Uttarakhand

Gangnath Devta ki kahani

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Gangnath Devta ki Kahani – गंगनाथ डोटीगढ़ के एक समृद्ध और शक्तिशाली राजा थे, जिनका जीवन एक अद्वितीय मोड़ पर आकर आध्यात्मिकता और प्रेम के संगम में परिवर्तित हो गया। उनका राजसी जीवन, बचपन में की गई भविष्यवाणी, और भाना जोश्याणी के साथ उनका प्रेम, उत्तराखंड की लोककथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

गंगनाथ ज्यू की कथा कुमाऊं की लोकसंस्कृति में एक अद्वितीय स्थान रखती है। यह कथा प्रेम, त्याग, वैराग्य और न्याय की मिसाल है। गंगनाथ, डोटीगढ़ के राजकुमार, ने अपने जीवन में जो निर्णय लिए, वे आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। इस लेख में हम गंगनाथ के वैराग्य, जोगी बनने, भाना से पुनर्मिलन, प्रेम की त्रासदी और अंततः उनकी हत्या के बाद की घटनाओं का विस्तार से वर्णन करेंगे।

गंगनाथ का राजसी जीवन और भविष्यवाणी | Gangnath Devta ki kahani

गंगनाथ देवता की कहानी

गंगनाथ का जन्म डोटीगढ़ के कांकुर में हुआ था, जो उस समय की एक प्रमुख राजधानी थी। उनके पिता भवेचंद और माता प्योंला रानी थे। गंगनाथ के दादा केसरचन और दादी इंदुमती, चाचा उदय चंद और बहन दूधकेलि के साथ उनका परिवार एक समृद्ध और प्रतिष्ठित था। गंगनाथ के पास कंचन महल था, जिसमें सोने के सिंहासन पर मखमली गद्दी बिछी रहती थी। वे स्वर्ण पात्रों में ही भोजन करते थे और उनके राज्य में गाय-भैंसों और दूध-दही की कोई कमी नहीं थी।

गंगनाथ के जन्म के समय ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि उनका राजयोग केवल 12 वर्षों का होगा, उसके बाद वे वैराग्य ले लेंगे और जोगी बन जाएंगे। यह भविष्यवाणी उनके जीवन की दिशा को निर्धारित करने वाली थी।

उत्तरायणी मेले में जाने की तैयारी

जब गंगनाथ का 12वां वर्ष चल रहा था, तब उन्होंने बागेश्वर में आयोजित उत्तरायणी मेले में जाने का निर्णय लिया। यह मेला उस समय का एक प्रमुख व्यापारिक और सांस्कृतिक आयोजन था, जिसमें दूर-दराज से लोग आते थे। गंगनाथ अपने नौकर-चाकरों के साथ इस मेले में गए, जहां उनकी मुलाकात भाना जोश्याणी से हुई।

भाना जोश्याणी से प्रेम और विरह की शुरुआत

gangnath devta ki kahani

भाना जोश्याणी, अल्मोड़ा जिले के दन्या गांव की एक सुंदर और रूपवती महिला थी। वह अपने मायके विश्वामटक से बागेश्वर के मेले में आई थी। गंगनाथ और भाना की पहली मुलाकात मेले में हुई, जहां दोनों की नजरें मिलीं और एक गहरा प्रेम अंकुरित हुआ। भाना ने अपने सेवक झपरू लोहार को गंगनाथ के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए भेजा, और धीरे-धीरे दोनों के बीच संवाद और प्रेम का संबंध स्थापित हुआ।

मेले के समाप्त होने पर, भाना ने गंगनाथ से कहा कि जब तुम्हारा तेरहवां साल लगेगा, तो मुझे याद करना। यह वाक्य गंगनाथ के मन में गूंजता रहा और उसने भाना को अपने सपनों में देखना शुरू कर दिया। वह दिन-रात भाना के विचारों में डूबा रहता, मुरली बजाते हुए भी भाना-भाना कहता रहता।

