Uttarakhand

रिस्पना नदी के बाढ़ क्षेत्र में बसी मलिन बस्तियों को लेकर एनजीटी का आदेश, मांगी रिपोर्ट

देहरादून: निकाय चुनावों के बीच, रिस्पना नदी के बाढ़ क्षेत्र में स्थित झुग्गी बस्तियों को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के ताजे आदेश से राज्य सरकार में हलचल मच गई है। एनजीटी ने रिस्पना किनारे बसी हुई इन मलिन बस्तियों को लेकर अगली सुनवाई में राज्य सरकार से विस्तृत रिपोर्ट की मांग की है। साथ ही, राज्य सरकार के प्रमुख अधिकारियों को अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा है।

एनजीटी का आदेश और राज्य सरकार की स्थिति

रिस्पना नदी के किनारे स्थित बस्तियों को लेकर एनजीटी ने गंभीर चिंता जताई है। एनजीटी के आदेश के बाद राज्य सरकार ने इसकी समीक्षा शुरू कर दी है और अब यह अध्ययन किया जा रहा है कि इस आदेश का पालन कैसे किया जा सकता है। दरअसल, यह मामला तब सामने आया जब निरंजन बागची ने एनजीटी में रिस्पना के बाढ़ क्षेत्र में स्थित बस्तियों के खिलाफ शिकायत की थी। इसके बाद एनजीटी ने बस्तियों को हटाने का आदेश दिया और आगामी सुनवाई में अधिक विवरण प्रस्तुत करने के लिए सरकार को निर्देशित किया।

जिलाधिकारी और अन्य अधिकारियों द्वारा की गई कार्रवाई

एनजीटी के आदेश के बाद देहरादून जिला प्रशासन ने इन बस्तियों को हटाने के लिए सक्रिय कदम उठाए थे। जिलाधिकारी की स्तर से 89 अतिक्रमण चिह्नित किए गए थे, जिनमें से 69 को हटाने की रिपोर्ट एनजीटी को भेजी गई। हालांकि, इस प्रक्रिया में उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बाढ़ क्षेत्र के बारे में जानकारी दी थी, लेकिन बोर्ड ने एनजीटी को अपनी अंतिम स्थिति पर कोई रिपोर्ट नहीं भेजी। इससे एनजीटी की चिंता और भी बढ़ गई है।

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय का लागू कानून

एनजीटी ने राज्य सरकार के मलिन बस्तियों संबंधी अध्यादेश का भी संज्ञान लिया है। एनजीटी के न्यायिक सदस्य जस्टिस अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. अफरोज अहमद की पीठ ने माना है कि इस मामले में राज्य सरकार का कानून लागू नहीं होगा, बल्कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय का कानून लागू होगा। इसके चलते, एनजीटी ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव को निर्देशित किया है कि वे पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत रिस्पना नदी किनारे अतिक्रमण हटाने के लिए एक प्रस्ताव पेश करें।

एनजीटी ने इसके साथ ही राज्य सरकार के शहरी विकास सचिव, सिंचाई सचिव, देहरादून जिलाधिकारी, नगर आयुक्त और एमडीडीए के उपाध्यक्ष को व्यक्तिगत रूप से अगले सुनवाई में पेश होने का आदेश दिया है। यह सुनवाई 13 फरवरी को होगी, और तब तक राज्य सरकार को इस मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी।

सरकार का रुख

सरकारी सूत्रों के मुताबिक, राज्य सरकार एनजीटी के आदेश का अध्ययन कर रही है और इसे लागू करने के तरीके पर विचार कर रही है। हालांकि, राज्य सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि एनजीटी के आदेश में कहीं भी बस्तियों को हटाने का स्पष्ट निर्देश नहीं दिया गया है। केवल अतिक्रमण के खिलाफ कदम उठाने की बात कही गई है।

वहीं, राज्य सरकार के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “हम एनजीटी के आदेश का अध्ययन कर रहे हैं और इस मामले में सभी जरूरी कदम उठाएंगे। हम राज्य और केंद्र सरकार के कानूनों के तहत कार्य करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि किसी भी नागरिक के अधिकारों का उल्लंघन न हो।”

रिस्पना के बाढ़ क्षेत्र में बसी बस्तियों का मुद्दा

रिस्पना नदी के बाढ़ क्षेत्र में बसी हुई इन बस्तियों में कई परिवार रहते हैं, जो लंबे समय से इस इलाके में बसे हुए हैं। यह इलाका मुख्य रूप से कच्चे मकानों और अस्थायी झुग्गियों से भरा हुआ है। बस्तियों में रहने वाले लोगों की बड़ी संख्या गरीब और मजदूर वर्ग से संबंधित है, जो यहां किसी न किसी कारण से आकर बस गए हैं।

इन बस्तियों में रहने वाले लोग मुख्य रूप से छोटे-मोटे कामों में लगे हुए हैं और उनकी दैनिक ज़िंदगी में कई तरह की कठिनाइयाँ हैं। सरकार के आदेशों के बाद यह सवाल उठता है कि अगर इन बस्तियों को हटाया जाता है, तो इन लोगों को पुनर्वास की क्या व्यवस्था की जाएगी।

बस्तियों के हटाने पर स्थानीय समुदाय की चिंता

रिस्पना नदी के बाढ़ क्षेत्र में बसी बस्तियों के बारे में स्थानीय समुदाय में भी चिंता व्याप्त है। बस्तियों में रहने वाले लोग अब यह डर रहे हैं कि उन्हें बेघर किया जा सकता है। यह लोग पहले ही अपने जीवन यापन के लिए संघर्ष कर रहे हैं, और अब इस आदेश के बाद उनके सामने पुनः विस्थापन का संकट आ सकता है।

स्थानीय निवासियों का कहना है कि उन्हें अन्य जगहों पर बसाने के लिए सरकार से कोई ठोस योजना नहीं आई है। ऐसे में, बस्तियों को हटाने का आदेश अगर लागू किया जाता है तो इन लोगों की जिंदगी पर भारी असर पड़ सकता है।

संभावित समाधान

स्थानीय समुदाय और सरकार के बीच संवाद बढ़ाने की आवश्यकता महसूस हो रही है। राज्य सरकार को चाहिए कि वह बस्तियों को हटाने के आदेश का पालन करते हुए, प्रभावित लोगों के लिए उचित पुनर्वास की व्यवस्था सुनिश्चित करे। इसके अलावा, बाढ़ क्षेत्र में अतिक्रमण हटाने के साथ-साथ इन क्षेत्रों में पर्यावरणीय प्रभावों को भी ध्यान में रखा जाए, ताकि भविष्य में कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा न हो।

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