UP विधानसभा का शीतकालीन सत्र हंगामे के बीच हुआ अनिश्चितकाल के लिए स्थगित
उत्तर प्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र बुधवार को भारी हंगामे के बीच समाप्त हो गया। सदन में समाजवादी पार्टी (सपा) के विधायकों द्वारा किए गए जोरदार विरोध के कारण विधानसभा की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई। यह पहली बार था जब अनुपूरक बजट पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का वक्तव्य दिए बिना ही विपक्ष के विरोध के चलते सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी।
सपा के हंगामे से रुकी चर्चा
विधानसभा में आज कुंभ पर चर्चा होनी थी, लेकिन समाजवादी पार्टी के विधायकों के हंगामे के कारण यह चर्चा दो दिन से नहीं हो पाई थी। सूत्रों के मुताबिक, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने विधायकों से सुबह एक संक्षिप्त बैठक की थी, जिसमें उन्होंने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर से संबंधित मुद्दे पर सदन में गंभीरता से आवाज उठाने का निर्देश दिया था।
आज, सपा के सभी विधायक बाबा साहेब अंबेडकर के पोस्टर लगे प्ले कार्ड लेकर सदन में पहुंचे और जैसे ही सदन की कार्यवाही शुरू हुई, वे वेल (विधानसभा के केंद्रीय स्थान) में घुस गए। इस दौरान स्पीकर सतीश महाना ने कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन हंगामा थमने का नाम नहीं ले रहा था। अंततः, स्पीकर महाना ने सदन का सत्रावसान करने का निर्णय लिया।
सरकार और विपक्ष का बयान
सदन की कार्यवाही स्थगित होने के बाद उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा, “विपक्षी दलों के पास कोई नीति और एजेंडा नहीं है। वे केवल सदन को चलने नहीं देना चाहते हैं। जनता यह सब देख रही है और समय आने पर इसका जवाब विपक्ष को मिलेगा।”
उपमुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि विपक्षी दल केवल सत्ता पक्ष के खिलाफ हंगामा करने के लिए सदन में आ रहे हैं, लेकिन उनके पास कोई ठोस मुद्दा नहीं है। उनका कहना था कि विपक्ष जनता के बीच कोई सकारात्मक संदेश नहीं दे पा रहा है और यह सिर्फ सरकार की आलोचना करने के लिए हंगामा कर रहा है।
वहीं, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी हंगामे के बाद प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा, “हमारे विधायक सरकार से पूरे सवालों का जवाब चाहते थे, लेकिन सरकार जवाब नहीं देना चाहती थी। इसलिए सत्तापक्ष ने खराब भाषा का इस्तेमाल किया। यह लोग लोकतंत्र को तंत्र की तरह चलाना चाहते हैं। यह तानाशाही की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं।”
अखिलेश यादव ने कहा कि सदन में उनके पार्टी के विधायक लगातार एक ही सवाल पूछ रहे थे, लेकिन सरकार की तरफ से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया गया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सत्ता पक्ष लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर कर रहा है और सवाल उठाने वालों के खिलाफ दमनकारी रुख अपना रहा है।
सदन की कार्यवाही पर प्रभाव
इस हंगामे ने न केवल शीतकालीन सत्र को समाप्त किया, बल्कि सदन में चल रही महत्वपूर्ण चर्चाओं को भी प्रभावित किया। पहले से तय किया गया था कि विधानसभा में कुंभ के आयोजन, अंबेडकर से संबंधित मुद्दों और अन्य विकास कार्यों पर चर्चा होगी, लेकिन विपक्षी हंगामे के कारण यह संभव नहीं हो सका। इसके अलावा, अनुपूरक बजट पर सीएम योगी आदित्यनाथ का बयान भी स्थगित हो गया, जो सरकार के लिए एक बड़ी उपलब्धि हो सकती थी।
राजनीतिक दृष्टिकोण
उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए यह हंगामा राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। सपा द्वारा उठाए गए मुद्दे और सरकार की तरफ से दी गई प्रतिक्रियाएं दोनों ही पक्षों के लिए जनता के बीच अपना रुख स्पष्ट करने का एक अवसर बन गई हैं।
जहां एक ओर सपा इस हंगामे को सरकार के खिलाफ एक बड़े आंदोलन के रूप में प्रस्तुत कर रही है, वहीं भाजपा इसे विपक्ष की निरंतर विफलता और अपनी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा मान रही है। इसके जरिए भाजपा ने विपक्ष के नेतृत्व को कमजोर करने की कोशिश की है और अपने समर्थकों के बीच यह संदेश दिया है कि सपा के पास कोई ठोस एजेंडा नहीं है।
हंगामे के कारण
सपा ने विधानसभा में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर से संबंधित मुद्दे को लेकर हंगामा किया। इस मुद्दे को उठाने के लिए सपा के विधायक बाबा साहेब के पोस्टर और प्ले कार्ड लेकर सदन पहुंचे थे। उनका आरोप था कि सरकार अंबेडकर की जयंती और उनके योगदान को नजरअंदाज कर रही है। इसके अलावा, सपा के नेता इस मुद्दे को जनता के बीच एक बड़े आंदोलन के रूप में उभारने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि सरकार पर दबाव डाला जा सके।
उपमुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया
ब्रजेश पाठक ने विपक्ष के हंगामे पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा कि विपक्षी दलों का यह हंगामा जनता को गुमराह करने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि सरकार विपक्ष के किसी भी मुद्दे का समाधान करने के लिए तैयार है, लेकिन विपक्ष का हंगामा किसी समाधान की ओर नहीं बढ़ता।
उपमुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि विपक्ष को पहले अपने एजेंडे को स्पष्ट करना चाहिए और फिर हंगामा करना चाहिए, लेकिन जब उनके पास कोई ठोस मुद्दा नहीं है, तो उन्हें केवल सदन की कार्यवाही में विघ्न डालने का ही सहारा लेना पड़ता है।