वियोग की शुरुआत और भाना के सपने में दी गई वैराग्य की सलाह

गंगनाथ के सपनों में भाना प्रकट होकर उसे वैराग्य लेने की सलाह देती। वह कहती, “गंगनाथ! तुम तो अपनी राजधानी में ऐश और आराम कर रहे हो लेकिन मैं जब से बागेश्वर के मेले से लौटी हूं, मेरी रातों की नींद और दिन की भूख गायब हो गई है। किसी दिन इस जोशीखोला में आकर अपनी शक्ल सूरत तो दिखा जाते। मेरी आंखों की प्यास बुझ जाती, दिल की बेचैनी कम हो जाती। मैं तुमको एक उपाय बताती हूं। तुम वैराग्य ले लो। नौणी गात (मक्खन जैसा शरीर) भभूत रमा लो। केदारी कंगन, बिल्लौरी दर्शन, खरवा की झोली, तिमिरी स्वट, भसमंडी चिमटा, रतन कम्बली, पस्याली रमट, वनवासी बांसुरी, रंगढली मुरली पकड़कर, सर मुंडाकर, कान फाड़ कर घर-घर ‘माई बाप का अलख आदेश’ पुकारते हुए जोगी बन कर यहां आ जाओ। तभी तुम्हारी और मेरी मुलाकात होगी।”

इन सपनों और भाना की बातों से प्रभावित होकर, गंगनाथ ने एक दिन राजकाज छोड़कर वैराग्य ले लिया। उन्होंने अपने माता-पिता से कहा, “मां! मैं वंश का राजा था लेकिन कर्मों का जोगी निकल गया। मुझे तिरिया के दोछूंन (विरह) लगे हैं। मेरी नींद भूख चली गई है। अन्न धन का मुझे लोभ नहीं रहा। मां मुझे जोगी बन जाने दो। मेरे लिए सब घर-घर माई, घर-घर बाप है।”

गंगनाथ ने डोटीगढ़ छोड़कर शारदा (काली) नदी पार की और कुछ दिन सौणि सोर हाट (पिथौरागढ़) में रहे। फिर वे हरिद्वार गए, जहां उन्होंने हर की पैड़ी में प्रार्थना की, ब्रह्म कुंड में स्नान किया और गुरु गोरखनाथ के मठ में जाकर जोगी बनने की दीक्षा ली। गुरु ने उनके कान फाड़कर, मुंड मुंडाकर उन्हें जोगी की शिक्षा दी।

हरिद्वार से गंगनाथ दन्या आए और चौबाट चकोली में धूनी रमाई। उनकी मधुर मुरली की धुन से लोग मोहित हो जाते थे। भाना ने जब सुना कि एक सुंदर जोगी गांव में आया है, तो उसने अपने सेवक झपरू लोहार को उसके पास भेजा। गंगनाथ ने झपरू के माध्यम से भाना को आश्वस्त किया कि वह मरते दम तक उसका साथ देगा।

भाना ने गंगनाथ को गांव में बुलाकर किमुडाली (शाखा) के नीचे उसका आसन जोड़ दिया और झपरू लोहार को उसकी सेवा में नियुक्त किया। इस बीच भाना और गंगनाथ का प्रेम प्रसंग चलता रहा।

जब गंगनाथ को जोश्यूड़ में रहते हुए छह-सात महीने हो गए, तो भाना गर्भवती हो गई। यह बात दन्या के जोशियों में फैल गई और धीरे-धीरे अल्मोड़ा में भी किशनू जोशी को इस बात का पता चल गया। उसने अपने कारिंदों से, लोकलाज के भय से बचने के लिए गंगनाथ, भाना और झपरू लोहार का पीछा किया और उन्हें घाटी के गधेरे में पनचक्की के भीतर मरवा कर वहीं दफना दिया।

इसके तीसरे महीने से ये तीनों प्रेत बनकर किशनू जोशी, उसके परिवार और अन्य जोशियों को सताने और परेशान करने लगे। उन्होंने जोशी लोगों की बहुत अधिक बर्बादी कर डाली। गन्त-पूछ करने पर पता चला कि ये तीनों ही भूत बनकर उन्हें परेशान कर रहे हैं। तब किशनू जोशी और उसके बिरादरों ने दन्या के पास कुड़क्वेली में इन तीनों का पहला थान (मंदिर) बनवाया। ये तीनों थान आज भी मौजूद हैं।

