पंजाब में भूमि विवाद के कारण नेशनल हाईवे परियोजनाओं में बड़ी बाधा, कई परियोजनाओं पर धीमी प्रगति
चंडीगढ़: पंजाब में भूमि संबंधित विवादों के कारण नेशनल हाईवे परियोजनाओं में गंभीर रुकावट आ रही है। राज्य में पिछले तीन सालों में 38 महत्वपूर्ण नेशनल हाईवे परियोजनाओं की घोषणा की गई थी, लेकिन भूमि अधिग्रहण और अन्य प्रशासनिक समस्याओं के चलते इन परियोजनाओं पर धीमी गति से काम हो रहा है। यहां तक कि कुछ परियोजनाओं की लागत भी बढ़ चुकी है, और एक परियोजना को रद्द कर दिया गया है।
केंद्र सरकार के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा संसद में प्रस्तुत की गई रिपोर्ट ने इन परियोजनाओं की स्थिति को लेकर गंभीर संकेत दिए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब में कुल 38 नेशनल हाईवे परियोजनाओं में से केवल 16 परियोजनाओं पर 50% या उससे अधिक काम हुआ है, जबकि 22 परियोजनाओं पर काम की गति काफी धीमी है। साथ ही, लुधियाना-बठिंडा हाईवे परियोजना की लागत में बढ़ोतरी भी हो चुकी है।
भूमि विवादों के कारण रद्द हुईं महत्वपूर्ण परियोजनाएं
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि पहले पंजाब की तीन प्रमुख नेशनल हाईवे परियोजनाएं भूमि विवादों के कारण रद्द कर दी गई थीं, और अब एक और परियोजना को रद्द कर दिया गया है। इन रद्द की गई परियोजनाओं में लुधियाना-रूपनगर हाईवे, सदर्न लुधियाना बाईपास, अमृतसर-घोमान टांडा पैकेज-2, और दिल्ली-अमृतसर-कटड़ा फेज-1 स्पर-2 शामिल हैं। इन चार परियोजनाओं का कुल आकार 134.03 किलोमीटर था और इन पर 4712.46 करोड़ रुपये खर्च किए जाने थे। इन परियोजनाओं के रद्द होने से राज्य को एक बड़ा आर्थिक और बुनियादी ढांचा नुकसान हुआ है।
लुधियाना-बठिंडा हाईवे परियोजना की स्थिति
लुधियाना-बठिंडा हाईवे परियोजना, जिसे तीन चरणों में पूरा किया जाना है, भी भूमि अधिग्रहण की समस्या से जूझ रही है। इस परियोजना के पहले पैकेज (30.3 किलोमीटर) के लिए 100% भूमि का अधिग्रहण किया जा चुका है। दूसरे पैकेज (45.24 किलोमीटर) के लिए 92.04% भूमि का अधिग्रहण किया गया है, लेकिन तीसरे पैकेज के लिए भूमि अधिग्रहण में देरी हो रही है।
पंजाब में सदर्न लुधियाना बाईपास परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण केवल 88.9% तक ही किया जा सका है, जिससे निर्माण कार्य में रुकावट आई है। मंत्रालय का कहना है कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही यह तय किया जा सकेगा कि परियोजना की लागत कितनी बढ़ेगी। हालांकि, भूमि विवादों के कारण अब तक इन परियोजनाओं में देरी हो रही है और लागत भी बढ़ रही है।
प्रगति पर चिंता: धीमी गति से काम हो रहा है कई परियोजनाओं पर
पंजाब में विभिन्न नेशनल हाईवे परियोजनाओं पर काम की प्रगति में काफी भिन्नताएं हैं। रिपोर्ट के अनुसार, कई प्रमुख परियोजनाओं पर काम की गति 50% से भी कम है। कुछ प्रमुख परियोजनाओं की प्रगति इस प्रकार है:
- अमृतसर-घोमान-टांडा-ऊना सेक्शन पैकेज-1: 36% काम हुआ।
- दिल्ली-अमृतसर-कटड़ा फेज-1 स्पर-3: 23.73% काम हुआ।
- अमृतसर-बठिंडा पैकेज-1 एनएच-754ए: 31.56% काम हुआ।
- लुधियाना-रूपनगर पैकेज-1 एनएच-205के: 15.31% काम हुआ।
- जालंधर बाईपास: 30.02% काम हुआ।
- दिल्ली-अमृतसर-कटड़ा, अमृतसर कनेक्टिविटी स्पर-1: 15.35% काम हुआ।
- अंबाला-चंडीगढ़ ग्रीनफील्ड: 33% काम हुआ।
- अमृतसर-बठिंडा पैकेज-2 एनएच754ए: 22% काम हुआ।
- अबोहर-फाजिल्का सेक्शन एनएच-7: 36% काम हुआ।
इन परियोजनाओं की धीमी प्रगति राज्य के बुनियादी ढांचे की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए गंभीर चिंता का विषय बन गई है।
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के निर्देश: भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को तेज करने के आदेश
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह नेशनल हाईवे परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को तेजी से पूरा करने के लिए पंजाब सरकार को आदेश दिए थे। कोर्ट ने निर्देश दिया कि राज्य सरकार दो महीने के भीतर आवश्यक भूमि का कब्जा नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) को दिलाए, ताकि इन परियोजनाओं पर काम में कोई और देरी न हो।
एनएचएआई ने याचिका में आरोप लगाया था कि राज्य सरकार भूमि अधिग्रहण के लिए मुआवजे का वितरण ठीक से नहीं कर रही है और कोर्ट के आदेश के बावजूद पुलिस सहायता प्रदान नहीं कर रही है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से स्पष्ट रूप से कहा कि वह इन परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण को प्राथमिकता दे, ताकि इनका कार्यान्वयन समय पर हो सके।
राज्य को आर्थिक नुकसान और भविष्य की चिंता
पंजाब में धीमी गति से हो रही नेशनल हाईवे परियोजनाओं का राज्य के आर्थिक विकास पर गहरा असर पड़ रहा है। इन परियोजनाओं के रुकने या देर से पूरा होने से राज्य के इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार का कार्य प्रभावित हो रहा है। इससे न केवल राज्य की सड़कों की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है, बल्कि इससे जुड़े रोजगार और व्यापारिक गतिविधियां भी प्रभावित हो रही हैं।
इसके अतिरिक्त, भूमि अधिग्रहण की समस्याएं और लागत में बढ़ोतरी राज्य के लिए एक बड़ा वित्तीय बोझ बन सकती हैं। अगर यह समस्या जल्दी हल नहीं होती, तो पंजाब को इन परियोजनाओं के समय पर पूरा होने की उम्मीद नहीं हो सकती।