Uttarakhand

आसन नदी: पौराणिक गाथाओं और भूगर्भीय महत्व का संगम

Asan Barrage Dehradun – देहरादून की शांत वादियों में, शिवालिक पर्वत श्रृंखला की उत्तरी ढलान पर, क्लेमेन्टाउन के पश्चिम में बसा हुआ एक छोटा सा गांव है – चन्द्रबनी। यह केवल एक साधारण गांव नहीं, बल्कि एक ऐसा प्राचीन स्थल है जिसकी गहरी जड़ें पौराणिक कथाओं और किंवदंतियों में समाई हुई हैं। इतिहास के झरोखों से झाँकती कहानियाँ आज भी यहाँ की मिट्टी में रची-बसी हैं, जो इस स्थान को एक रहस्यमय और आध्यात्मिक आभा प्रदान करती हैं। यहाँ, घने वृक्षों के बीच स्थापित है चन्द्रेश्वर महादेव का मंदिर, जो सदियों से भक्तों की आस्था का केंद्र रहा है। इसी मंदिर के समीप स्थित है गोतम कुण्ड, एक रहस्यमयी जलकुंड जो अपनी अद्भुत विशेषता के लिए जाना जाता है। इस कुण्ड में जल का निरंतर प्रवाह भूमि के भीतर स्थित एक अज्ञात स्रोत से होता है, जो इसे वर्ष भर जल से परिपूर्ण रखता है। पौराणिक ग्रंथों और स्थानीय लोककथाओं में इस पूरे क्षेत्र को कभी ‘चन्द्र बन’ के नाम से जाना जाता था, जो इसकी प्राचीनता और आध्यात्मिक महत्व का जीवंत प्रमाण है।

इस पवित्र भूमि से जुड़ी एक अत्यंत रोचक और महत्वपूर्ण पौराणिक कथा सतयुग की है। कहा जाता है कि उस समय, महान ऋषि गौतम ने सिद्ध पर्वत के इसी घने वन, जिसे चन्द्रबन कहा जाता था, में अपनी गहन तपस्या के लिए एक शांत और एकांत आश्रम का निर्माण किया था। ऋषि गौतम, एक अत्यंत ज्ञानी और तपस्वी व्यक्ति थे, जो अपनी आध्यात्मिक साधना में लीन रहते थे। उनकी दिनचर्या अत्यंत नियमित थी। प्रत्येक प्रातः काल, जब मुर्गे की बांग सुनाई देती थी, तो वे पवित्र गंगा नदी में स्नान करने के लिए जाया करते थे, जो उनके आश्रम से कुछ दूरी पर बहती थी।

इसी कालखंड में, अहिल्या नाम की एक अत्यंत रूपवती और सौंदर्य से परिपूर्ण स्त्री थीं, जो ऋषि गौतम की धर्मपत्नी थीं। उनका सौंदर्य इतना अद्वितीय था कि इसकी ख्याति स्वर्ग लोक तक फैली हुई थी। देवताओं के राजा, इंद्र, जब अहिल्या के अप्रतिम रूप और सौंदर्य के विषय में सुना, तो वे कामवासना से अभिभूत हो उठे। उनके मन में ऋषि पत्नी के साथ सहवास करने की एक कुटिल योजना जन्म लेने लगी। अपनी इस नीच योजना को साकार करने के लिए, इंद्र ने चंद्रमा की सहायता लेने का निश्चय किया। चंद्रमा, जो अपनी चंचल प्रकृति और देवताओं के राजा के प्रति सम्मान के लिए जाने जाते थे, इस षडयंत्र में शामिल हो गए। योजना के अनुसार, चंद्रमा ने आधी रात के बाद मुर्गे की तरह बांग दी। उस कृत्रिम बांग को सुनकर, ऋषि गौतम को लगा कि सुबह हो गई है और वे अपने नित्यकर्म के अनुसार गंगा स्नान के लिए निकल पड़े।