वहां से गंगनाथ का प्रचार समूचे कुमाऊं में हो गया। दन्या के कुड़क्वेली से सालम का अनूपसिंह गंगनाथ को दुखी आवाज निकाल कर वहां से धत्या कर अपने यहां ले गया क्योंकि अगर के सौनों ने उसके साथ अत्याचार किया था। तब गंगनाथ को शांत करने के लिए ध्यूली गांव के टकुरी नामक स्थान पर उसका मंदिर बनाया गया, जिसे गंगनाथ की राजधानी माना जाता है। यहीं से न्यायदेवता के रूप में गंगनाथ की पूजा होना शुरू हो गई। यहां से रैनखा, सेरी, मल्ला बेली, झ्वातकिगाड़ आदि स्थानों में गंगनाथ के मंदिर बनाए गए। जिसके लिए भी कोई अन्याय होता है, वह गंगनाथ के मंदिर में जाकर उस अन्यायी के विरुद्ध आवाज लगाकर न्याय की भिक्षा मांगता है। गंगनाथ झपरू लोहार को साथ ले जाकर अन्यायी को दंडित करता है।

गंगनाथ का वैराग्य और जोगी बनना

डोटीगढ़ का त्याग और हरिद्वार में दीक्षा

gangnath ji ki kahani

गंगनाथ, डोटीगढ़ के समृद्ध और शक्तिशाली राजा भवेचंद और रानी प्योंला के इकलौते पुत्र थे। उनका जीवन सुख-संपन्नता से परिपूर्ण था। किन्तु बचपन में ही ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि उनका राजयोग केवल 12 वर्षों का होगा, उसके बाद वे वैराग्य धारण करेंगे।

बागेश्वर के उत्तरायणी मेले में भाना से मिलन के बाद गंगनाथ का मन राजकाज से हटने लगा। भाना के सपनों में आने और वैराग्य की सलाह देने के बाद, गंगनाथ ने अपने माता-पिता की इच्छाओं के विरुद्ध जाकर राजपाट त्यागने का निर्णय लिया। उन्होंने शारदा (काली) नदी पार की और हरिद्वार पहुंचे।

गोरखनाथ मठ में कान फड़वाकर जोग लेना

हरिद्वार में गंगनाथ ने हर की पैड़ी में स्नान किया और ब्रह्म कुंड में प्रार्थना की। वहां से वे गुरु गोरखनाथ के मठ पहुंचे, जहां उन्होंने गुरु से जोग लेने की इच्छा व्यक्त की। गुरु गोरखनाथ ने उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन गंगनाथ अपने निर्णय पर अडिग रहे। अंततः गुरु ने उनके सिर मुंडवाए, कान फड़वाए और उन्हें जोगी की दीक्षा दी।

दन्या गाँव में भाना से पुनर्मिलन और जोगी रूप में बसना

दीक्षा के बाद गंगनाथ दन्या गाँव पहुंचे, जहां उन्होंने चौबाट चकोली में धूनी रमाई। उनकी मधुर मुरली की धुन और आकर्षक व्यक्तित्व ने गाँव के लोगों को मोहित कर दिया। भाना ने जब सुना कि एक जोगी गाँव में आया है, तो उन्होंने अपने विश्वासपात्र झपरू लोहार को उसके पास भेजा। गंगनाथ ने झपरू के माध्यम से भाना को आश्वस्त किया कि वह वही है और मरते दम तक उसका साथ देगा।

भाना ने गंगनाथ को गाँव में बुलाया और किमुडाली (शाखा) के नीचे उसका आसन जोड़ दिया। झपरू लोहार को उसकी सेवा में नियुक्त किया गया। इस बीच, भाना और गंगनाथ का प्रेम प्रसंग चलता रहा।

प्रेम की त्रासदी और हत्या

भाना के गर्भवती होने की खबर फैलना

गंगनाथ को जोश्यूड़ में रहते हुए छह-सात महीने हो गए थे। इस दौरान भाना गर्भवती हो गई। यह बात दन्या के जोशियों में फैल गई और धीरे-धीरे अल्मोड़ा में भी किशनू जोशी को इसकी जानकारी मिल गई।

किशनू जोशी द्वारा गंगनाथ, भाना और झपरू की हत्या

किशनू जोशी ने लोकलाज के भय से गंगनाथ, भाना और झपरू लोहार की हत्या करवा दी। उन्होंने उन्हें घाटी के गधेरे में पनचक्की के भीतर मरवा कर वहीं दफना दिया।

तीनों का भूत बनकर प्रतिशोध और समाज में दहशत फैलाना

हत्या के तीन महीने बाद, गंगनाथ, भाना और झपरू के आत्माओं ने किशनू जोशी और उसके परिवार को सताना शुरू कर दिया। उन्होंने जोशी लोगों की बहुत अधिक बर्बादी कर डाली। गन्त-पूछ करने पर पता चला कि ये तीनों ही भूत बनकर उन्हें परेशान कर रहे हैं।

