नैनीताल हाईकोर्ट ने बागेश्वर जिले में खड़िया खनन पर रोक जारी की, 160 खनन पट्टे धारकों को नोटिस
नैनीताल: 11 जनवरी 2025, बागेश्वर जिले के कांडा तहसील के विभिन्न गांवों में खड़िया खनन से आई दरारों के मामले में नैनीताल उच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका की सुनवाई की। कोर्ट ने इस मामले में खनन पर रोक जारी रखते हुए 160 खनन पट्टेधारकों को नोटिस जारी कर उनसे जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने इस क्षेत्र में अवैध खनन से प्रभावित ग्रामीणों को मुआवजा देने के मुद्दे पर सरकार को कड़ी फटकार लगाई और यह सुझाव दिया कि मुआवजा अवैध खनन करने वालों से वसूल किया जाए।
खनन से आई दरारों पर गंभीर चिंता
नैनीताल हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की खंडपीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी शामिल थे, ने बागेश्वर जिले के कांडा तहसील में खड़िया खनन से आई दरारों और अन्य खनन गतिविधियों को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की। इस मामले में क्षेत्रीय ग्रामीणों ने कोर्ट में दायर की गई शिकायतों में बताया कि खनन पट्टेधारकों ने उनके अनुमोदन के बिना खड़िया खनन की एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) प्राप्त कर ली है, और यह प्रक्रिया फर्जी तरीके से पूरी की गई है।
ग्रामीणों के अनुसार, यह खनन गतिविधियाँ न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही हैं, बल्कि उनके घरों और कृषि भूमि में भी दरारें आ गई हैं, जिससे उनकी जीवन-शैली और आजीविका पर गंभीर असर पड़ा है। कोर्ट ने इन आरोपों को गंभीरता से लिया और इस मामले में जिला प्रशासन, पुलिस, खनन विभाग और उद्योग विभाग के अधिकारियों को फटकार लगाई।
अवैध खनन पर प्रभावी कार्रवाई
सुनवाई के दौरान बागेश्वर जिले के पुलिस अधीक्षक ने वर्चुअल माध्यम से पेश होते हुए जानकारी दी कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद 124 पोकलैंड और जेसीबी मशीनों को अवैध खनन में संलिप्त होने के कारण जब्त कर लिया गया है। इन मशीनों का इस्तेमाल बागेश्वर जिले के विभिन्न हिस्सों में खनन कार्यों के लिए किया जा रहा था। पुलिस ने इस कार्रवाई को अवैध खनन पर कड़ी नकेल कसने के रूप में बताया।
खनन पर रोक और मुआवजे की मांग
कोर्ट ने इस मामले में खनन पर रोक जारी रखी है और खनन पट्टेधारकों को नोटिस जारी करते हुए उनसे जवाब देने को कहा है। इसके अलावा, कोर्ट ने खनन से प्रभावित ग्रामीणों के मुआवजे के मामले में भी महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि यदि राज्य सरकार ने मुआवजा देने का निर्णय लिया है, तो यह मुआवजा अवैध खनन करने वालों से वसूल किया जाना चाहिए, न कि सरकार के खजाने से।
यह टिप्पणी इस बात का संकेत है कि न्यायालय अवैध गतिविधियों पर त्वरित और कठोर कार्रवाई की आवश्यकता को महसूस करता है, ताकि प्रभावितों को न्याय मिल सके और राज्य की वित्तीय स्थिति पर कोई अतिरिक्त दबाव न पड़े।
फर्जी एनओसी का मामला
इस मामले में एक और महत्वपूर्ण मुद्दा सामने आया है, वह है खनन पट्टेधारकों द्वारा फर्जी एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) प्राप्त करने का। कोर्ट में पेश किए गए दस्तावेजों में यह आरोप सामने आया कि स्थानीय ग्रामीणों ने खनन के लिए अपनी अनुमति नहीं दी थी, लेकिन उनके नाम पर फर्जी तरीके से एनओसी बना ली गई थी। इस पर कोर्ट ने जिला प्रशासन और खनन विभाग से जवाब तलब किया है और यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं कि खनन गतिविधियाँ कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए ही की जाएं।
अगली सुनवाई की तिथि
इस मामले पर अगली सुनवाई 14 फरवरी 2025 को निर्धारित की गई है, जब कोर्ट से उम्मीद की जा रही है कि खनन के मुद्दे पर और भी ठोस कदम उठाए जाएंगे। जिला प्रशासन और संबंधित विभागों को इस मामले में जल्दी से जल्दी जवाब देने के निर्देश दिए गए हैं।
ग्रामीणों की आशाएँ और भविष्य
बागेश्वर जिले के कांडा तहसील के ग्रामीणों के लिए यह मामला एक महत्वपूर्ण पहलू है, क्योंकि उनका जीवन खनन गतिविधियों के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है। ग्रामीणों का मानना है कि यदि कोर्ट ने अवैध खनन पर प्रभावी रूप से रोक नहीं लगाई, तो उनके लिए भविष्य में और भी समस्याएँ खड़ी हो सकती हैं। इसलिए, वे कोर्ट के निर्णय का इंतजार कर रहे हैं, ताकि उनकी स्थिति में सुधार हो सके और उन्हें उचित मुआवजा मिल सके।
इस मामले में ग्रामीणों की ओर से जमा किए गए दस्तावेजों और शिकायती पत्रों ने साबित कर दिया कि प्रशासनिक लापरवाही और अवैध गतिविधियों की वजह से उनकी मुश्किलें बढ़ी हैं। अब, कोर्ट की कड़ी निगरानी में इन समस्याओं का समाधान निकलने की उम्मीद है।