जैसे ही ऋषि आश्रम से दूर हुए, इंद्र ने अवसर का लाभ उठाया। उन्होंने गौतम ऋषि का वेश धारण किया और छल से ऋषि की कुटिया में प्रवेश कर गए। इसके बाद जो कुछ हुआ, वह एक ऐसी कहानी है जो भारतीय पौराणिक कथाओं में एक दुखद और जटिल अध्याय के रूप में जानी जाती है। जब ऋषि गौतम स्नान करके लौटे, तो उन्हें वास्तविकता का पता चला, और उनका क्रोध सीमा से परे चला गया।

अपने क्रोध की अग्नि में जलते हुए, ऋषि गौतम ने न केवल अपनी पत्नी अहिल्या को दोषी माना, बल्कि चंद्रमा को भी शाप दे दिया, जिसने इस छल में इंद्र का साथ दिया था। अहिल्या को शाप मिला कि वह पत्थर की शिला बन जाएगी और उसे इस श्राप से मुक्ति तभी मिलेगी जब अगले द्वापर युग में भगवान राम के चरण उसकी शिला से स्पर्श करेंगे। दूसरी ओर, चंद्रमा को शाप मिला कि उनका तेज क्षीण हो जाएगा और वे घटने-बढ़ने लगेंगे। चंद्रमा, अपने कृत्य पर पश्चाताप करते हुए, शाप से मुक्ति पाने के लिए इसी चन्द्रबन नामक स्थान पर भगवान शिव की कठोर तपस्या में लीन हो गए। उनकी तपस्या इतनी तीव्र और निष्ठापूर्ण थी कि भगवान शिव प्रसन्न होकर उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें शाप से मुक्त कर दिया। भगवान शिव ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण कर लिया, और तभी से वे ‘चन्द्रेश्वर’ के नाम से विख्यात हुए।

इसी कथा से जुड़ी एक और महत्वपूर्ण पात्र हैं अंजना, जो ऋषि गौतम की पुत्री थीं। अंजना भी एक शाप से ग्रस्त थीं और अपनी मुक्ति के लिए इसी पवित्र भूमि पर कठोर तपस्या कर रही थीं। उनकी निष्ठा और तपस्या इतनी प्रबल थी कि देवताओं और ऋषियों का ध्यान उनकी ओर आकर्षित हुआ। कहा जाता है कि अपनी तपस्या के दौरान, अंजना ने नारद मुनि की सहायता से भगवान शिव के तेज को धारण किया। इस दिव्य तेज के प्रभाव से, वे कुंवारी होते हुए भी पवन पुत्र हनुमान को जन्म देने में समर्थ हुईं। इस प्रकार, चन्द्रबनी न केवल गौतम ऋषि और अहिल्या की कथा से जुड़ा है, बल्कि यह हनुमान जी की माता अंजना की तपस्या और जन्मस्थली के रूप में भी महत्वपूर्ण है।

एक और महत्वपूर्ण पौराणिक मान्यता इस क्षेत्र से जुड़ी हुई है वह है गंगा माता का स्वयं यहाँ प्रकट होना। कहा जाता है कि अपने परम भक्त गौतम ऋषि की तपस्या और भक्ति से प्रसन्न होकर, वैशाखी के पवित्र दिन पर गंगा माता स्वयं पृथ्वी से एक जलधारा के रूप में फूट पड़ीं। यह जलधारा आगे चलकर एक नदी का रूप लेती है। इस स्थान पर स्थित कुण्ड में स्नान करना गंगा नदी में स्नान करने के समान ही पवित्र और मोक्षदायनी माना जाता है। भक्तों का मानना है कि इस पवित्र जल में डुबकी लगाने से उनके पाप धुल जाते हैं और उन्हें आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है। इन सभी पौराणिक कहानियों के पीछे छिपे गहरे अर्थ और तात्पर्य का विश्लेषण तो पाठक स्वयं करें, परन्तु इन कथाओं को बताने का उद्देश्य यही है कि आज भी चन्द्रबनी में चन्द्रेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर, गौतम ऋषि का पवित्र कुण्ड और अंजनी माता का मंदिर विद्यमान हैं, जो इस स्थान की गौरवशाली पौराणिक विरासत की जीवंत गवाही देते हैं।

