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कोटद्वार के सिद्धबली मंदिर का रहस्य और धार्मिक महत्व

उत्तराखंड के हरे-भरे पहाड़ों के बीच बसा सिद्धबली(Sidhbali) मंदिर न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि आस्था, चमत्कार और लोककथाओं का अद्भुत संगम भी है। यह मंदिर पौड़ी गढ़वाल जिले के कोटद्वार शहर में, खोह नदी के किनारे स्थित है। खोह नदी को पौराणिक मान्यता प्राप्त है कि यह वही कौमुदी नदी है जहाँ चंद्रमा ने तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था।

मंदिर की भौगोलिक स्थिति इसे एक शांत, आध्यात्मिक और दर्शनीय स्थल बनाती है। यहां आने वाले भक्त न सिर्फ हनुमान जी के दर्शन करते हैं, बल्कि इतिहास, परंपरा और चमत्कारों से भी जुड़ जाते हैं। सिद्धबली मंदिर की खासियत यह है कि यहां दो महान आत्माओं — हनुमान जी और सिद्ध गोरखनाथ की एक साथ पूजा होती है। इस कारण इसे ‘सिद्धबली’ कहा जाता है, यानी ऐसा स्थल जहाँ “सिद्ध शक्तियाँ” विद्यमान हैं।


हरपाल से सिद्धबली(Sidhbali) तक: एक लोककथा

सिद्धबली का असल नाम हरपाल था, जो कत्युर वंश के राजा कुंवर और रानी विमला के पुत्र थे। यह कहानी लोकश्रुति पर आधारित है, जो उत्तराखंड की परंपराओं में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आई है।

राजा की छह रानियाँ थीं लेकिन कोई संतान नहीं थी। उन्होंने अपने ईष्ट गोरखनाथ से संतान की मन्नत माँगी। उसी दौरान उन्हें एक वीर युवती विमला मिली, जिससे विवाह के बाद एक पुत्र हुआ — हरपाल। अन्य रानियों की ईर्ष्या के कारण विमला को नवजात बच्चे के साथ महल से निकाल दिया गया। विमला जंगल में छोलिया उडियार नामक गुफा में चली गई और वहीं हरपाल की परवरिश की।

हरपाल बड़े हुए तो अत्यंत बलवान निकले। वे जंगल में रहने के दौरान ढाक लूटने लगे — यानी उस समय के राजकीय राशन को लूटते थे। राजा के सैनिकों ने यह पता लगाने के बाद कि यह बालक उनका ही पुत्र है, उसे बुलाने की कोशिश की। हरपाल को वापस लाने के लिए राजा ने दो शर्तें रखीं — एक नरभक्षी बाघ को मारना और कालूमल से लुटे हुए घोड़े वापस लाना।

हरपाल ने दोनों काम पूरे किए — बाघ पर सवार होकर महल पहुँचे और घोड़ों को भी वापस लाए। लेकिन वापसी में कालूमल ने छल से खाई में बरछे गाड़ दिए, जिससे हरपाल की मृत्यु हो गई। तभी उसकी मां की पुकार पर गोरखनाथ वहां प्रकट हुए और हरपाल को जीवनदान दिया। लेकिन उन्होंने कहा कि राजा ने इस बालक की शक्ति को नहीं पहचाना, इसलिए अब हरपाल को वह अपने साथ ले जा रहे हैं — और उसे सिद्धबली के रूप में सिद्ध किया गया।


मंदिर की मान्यता और चमत्कार

सिद्धबली मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां पर जो भक्त सच्चे मन से मन्नत मांगते हैं, उनकी मुरादें जरूर पूरी होती हैं। मान्यता है कि मन्नत पूरी होने पर भक्तजन भंडारा करवाते हैं — और मंदिर में इतने भंडारे होते हैं कि 2026 तक की सारी तारीखें पहले से बुक हो चुकी हैं।

यह मंदिर न केवल गढ़वाल बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और पंजाब से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। सप्ताह में खासकर शनिवार, रविवार और मंगलवार को मंदिर में विशेष भीड़ होती है।

सिद्धबली मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण में भी आता है — अध्याय 119 के छठे श्लोक में इस स्थान की पवित्रता का वर्णन किया गया है। यह दर्शाता है कि यह कोई नया तीर्थ नहीं, बल्कि प्राचीन भारत की धार्मिक धरोहर है।


कैसे पहुँचे और क्या देखें?

कोटद्वार रेलवे और बस सेवा से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। दिल्ली से सीधी ट्रेनें कोटद्वार तक आती हैं। कोटद्वार रेलवे स्टेशन से सिद्धबली मंदिर की दूरी लगभग 2 किलोमीटर है, जिसे पैदल या ऑटो से आसानी से तय किया जा सकता है।

मंदिर परिसर में पूजा सामग्री की दुकानें, जलपान केंद्र और बैठने की व्यवस्था भी अच्छी है। पास में खोह नदी बहती है, जहाँ बैठकर भक्तजन ध्यान करते हैं या परिवार सहित समय बिताते हैं। इसके अलावा, कोटद्वार के पास ट्रैकिंग, प्राकृतिक गुफाएं और अन्य धार्मिक स्थल भी हैं, जिन्हें एक दिन के ट्रिप में कवर किया जा सकता है।


निष्कर्ष

सिद्धबली मंदिर सिर्फ पूजा करने का स्थान नहीं है, यह उत्तराखंड की आस्था, इतिहास और अध्यात्मिक ऊर्जा का जीवंत केंद्र है। यहां हर कदम पर कोई न कोई लोककथा, चमत्कार या पौराणिक संदर्भ जुड़ा हुआ है। अगर आप उत्तराखंड में हैं या वहां की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो कोटद्वार का सिद्धबली मंदिर जरूर देखिए — शायद आपके जीवन की कोई अधूरी मन्नत वहीं पूरी हो जाए।

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सिद्धबली मंदिर किस देवता को समर्पित है?

यह मंदिर हनुमान जी और सिद्ध गोरखनाथ को समर्पित है

क्या मंदिर में मन्नत पूरी होने पर भंडारा किया जाता है?

हां, परंपरा के अनुसार मन्नत पूरी होने पर भक्तजन भंडारे का आयोजन करते हैं

सिद्धबली मंदिर किस नदी के किनारे स्थित है?

खोह नदी के किनारे, जिसे पौराणिक रूप से कौमुदी नदी भी कहा जाता है

सिद्धबली की असली पहचान क्या थी?

सिद्धबली असल में हरपाल नामक एक वीर बालक थे जिन्हें गोरखनाथ जी ने सिद्ध बना दिया

क्या यह सिद्धबली मंदिर स्कंद पुराण में वर्णित है?

हाँ, स्कंद पुराण के अध्याय 119, श्लोक 6 में इसका उल्लेख मिलता है

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