ट्रंप ने कनाडा को 51वां राज्य बनाने की इच्छा जताई, कनाडाई नेताओं में गहरी नाराजगी
अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर विवादों में घिरते दिखाई दे रहे हैं। इस बार उनका निशाना कनाडा है। ट्रंप ने सोशल मीडिया पर एक साझा नक्शा पोस्ट करते हुए कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने की इच्छा जताई, जिस पर कनाडा के नेताओं ने कड़ी नाराजगी व्यक्त की है।
सोशल मीडिया पर किए गए इस विवादास्पद पोस्ट के बाद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और विदेश मंत्री मेलानी जॉली ने ट्रंप के बयान की आलोचना करते हुए कनाडा के स्वतंत्रता और संप्रभुता की रक्षा की बात की।
ट्रंप का विवादास्पद बयान और पोस्ट
फ्लोरिडा स्थित अपने आवास पर मीडिया से बात करते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने यह स्पष्ट रूप से कहा था कि वह कनाडा को अमेरिका में मिलाने और उसे संयुक्त राज्य अमेरिका का 51वां राज्य बनाने की इच्छा रखते हैं। यह बयान राष्ट्रपति चुनाव के दौरान दिए गए उनके बयान का हिस्सा था, जिसमें उन्होंने कनाडा के साथ अमेरिका के रिश्ते को और मजबूत करने की बात की थी।
ट्रंप ने इसके बाद एक साझा नक्शा पोस्ट किया, जिसमें अमेरिका और कनाडा एक ही देश के रूप में दिखाए गए थे। नक्शे पर “संयुक्त राज्य अमेरिका” लिखा गया था। इस पोस्ट के बाद कनाडा में एक नई राजनीतिक हलचल मच गई और कई प्रमुख कनाडाई नेताओं ने ट्रंप के इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई।
कनाडा के नेताओं का कड़ा विरोध
ट्रंप के इस बयान और सोशल मीडिया पोस्ट पर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा, “कनाडा के अमेरिका का हिस्सा बनने की कोई संभावना नहीं है।” ट्रूडो ने इसे कनाडा की संप्रभुता और स्वाधीनता पर हमला मानते हुए, अमेरिका के इस दृष्टिकोण को अस्वीकार कर दिया।
कनाडा की विदेश मंत्री मेलानी जॉली ने ट्रंप के बयान को न केवल गलत, बल्कि कनाडा की मजबूत स्थिति के प्रति एक अज्ञानता के रूप में भी देखा। उन्होंने कहा, “ट्रंप का बयान कनाडा को एक मजबूत देश बनाने वाली चीजों के बारे में समझ की कमी को दिखाता है। हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत है, हमारे लोग मजबूत हैं। हम खतरों के सामने कभी पीछे नहीं हटेंगे।” उनका यह बयान कनाडा की राष्ट्रीय अस्मिता और स्वतंत्रता की रक्षा का स्पष्ट संकेत था।
पनामा नहर और ग्रीनलैंड पर ट्रंप की धमकियां
यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर विदेशी भूमि को अपनी इच्छा के अनुसार नियंत्रित करने की बात की है। इससे पहले, उन्होंने पनामा नहर और ग्रीनलैंड पर कब्जा करने के लिए सैन्य बल का इस्तेमाल करने की संभावना से भी इनकार नहीं किया। ट्रंप ने पनामा नहर के बारे में कहा था, “यह हमारे देश के लिए महत्वपूर्ण है और हमें राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों के लिए ग्रीनलैंड की भी आवश्यकता है।”
पनामा नहर एक प्रमुख जलमार्ग है जो व्यापारिक गतिविधियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, और यह पनामा के नियंत्रण में है। इसी तरह, ग्रीनलैंड, जो डेनमार्क का स्वायत्त क्षेत्र है, भी ट्रंप के निशाने पर रहा। ट्रंप ने ग्रीनलैंड को अमेरिका के नियंत्रण में लाने के लिए डेनमार्क से बातचीत की थी और यदि डेनमार्क उनके प्रस्ताव को अस्वीकार करता है, तो उन्होंने डेनमार्क पर टैरिफ लगाने की धमकी दी थी।
पनामा और डेनमार्क की प्रतिक्रिया
पनामा के विदेश मंत्री जेवियर मार्टिनेज-आचा ने ट्रंप की धमकी को सख्ती से खारिज करते हुए कहा, “पनामा नहर पनामा के नियंत्रण में है, और यह हमारे ही नियंत्रण में रहेगी।” पनामा के इस स्पष्ट और दृढ़ जवाब ने ट्रंप को और अधिक अलग-थलग कर दिया।
इसी तरह, डेनमार्क ने भी ट्रंप के ग्रीनलैंड पर नियंत्रण के प्रस्ताव को पूरी तरह से नकारा कर दिया। डेनमार्क के प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिकसेन ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि जब हम करीबी सहयोगी और साझेदार हैं, तो वित्तीय मुद्दों पर एक दूसरे पर टकराना अच्छी बात नहीं है।” डेनमार्क की यह प्रतिक्रिया इस बात का संकेत थी कि वे अपनी स्वायत्तता और क्षेत्रीय अखंडता को लेकर किसी प्रकार का समझौता करने के लिए तैयार नहीं हैं।
ट्रंप के बयानों से बढ़ता अंतरराष्ट्रीय तनाव
ट्रंप के बयानों ने न केवल कनाडा और डेनमार्क, बल्कि पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में चिंता की लहर पैदा की है। उनका यह दृष्टिकोण वैश्विक राजनीति में अमेरिकी सत्ता के दुरुपयोग का उदाहरण माना जा रहा है। जहां एक ओर ट्रंप ने अपने राष्ट्र को मजबूत करने की बात की, वहीं उनकी नीतियों और बयानों ने कई देशों के साथ तनाव बढ़ा दिया है।
कनाडा, पनामा और डेनमार्क के साथ-साथ अन्य देशों ने ट्रंप की इन धमकियों और बयानों को चुनौती दी है। इससे यह भी स्पष्ट हो रहा है कि अमेरिका के सहयोगी देश भी ट्रंप की अप्रत्याशित नीतियों और उनके आक्रामक दृष्टिकोण को लेकर चिंतित हैं।
ट्रंप का ‘अमेरिका फर्स्ट’ दृष्टिकोण
ट्रंप की विदेश नीति में हमेशा ‘अमेरिका फर्स्ट’ का सिद्धांत रहा है। उन्होंने लगातार अपने देश के हितों को प्राथमिकता दी और इसके लिए कभी भी वैश्विक सहयोग या संप्रभुता से समझौता करने की बात नहीं की। उनके इस दृष्टिकोण ने कई देशों के साथ रिश्तों में तनाव को जन्म दिया है। ट्रंप के इस दृष्टिकोण को अमेरिका में ही आलोचना का सामना करना पड़ा, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसे विवादों का कारण माना गया है।