तब किशनू जोशी और उसके बिरादरों ने दन्या के पास कुड़क्वेली में इन तीनों का पहला थान (मंदिर) बनवाया। ये तीनों थान आज भी मौजूद हैं।

वहां से गंगनाथ का प्रचार समूचे कुमाऊँ में हो गया। दन्या के कुड़क्वेली से सालम का अनूपसिंह गंगनाथ को दुखी आवाज निकाल कर वहां से धत्या कर अपने यहाँ ले गया क्योंकि अगर के सौनों ने उसके साथ अत्याचार किया था। तब गंगनाथ को शांत करने के लिए ध्यूली गाँव के टकुरी नामक स्थान पर उसका मंदिर बनाया गया जिसे गंगनाथ की राजधानी माना जाता है। यहीं से न्यायदेवता के रूप में गंगनाथ की पूजा होना शुरू हो गई। यहां से रैनखा, सेरी, मल्ला बेली, झ्वातकिगाड़ आदि स्थानों में गंगनाथ के मंदिर बनाए गए। जिसके लिए भी कोई अन्याय होता है वह गंगनाथ के मंदिर में जाकर उस अन्यायी के विरुद्ध आवाज लगाकर न्याय की भिक्षा मांगता है। गंगनाथ झपरू लोहार को साथ ले जाकर अन्यायी को दंडित करता है।

गंगनाथ: न्याय के प्रतीक

गंगनाथ को कुमाऊँ क्षेत्र में न्याय देवता के रूप में पूजा जाता है। उनकी कथा एक ऐसे राजकुमार की है जिसने प्रेम और न्याय के लिए अपना राजपाट त्याग दिया और अंततः एक जोगी बनकर समाज में अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। उनकी यह यात्रा उन्हें एक दिव्य न्यायाधीश के रूप में स्थापित करती है, जो आज भी लोगों की आस्था का केंद्र हैं।

टकुरी: गंगनाथ की राजधानी

गंगनाथ की राजधानी के रूप में ध्यूली गाँव के टकुरी स्थान को माना जाता है। यहाँ उनका प्रमुख मंदिर स्थित है, जहाँ से उन्होंने अन्याय के खिलाफ न्याय प्रदान किया। यह स्थान आज भी श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है, जहाँ लोग अपने कष्टों का समाधान पाने के लिए आते हैं।

ग्वल्ल देवता और गंगनाथ: न्याय के दो स्तंभ

कुमाऊँ में गंगनाथ और ग्वल्ल देवता को न्याय के दो प्रमुख देवताओं के रूप में पूजा जाता है। ग्वल्ल देवता, जिन्हें गोलू देवता भी कहा जाता है, को न्याय का देवता माना जाता है जो लोगों की समस्याओं का समाधान करते हैं। गंगनाथ और ग्वल्ल देवता दोनों ही समाज में न्याय और धर्म की स्थापना के प्रतीक हैं।

गंगनाथ की पूजा और परंपराएँ

गंगनाथ की पूजा कुमाऊँ क्षेत्र में विशेष विधियों से की जाती है। लोग उनके मंदिरों में जाकर अपनी समस्याओं का समाधान पाने के लिए प्रार्थना करते हैं। उनकी पूजा में विशेष मंत्रों और अनुष्ठानों का प्रयोग होता है, जो श्रद्धालुओं को मानसिक शांति और न्याय की प्राप्ति में सहायता करते हैं।

गंगनाथ की कथा का सांस्कृतिक प्रभाव

गंगनाथ की कथा कुमाऊँ की सांस्कृतिक धरोहर का एक अभिन्न हिस्सा है। उनकी गाथा लोकगीतों, नाटकों और कहानियों में जीवित है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाती हैं। उनकी कथा समाज में नैतिकता, प्रेम, त्याग और न्याय के मूल्यों को सिखाती है।

गंगनाथ की कथा एक ऐसे व्यक्ति की है जिसने अपने व्यक्तिगत सुखों को त्यागकर समाज के लिए न्याय की स्थापना की। उनकी यह यात्रा उन्हें एक महान न्याय देवता के रूप में स्थापित करती है, जो आज भी लोगों की आस्था का केंद्र हैं। उनकी पूजा और कथा कुमाऊँ की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, जो आने वाली पीढ़ियों को नैतिकता और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।

ग्वल्ल देवता के साथ गंगनाथ भी कुमाऊं के सबसे बड़े न्याय-देवताओं में गिना जाता है।

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