हुसैन ने अपनी ज़िंदगी के उस दौर को याद करते हुए कहा।
उनकी यह बात सुनकर सिमी गरवाल ने पूछा, “क्या तुमने सोचा था कि खाने के लिए क्या होगा?” इस पर जाकिर हुसैन ने कहा, “खाने के बारे में तो नहीं सोचा था, लेकिन मेरे पास मेरे पिता और मेरे गुरु का आशीर्वाद था। यही वह वजह थी, जो मुझे घर लौटने से रोक सकती थी।”
यह संघर्ष और उनके पिता उस्ताद अल्ला रखा के प्रति उनका गहरा सम्मान उनकी संगीत यात्रा के प्रेरणास्त्रोत बने। जाकिर ने हमेशा अपने पिता को अपने गुरु और जीवन का सबसे बड़ा मार्गदर्शक माना।
संगीत का महाकवि, भारतीय संगीत को वैश्विक मंच पर पहचान
जाकिर हुसैन ने न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत को बल्कि विश्वभर में भारतीय संगीत की धारा को नया आयाम दिया। उनकी कला में भारतीय ताल और रिदम की सूक्ष्मता के साथ-साथ पश्चिमी संगीत का भी अद्भुत संगम देखने को मिलता था। वे एक ओर जहां भारतीय संगीत को सशक्त कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर पश्चिमी संगीत के साथ मिलकर उसे वैश्विक स्तर पर पहचान दिला रहे थे।
उस्ताद जाकिर हुसैन ने जॉन मैक्लॉघलिन और ल. शंकर के साथ शाक्ती जैसे अंतरराष्ट्रीय बैंड्स में काम किया। उन्होंने अमेरिकन संगीतकार मिकी हार्ट और ग्रेटफुल डेड के साथ भी कई लाइव शो किए। वे एक ऐसे संगीतकार थे, जिन्होंने भारतीय संगीत के पारंपरिक रूपों को पूरी दुनिया में पेश किया और अपनी रचनाओं से संगीत की सीमाओं को पार किया।
श्रद्धांजलि और शोक
जाकिर हुसैन के निधन की खबर ने पूरे संगीत जगत को स्तब्ध कर दिया है। सोशल मीडिया पर उनके प्रशंसकों, संगीतकारों, राजनेताओं और फिल्मी हस्तियों द्वारा श्रद्धांजलि की बाढ़ आ गई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जाकिर हुसैन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ट्वीट किया, “उस्ताद जाकिर हुसैन भारतीय संगीत के अनमोल रत्न थे। उन्होंने न केवल संगीत की दुनिया में अमिट छाप छोड़ी, बल्कि वह भारतीय संस्कृति के दूत भी थे। उनका निधन संगीत और संस्कृति की दुनिया के लिए एक अपूरणीय क्षति है।”
बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन ने भी सोशल मीडिया पर शोक व्यक्त करते हुए लिखा, “उस्ताद जाकिर हुसैन की कला और योगदान हम सब के दिलों में हमेशा जीवित रहेगा। उनके संगीत ने हमें सिखाया कि हर ताल, हर राग में अनंत गहराई हो सकती है।”
परिवार का बयान
जाकिर हुसैन के परिवार ने एक बयान जारी किया, जिसमें उनके निधन की पुष्टि की गई। परिवार ने कहा, “उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन एक अपूरणीय क्षति है। वे केवल एक महान संगीतकार नहीं थे, बल्कि एक अद्भुत शिक्षक, मार्गदर्शक और प्रेरणास्त्रोत थे। उनके योगदान ने अनगिनत संगीतकारों को प्रेरित किया और भारतीय संगीत को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई। उनका सपना था कि वे आने वाली पीढ़ी को प्रेरित कर सकें, और इसमें वह सफल रहे।”