“एक देश, एक चुनाव विधेयक” लोकसभा में पेश: विपक्षी दलों ने किया विरोध, सहयोगी पार्टियों ने किया समर्थन
लोकसभा में संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024 और इससे जुड़े ‘संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024’ को पेश किया गया। यह विधेयक जिसे ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक के नाम से भी जाना जा रहा है, देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने के लिए प्रस्तावित किया गया है। इस विधेयक के समर्थन और विरोध में विभिन्न दलों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए। जहां विपक्षी दलों ने इस विधेयक का तीव्र विरोध किया, वहीं एनडीए की सहयोगी पार्टियां तेदेपा, जदयू और शिवसेना ने इसका समर्थन किया।
एक देश, एक चुनाव विधेयक: क्या है इसका उद्देश्य?
‘एक देश, एक चुनाव’ का उद्देश्य भारत में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने का है। वर्तमान में देश में चुनावों का सिलसिला लगातार चलता रहता है, जिससे देश में राजनीतिक अस्थिरता और वित्तीय खर्च बढ़ता है। इस विधेयक का प्रस्ताव है कि पूरे देश में एक साथ चुनाव कराए जाएं, जिससे चुनावी खर्च में कमी आएगी और सरकार की नीतियों में निरंतरता बनी रहेगी।
तेदेपा का समर्थन
तेदेपा पार्टी के सांसद चंद्रशेखर पेम्मासानी ने इस विधेयक का समर्थन करते हुए लोकसभा में कहा कि उनकी पार्टी राष्ट्र निर्माण के पक्षधर रही है। उन्होंने बताया, “हमारी पार्टी का मानना है कि अब चुनाव क्षेत्रीय नहीं रह गए हैं। आज के तकनीकी और मीडिया के युग में चुनावी अभियान का असर पूरे देश पर होता है। ऐसे में, पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने का फैसला सही है और हमारी पार्टी इसका समर्थन करती है।”
तेदेपा ने जोर देकर कहा कि ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक से न केवल चुनावी प्रक्रिया की लागत कम होगी, बल्कि इससे पूरे देश में चुनावों की अवधि कम हो जाएगी, जिससे शासन में स्थिरता आएगी और विकास की योजनाओं को लागू करने में आसानी होगी। तेदेपा के अनुसार, यह विधेयक समाज के विभिन्न वर्गों के लिए लाभकारी साबित होगा और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को और अधिक मजबूत करेगा।
जदयू का समर्थन: ‘राष्ट्रहित में है यह विधेयक’
जनता दल (यूनाइटेड) ने ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक को देश हित में करार दिया। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि उनका दल पहले से ही इस विधेयक के पक्ष में रहा है। उन्होंने कहा, “यह विधेयक भारतीय लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक है। इससे सरकार की योजनाओं और नीतियों में निरंतरता बनी रहेगी और चुनावी खर्च पर नियंत्रण मिलेगा।”
राजीव रंजन ने यह भी कहा कि भारतीय लोकतंत्र को सशक्त बनाने के लिए लंबे समय तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ होते थे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में राज्य सरकारों के पतन और विधानसभाओं के चुनावों के कारण चुनावों की झंझट में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा, “अगर एक बार फिर से यह व्यवस्था लागू होती है तो यह निर्वाचन तंत्र की निष्पक्षता और लोकतंत्र की मजबूती को सुनिश्चित करेगा।”
केंद्रीय कानून मंत्री का बयान
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक के समर्थन में कहा कि यह विधेयक पूरी तरह से संविधान के अनुरूप है और इससे संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं होगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह विधेयक न तो संसद के नियमों का उल्लंघन करता है और न ही राज्यों के चुनावी अधिकारों को प्रभावित करता है।
कानून मंत्री ने विधेयक की संवैधानिक वैधता की पुष्टि करते हुए कहा, “हमने इस विधेयक को संविधान के सभी प्रावधानों का पालन करते हुए तैयार किया है। यह विधेयक चुनावी व्यवस्था को सुधारने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है और इससे देश में चुनावी प्रक्रिया और सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में अधिक स्थिरता आएगी।”
विपक्षी दलों का विरोध
विपक्षी दलों ने इस विधेयक का जोरदार विरोध किया है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि यह विधेयक संविधान में बदलाव के बिना लागू नहीं किया जा सकता। विपक्षी नेताओं का दावा है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ से चुनावी प्रक्रिया में केंद्र का प्रभाव बढ़ेगा और राज्यों की स्वायत्तता को खतरा होगा।
कांग्रेस पार्टी ने विधेयक को भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा बताया और इसे ‘संवैधानिक संकट’ करार दिया। पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि यह विधेयक सरकार की चुनावी रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य अगले चुनाव में भाजपा को लाभ पहुंचाना है। कांग्रेस ने कहा कि यह विधेयक लोकतंत्र की मौलिक प्रक्रियाओं के खिलाफ है और राज्यों की स्वतंत्रता को सीमित करता है।
जेपीसी में भेजे जाने की मांग
लोकसभा में विधेयक को पेश करने के बाद, सत्ता और विपक्ष दोनों ने इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में भेजने की मांग की। दोनों पक्षों ने कहा कि इस विधेयक पर विस्तृत चर्चा और बहस की आवश्यकता है, ताकि इससे जुड़ी सभी संवैधानिक और कानूनी जटिलताओं को स्पष्ट किया जा सके। विपक्ष का आरोप है कि सरकार इस विधेयक को जल्दबाजी में पारित कराना चाहती है, बिना इसके सभी पहलुओं पर गहराई से विचार किए।
विधेयक का भविष्य
लोकसभा में इस विधेयक को पेश कर दिया गया है और इसे अगले कुछ दिनों में समिति के पास भेजा जा सकता है। इसके बाद, संसद में विधेयक पर चर्चा होगी, जिसके बाद मतदान की प्रक्रिया शुरू होगी। हालांकि, विपक्षी दलों के विरोध और विभिन्न कानूनी और संवैधानिक सवालों के कारण यह विधेयक संसद से पारित होने के बाद भी कई कानूनी और राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर सकता है।
विधेयक के समर्थकों का कहना है कि एक साथ चुनाव कराने से चुनावी खर्च में कमी आएगी, चुनावी प्रक्रिया की स्थिरता बढ़ेगी और सरकार के कार्यकाल के दौरान निरंतरता बनी रहेगी। वहीं, विपक्षी दलों का मानना है कि यह विधेयक राज्यों की स्वायत्तता और लोकतंत्र की स्वतंत्रता को कमजोर करेगा।