लेखक के मन में एक प्रश्न अक्सर उठता है कि ऋषि गौतम ने मुख्य अपराधी इंद्र को छोड़कर अपनी पत्नी अहिल्या को ही क्यों दंडित किया, और उसकी मुक्ति भी एक पुरुषोत्तम के पैरों के स्पर्श से क्यों निर्धारित की गई। शायद इसका कारण यह था कि इंद्र देवताओं के राजा थे, और उस युग में भी राजाओं का विशेष स्थान और शक्ति होती थी। यह विचार आज भी प्रासंगिक है, जहाँ शक्ति और पद अक्सर न्याय के मार्ग में बाधा बन जाते हैं। जो भी कारण रहा हो, भूगर्भीय दृष्टिकोण से यह स्थान अपने आप में विशिष्ट है। यहाँ की मिट्टी और जल में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा महसूस होती है, जो शायद सदियों की तपस्या और पवित्रता का परिणाम है।

आसन नदी का उद्गम और प्रवाह: एक भूगर्भीय अध्ययन

आज, दुर्भाग्यवश, यह ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व का क्षेत्र भी आधुनिकता की मार झेल रहा है। यहाँ भी गंदगी का साम्राज्य फैल गया है, और अनियोजित बस्तियों के बसने से इसकी प्राकृतिक सुंदरता लगभग समाप्त हो गई है। लगभग बीस वर्ष पहले, यह क्षेत्र श्मशान के निकट होने के बावजूद काफी सुंदर और अपने प्राकृतिक स्वरूप में विद्यमान था। यहाँ भूमिगत जल के कई प्राकृतिक स्रोत थे, जिन्हें स्थानीय बोली में ‘ओगल’ भी कहा जाता है। इन स्रोतों से निकलने वाली जलधाराएँ मिलकर एक छोटी नदी का स्वरूप धारण करती थीं, जो आज एक संकरे नाले की तरह दिखाई देती है। यह नदी पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हुई आगे जाकर यमुना नदी में मिल जाती है। इसी नदी को “आसन” नदी के नाम से जाना जाता है।

आसन नदी अपनी यात्रा भूमिगत जल के इन्हीं असंख्य स्रोतों से प्रारंभ करती है। क्लेमेन्टाउन के पश्चिम में स्थित चन्द्रबनी और उसके आसपास के क्षेत्रों की भूमि में कई ऐसे प्राकृतिक झरने और सोते हैं जो इस नदी को जीवन प्रदान करते हैं। यहाँ से पश्चिम दिशा की ओर बहती हुई, यह नदी कुछ दूर आगे बढ़ने के बाद बढ़ोंवाला के पास उत्तराभिमुखी हो जाती है। यह एक अद्भुत भूगर्भीय परिघटना है कि यहाँ से आसन नदी दक्षिण से उत्तर की तरफ बहती हुई स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है, जो इस क्षेत्र की स्थलाकृति की विशिष्टता को दर्शाती है। दोंक्वाला के नजदीक केशोवाला से यह नदी पुनः पश्चिम की तरफ अपना रुख बदल लेती है।

अपनी आगे की यात्रा में, आसन नदी मसूरी की मनोरम पहाड़ियों, भदराज की पहाड़ियों और शिवालिक पर्वत श्रृंखला से निकलने वाली कई छोटी-बड़ी नदियों और जलधाराओं को अपने में समाहित करती हुई आगे बढ़ती है। ये सहायक नदियाँ न केवल आसन नदी के जल स्तर को बढ़ाती हैं, बल्कि इसके प्रवाह को भी निरंतर बनाए रखती हैं। इन पहाड़ियों से निकलने वाले स्वच्छ और शीतल जल से पोषित होकर, आसन नदी एक महत्वपूर्ण जलमार्ग के रूप में विकसित होती है।

आसन और टोंस का संगम: एक नदी का दूसरे में विलय

इस नदी के प्रवाह के संबंध में एक रोचक तथ्य यह है कि तमसा, जिसे टोंस नदी के नाम से भी जाना जाता है, जो कि आकार और जल की मात्रा के दृष्टिकोण से आसन नदी से कहीं अधिक बड़ी है, अंततः इसी आसन नदी में समाहित हो जाती है। यह एक अद्वितीय संगम है जहाँ एक बड़ी नदी अपना अस्तित्व छोटी नदी में विलीन कर देती है। यह घटना इस क्षेत्र की जल विज्ञान और भूगर्भीय संरचना की जटिलता को दर्शाती है। टोंस नदी, जो पश्चिमी उत्तराखंड की एक प्रमुख नदी है, यमुना नदी की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी भी है। इसका आसन नदी में विलय होना, दो महत्वपूर्ण जल प्रणालियों के आपसी संबंध को दर्शाता है।

इस प्रकार, भूमि के गर्भ से एक छोटी सी जलधारा के रूप में शुरू होकर, आसन नदी हिमालय से आने वाली विशाल यमुना नदी से पोंटा साहिब के पवित्र स्थान के पास मिलने तक अपना स्वतंत्र अस्तित्व और नाम बनाए रखती है। यह एक छोटी नदी की अद्भुत यात्रा है, जो अपने उद्गम से लेकर संगम तक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

आसन बैराज पक्षी विहार: प्रकृति और संरक्षण का संगम

आसन नदी के महत्व को और भी अधिक बढ़ाते हुए, इसी नदी पर आसन बैराज पक्षी विहार स्थित है। यह आर्द्रभूमि क्षेत्र पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों के लिए एक महत्वपूर्ण आश्रय स्थल है, खासकर सर्दियों के महीनों में जब प्रवासी पक्षी दूर-दूर से यहाँ आते हैं। आसन बैराज का निर्माण आसन नदी के पानी को रोककर एक जलाशय बनाने के उद्देश्य से किया गया था, लेकिन अनजाने में ही यह क्षेत्र पक्षी जीवन के लिए एक स्वर्ग बन गया। यहाँ विभिन्न प्रकार के स्थानीय और प्रवासी पक्षियों को आसानी से देखा जा सकता है, जिनमें बत्तखें, कलहंस, जलकाग, और विभिन्न प्रकार के shorebirds शामिल हैं।

आसन बैराज पक्षी विहार न केवल पक्षी प्रेमियों और प्रकृतिविदों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण के महत्व को भी दर्शाता है। यह क्षेत्र आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, इस क्षेत्र को भी प्रदूषण और मानव हस्तक्षेप जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनके संरक्षण के लिए निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है।

भविष्य की राह: संरक्षण और सतत विकास की आवश्यकता

आज, जब हम आसन नदी और उससे जुड़े ऐतिहासिक, पौराणिक और प्राकृतिक महत्व पर विचार करते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि इस क्षेत्र को संरक्षित और संवर्धित करने की तत्काल आवश्यकता है। अनियोजित शहरीकरण, प्रदूषण और अतिक्रमण ने इस नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र और ऐतिहासिक विरासत को खतरे में डाल दिया है। यदि समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो हम न केवल एक महत्वपूर्ण नदी और उसके आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य को खो देंगे, बल्कि अपनी समृद्ध पौराणिक और सांस्कृतिक विरासत से भी वंचित हो जाएंगे।

आवश्यकता है कि सरकार, स्थानीय समुदाय और पर्यावरण संगठन मिलकर काम करें ताकि इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व को बचाया जा सके। इसके लिए उचित योजनाएं बनाने, कानूनों का सख्ती से पालन करने और लोगों को इस क्षेत्र के महत्व के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है। सतत विकास की अवधारणा को अपनाकर, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि विकास पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए और आने वाली पीढ़ियों के लिए इस अनमोल विरासत को सुरक्षित रखा जा सके। आसन नदी और चन्द्रबनी केवल एक स्थान नहीं हैं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान और प्राकृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जिन्हें बचाना हम सभी का कर्तव्य है।

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